इस महिला थाने में पुरुष सुनते हैं शिकायतें, महिलाओं को होना पड़ता है शर्मसार
जालंधर के एकमात्र महिला पुलिस थाने में पिछले काफी समय से बतौर इंचार्ज यानि एसएचओ पुरुष इंस्पेक्टर की तैनात हैं। उनके अलावा आधे से ज्यादा स्टाफ भी जेंटस है।
जालंधर, [मनीष शर्मा]। महिलाएं आपबीती सुनाते वक्त झिझकें ना और अच्छे माहौल में पूरी सुनवाई कर उनको इंसाफ दिया जा सके, इसके लिए शहर में आठ साल पहले महिला पुलिस थाना खोला गया था। लेकिन अब इस थाने में महिलाओं की जगह जेंट्स स्टाफ ही दिखाई पड़ता हैं। यहां तक कि बतौर इंचार्ज यानि एसएचओ भी पुरुष इंस्पेक्टर ही है। उनकी तैनाती यहां पिछले काफी समय से है। उनके अलावा आधे से ज्यादा स्टाफ पुरुष है। नतीजा, महिलाएं अपने साथ हुई ज्यादती को पुरुष पुलिस स्टाफ के साथ साझी करने को मजबूर हैं। महिला पुलिस थाने में यह दूसरा मौका है जब पिछले आठ साल में जेंट्स एसएचओ लगाया गया है। यही नहीं, काउंसिंलगि व सपोर्ट टीम का इंचार्ज भी पुरुष इंस्पेक्टर है। ऐसे में कागजों में दर्शाया जा रहा महिला पुलिस थाना हकीकत में अपने मकसद में कितना कामयाब है, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
हर महीने सौ से ज्यादा शिकायतें
महिला थाने में महिलाओं से जुड़ी हर महीने सौ से ज्यादा शिकायतें आती हैं। इनमें वैवाहिक झगड़ों के साथ-साथ महिलाओं के खिलाफ जुड़े अपराधों के मामले शामिल हैं। अक्सर महिलाओं को शिकायत रहती थी कि पुलिस थानों में पुरुष स्टाफ के आगे वो खुलकर बात नहीं कह पाती या उनके साथ हुए अत्याचार के बारे में सब कुछ पुरुष अफसर को नहीं बता सकती। उसी को देखते हुए जालंधर में एक अक्टूबर 2010 को यह थाना खोला गया था। पहले कुछ साल तक तो महिला इंस्पेक्टर को ही एसएचओ लगाया गया लेकिन अब पुरुष इंस्पेक्टर तैनात है।
चारों इन्वेस्टिगेशन यूनिट के इंचार्ज पुरुष
जालंधर पुलिस ने खुद अपनी वेबसाइट पर जानकारी दी है कि महिला पुलिस थाने का इंचार्ज पुरुष होने के साथ इसकी चार सब इन्वेस्टिगेशन यूनिट बनाई गई हैं। इन चारों के इंचार्ज भी हेड कांस्टेबल से लेकर एएसआइ तक पुरुष अफसर हैं। हालांकि इनमें एक-एक महिला पुलिस कर्मी को जरूर शामिल किया गया है। इन्वेस्टिगेशन यूनिट में कुल 20 कर्मचारी हैं, जिनमें लेडीज सिर्फ छह हैं। इसी तरह 10 अफसरों की काउंसिलिंग व सपोर्ट टीम में महिला पुलिस कर्मी 5 हैं लेकिन बतौर आईओ सिर्फ दो ही महिला अफसर यानि एक एसआइ व एक एएसआइ शामिल है।
शर्म आती है, सुनवाई प्रभावित न हो, इसलिए चुप रहते हैं
महिला थाने में फरियाद लेकर पहुंची महिलाओं से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा- पुरुषों के आगे खुद पर किए जुल्म व खासकर शारीरिक अत्याचार को नहीं बता पातीं। शर्म भी आती है लेकिन पुलिस को कैसे कुछ कह दें? डर लगता है कि कहीं सुनवाई ही प्रभावित न हो। इसलिए शर्मसार होकर आपबीती सुनानी पड़ती है। यह तो बड़े अफसरों को देखना चाहिए कि जब नाम महिला पुलिस थाना है तो कम से कम यहां सीनियर और जांच करने वाले अफसर भी महिलाएं ही तैनात की जानी चाहिए।
वेबसाइट पर झूठ बोल कसीदे पढ़ रही पुलिस
जालंधर पुलिस की वेबसाइट पर महिला पुलिस थाने के बारे में झूठ बोलकर कामयाबी के कसीदे पढ़े जा रहे हैं। इसमें कहा गया कि वूमेन पुलिस स्टेशन लेडी इंस्पेक्टर की अगुवाई में चल रहा है। उसके अधीन महिला व पुरुष जांच अफसर काम कर रहे हैं, हालांकि हकीकत में पुरुष अफसरों का बोलबाला है। पुलिस का दावा है कि अब तक यहां 3,226 शिकायतें आई, जिनमें 3,121 में समझौता हो गया। 211 में केस दर्ज किया गया।
कैसे सुनवाई होगी और इंसाफ मिलेगा
सोशल वर्कर नीलम सलवान का कहना है कि नाम महिला पुलिस थाना है तो उसमें सीनियर स्टाफ पुरुष क्यों? वहां शिकायत करने वाली महिलाओं को तो बात बताने में शर्म आएगी। ऐसे में किस तरह से सही ढंग से सुनवाई होगी और इंसाफ मिलेगा। यह उचित नहीं है।
खुद पैनल से जुड़ी, लेकिन इन्हीं कारणों से जाना कम कर दिया
सोशल वर्कर प्रवीन अबरोल का कहना है कि मैं खुद महिला थाने के पैनल से जुड़ी हूं लेकिन इन्हीं वजहों से जाना कम कर दिया। पुरुष अफसरों के आगे महिलाएं चाहकर भी खुलकर कुछ नहीं कह पाती और हम भी सहजता से चर्चा नहीं कर पाते। मैंने पहले भी राय दी थी कि यहां महिला इंचार्ज ही लगाई जाए। मेरी तो अफसरों को सलाह है महिला इंचार्ज और स्टाफ तैनात नहीं कर सकते तो पुलिस थाने का नाम ही बदल दें।
पता करूंगा-क्यों लगाया गया है पुरुष स्टाफ
पंजाब के डीजीपी सुरेश अरोड़ा का कहना है कि मैं इस बारे में पता करूंगा कि महिला थाने में इंचार्ज व जांच का काम पुरुष स्टाफ को ही क्यों सौंपा गया है? अगर जालंधर में महिला अफसर हैं तो उन्हें यहां तैनात किया जाना चाहिए था। अगर कमी है तो फिर इस बारे में हमारे पास रिक्वायरमेंट भेजी जानी चाहिए थी।