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Independence Day 2022 : राजकुमारी अमृत कौर का देश की आजादी में अहम योगदान, दांडी मार्च व भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों ने दो बार जेल भेजा

Independence Day 2022 राजकुमारी अमृत कौर आहलुवालिया का भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्हें भारत की पहली महिला स्वास्थ्य मंत्री के साथ साथ देश के प्रतिष्ठित एम्स अस्पताल की स्थापना में अतुलनीय योगदान के लिए भी जाना जाता है।

By Vinay KumarEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 09:45 AM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 09:45 AM (IST)
Independence Day 2022 : देश की आजादी में राजकुमारी अमृत कौर का अहम योगदान रहा है।

कपूरथला [हरनेक सिंह जैनपुरी]। राजकुमारी अमृत कौर आहलुवालिया का भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने 16 वर्षों तक महात्मा गांधी के सचिव के रूप में भी काम किया। उन्हें भारत की पहली महिला स्वास्थ्य मंत्री के साथ साथ देश के प्रतिष्ठित एम्स अस्पताल की स्थापना में अतुलनीय योगदान के लिए भी जाना जाता है। राज घराने से होने के बाद भी उनका देश और लोगों के प्रति सेवाभाव का जज्बा हमेशा ही प्रेरणा दायक रहा। अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 को कपूरथला के शाही परिवार में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा ब्रिटेन के डोरसेट में शेरबोर्न स्कूल में हुई। आगे की पढ़ाई उन्होंने लंदन और आक्सफर्ड से की और शिक्षा के नूर ने उनके जेहन को दुनिया को बेहतर तरीके से समझने और सही दिशा में आगे बढ़ने की समझ दी। राजा हरनाम सिंह बेटी राजकुमारी अमृत कौर अपने सात भाइयों में अकेली बहन थी। राजकुमारी अमृत कौर महात्मा गांधी से खासी प्रभावित थीं। 1919 में उनसे मुलाकात से पहले वह लगातार उन्हें पत्र लिखकर संवाद किया करती थीं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संपर्क में आने राजकुमारी अमृत कौर देश की आजादी में जुट गई। यह सम्पर्क अंत तक बना रहा।  

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आजादी की जंग में कूदने का फैसला

राज कुमारी की पूरी शिक्षा इंग्लैंड में हुई। एक बार अंग्रेजों ने राजा सर हरनाम सिंह के परिवार को एक पार्टी में आमंत्रित किया। वह वहा अपनी 20 वर्षीय बेटी राजकुमारी अमृत कौर के साथ पहुंचे थे। पार्टी के दौरान एक अंग्रेज अफसर ने उन्हें अपने साथ डांस के लिए आमंत्रित किया लेकिन अमृत कौर ने मना कर दिया।  उनका इंकार अंग्रेज अफसर को बहुत ना गवार गुजरा और उसने गुस्से में कह डाला कि भारतीयों को कभी आजादी नहीं देनी चाहिए, यह बिगड़ गए हैं। अपने देश वासियों के लिए ऐसी बात सुनकर राजकुमारी बहुत आहत हुईं, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में शामिल होने का फैसला कर लिया।

दाडी मार्च में भाग लेने पर हुई जैल

गांधी जी के नेतृत्व में 1930 को जब ‘दांडी मार्च’ की शुरुआत हुई, तब राजकुमारी अमृत कौर ने उनके साथ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। 1934 से वह गांधी जी के आश्रम में ही रहने लगीं और उन्हें ‘भारत छोड़ो अंदोलन’ के दौरान भी जेल हुई। अमृत कौर ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की प्रतिनिधि के तौर पर 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गई। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया। उन्होंने सरोजनी नायडू के साथ मिलकर ऑल इंडिया वुमन कांफ्रेंस और आई इंडिया वुमन कांग्रेस की स्थापना की। 1942 में अंग्रेजों ने उन पर फिर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर जेल में डाल दिया। अंबाला जेल में उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें जेल से निकालकर शिमला के मैनोर्विल हवेली में तीन साल के लिए नजरबंद कर रखा।

देश में एम्स की स्थापना का सेहरा

आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट सदस्यों की सूची में कौर नहीं थीं। नेहरू के जीवनी लेखक शंकर घोष के मुताबिक हंसा मेहता के पक्ष में थे लेकिन गांधी जी के आग्रह के कारण अमृत कौर को स्वास्थ्य मंत्री का पद मिला था। स्वतंत्र भारत की पहली महिला स्वास्थ्य मंत्री बनी कौर ने एम्स की स्थापना के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धन जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका से सहायता प्राप्त कर जरूरी रकम जुटाई। राजकुमारी कौर एक अंतरराष्ट्रीय कद की महिला थी। वे विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहली महिला अध्ययक्ष भी थी। उन्होंने टयूबरक्लोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया की स्थापना की। मद्रास में सेंट्रल लेप्रोसी टीचिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट खोला। वह लीग ऑफ रेड क्रास सोसायटीज के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की उपाध्यक्ष और सेंट जोंस एम्बुलेंस एसोसिएशन की कार्यकारिणी की अध्यक्ष रहीं।

1955 में मलेरिया के खिलाफ चलाया था बड़ा अभियान

स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए उन्होंने 1955 में मलेरिया के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था। टाइम पत्रिका ने कौर को 20 वीं सदी की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया था। वह पहली एशियाई महिला थीं, जिन्हें 1950 में वर्ल्ड हैल्थ असेम्बली का अध्यक्ष चुना गया। 1909 में वह पंजाब में अपने घर वापस लौटीं। उन्होंने गुलामी की जंजीरों में जकड़े देश की कु्प्रथाओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बच्चों को अधिक मजबूत और अनुशासित बनाने के लिए उन्होंने स्कूली बच्चों के लिए खेलों की शुरुआत करने पर जोर दिया और बाद में नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना करके अपने इरादों को आकार देना शुरू किया। 1926 में उन्होंने ऑल इंडिया महिला कांफ्रेंस की स्थापना की।

1961 में रेने सा मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित

1961 में अमृत कौर को समाज सुधार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रतिष्ठित ‘रेने सा मेमोरियल अवार्ड’ प्रदान करके उनके प्रयासों का सम्मान किया गया। देश के स्वतंत्रता संग्राम में और आजादी के बाद घुटनों चलते देश को अपने पैरों पर खड़ा करने में अपना सब कुछ लगा देने वाले राजकुमारी अमृत कौर जैसे बहुत से नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं।इंडियन रेड क्रास की संस्थापक और 1950 से जीवनपर्यंत इसकी अध्यक्ष रहीं अमृत कौर को लंदन टाइम्स ने सरोजिनी नायडू और विजय लक्ष्मी पंडित के साथ स्वतंत्रता संग्राम की तीन महान सत्याग्रही महिलाओं में शुमार किया था।


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