बाहर चीन के उत्पादों का विरोध, विकल्प को लेकर अंदर ही अंदर चिंता में घिरे शहर के उद्योगपति
लंबे समय तक चीन से सामान मंगवा कर मलाई खाने वालों को अब यह समझ नहीं आ रहा है कि अगर चीन के समान का बायकाट लोगों ने कर डाला तो गुजारा कैसे चलेगा।
जालंधर, [मनुपाल शर्मा]। करीब एक दशक में चीन के सबसे बड़े ग्राहक अब खुद को भारी चिंता में घिरे हुए पा रहे हैं। लद्दाख में भारतीय सैनिकों के साथ हुई बर्बरता के बाद अब चीन का विरोध तो बड़े स्तर पर किया जा रहा है, लेकिन जब बात चीनी उत्पादों के बायकाट की आ रही है तो अंदर ही अंदर सिहरन सी दौड़ रही है। वजह यह है कि लंबे समय तक चीन से सामान मंगवा कर मलाई खाने वालों को अब यह समझ नहीं आ रहा है कि अगर चीन के समान का बायकाट लोगों ने कर डाला तो गुजारा कैसे चलेगा। हालांकि आवाज यही बुलंद की जा रही है कि सरकार को चीन का विकल्प उपलब्ध कराने में मदद करनी होगी, लेकिन उन्हेंं भी पता है कि यह एक दिन में यह होना संभव ही नहीं है। इससे पहले व्यापार के लिए इंतजाम तो इन्हेंं खुद करने होंगे।
ऐसे थके कि मांगना ही भूले
लॉकडाउन लागू हुआ तो खुद को अर्थव्यवस्था की रीढ़ बताने वाले उद्योगपति सरकार के समक्ष मांगों की लंबी फेहरिस्त लेकर बैठ गए। हालात यह हो गए कि जितने घर, उतनी मांगें। एक ही दिन में कई-कई मांगों के पत्र सरकार को भिजवाए जाते रहे और साथ ही में खबरनवीसों को भी सूचित किया जाता रहा। सरकार तो फिर सरकार है। मांगें पढ़ती रही, उन्हें जायज बताती रही, लेकिन उन्हेंं मानने की बजाय सरकार के बाबू सरकारी पत्रों में शब्दों से खेलते रहे। चंडीगढ़ से बात चले कि मांग मान ली गई है लेकिन जब पत्र जारी हो तो उसमें खुलासा ही न हो। सुबह पत्र जारी हो जाए, शाम को सरकार पत्र वापस ले ले। लगभग दो माह तक चली इस थकाऊ एक्सरसाइज के बाद पता यह चला है कि सरकार ने मांग एक भी नहीं मानी है। अब हालात ऐसे हैं कि उद्यमी अपनी मांग दोहराना भी भूल गए हैं।
सरकार ने नहीं, आंकड़ों ने डराया
कोरोना के संक्रमण से बचाने के लिए सरकार ने जनता कर्फ्यू लगाया। लॉकडाउन लागू किया और फिर कर्फ्यू लगा कर सख्ती भी कर डाली। बावजूद इसके लोग घरों से बाहर निकलने एवं रेहड़ियों तक पर चटखारे लेने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे थे। सरकार तो तीन महीने से भी ज्यादा समय से लोगों को समझा ही रही थी, लेकिन लोग नहीं मान रहे थे। अब कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या में लगातार वृद्धि ने वह काम कर दिखाया है, जो सरकार नहीं कर सकी थी। बिना पुलिस के डंडे के भी वीकेंड लॉकडाउन सन्नाटे में बीत रहा है। लोगों में कोरोना संक्रमण को लेकर ऐसा डर जरूरी भी है, क्योंकि डंडे से करवाया गया काम तो लंबा नहीं चलता है, लेकिन अंदर से आई आवाज काम जरूर कर जाती है। सभी कह रहे हैं कि जान प्यारी है तो घर पर ही रहो। इसी में सबका फायदा है।
सैनिटाइजर से खुद धोने पड़ रहे हाथ
कोरोना वायरस के डर ने अधिकतर कामधंधों को बुरी तरह से प्रभावित किया, लेकिन इससे बचाव को लेकर एक व्यवसाय जरूर खड़ा हो गया था। यह था सैनिटाइजर, मास्क, पीपीई किट की मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेडिंग का। बढ़ती हुई मांग के मद्देनजर कपड़े बेचने वाले से लेकर दवाई बेचने वाले तक इसी के पीछे पड़े हुए दिखाई दे रहे थे। भारी भरकम स्टॉक इकट्ठा कर लिया गया तो कई उससे भी दो कदम आगे जाकर मैन्युफैक्चरिंग तक भी करने लगे। इसी बीच प्रशासन के डंडे ने रेट कम कराया। हालात ऐसे हो गए स्टोर में पड़ा हुआ स्टॉक भी कोरोना से ज्यादा डराने लगा। दुकानदारों ने स्टॉक निकालने के लिए डिस्काउंट दिए और जिस कीमत पर खुद खरीदा था, उसी कीमत पर बेचने को भी तैयार हो गए। हालत यह है कि अब लोगों को बेचने के लिए मंगवाए सैनिटाइजर अपने ही हाथ धोने के काम आ रहे हैं।
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