अंग्रेजों को तीर की तरह चुभते थे 'गदर' के लेख
फोटो --- ::जय हिंद: गौरव गाथा:: -विदेश व देश में बसे भारतीयों को देश की आजादी के लिए
फोटो
---
::जय हिंद: गौरव गाथा::
-विदेश व देश में बसे भारतीयों को देश की आजादी के लिए प्रेरित करने को अखबार निकालती थी गदर पार्टी
-अंगेजों का काला चिट्ठा छापा जाता था गदर पत्रिका में
----
अविनाश कुमार मिश्र, जालंधर: 'खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो अखबार निकालो' समकालीन प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी के इस शेर को शायद गदर पार्टी ने पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था। शायद यही वजह थी कि अंग्रेजों के विरुद्ध जंग में पार्टी ने विभिन्न भाषाओं में गदर पत्रिका के अलावा अन्य पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन पर विशेष ध्यान दिया। इन पत्र-पत्रिकाओं में छपे लेखों ने ब्रिटिश शासन को पूरी तरह खौफजदा कर दिया था। सैन फ्रासिस्को में युगातर आश्रम की स्थापना
गदर के शहीदों को समर्पित देशभगत यादगार कमेटी की ओर से प्रकाशित पुस्तक 'गदर पार्टी का इतिहास भाग-एक' में वर्णित है कि अप्रैल 1913 में गदर पार्टी की स्थापना के बाद फैसला लिया गया कि पार्टी का पार्टी का मुख्यालय सैन फ्रासिस्को में बनाया जाए। इसके बाद यहा के हिल स्ट्रीट में मकान नंबर 436 को किराये पर लेकर गदर पार्टी का मुख्यालय युगातर आश्रम स्थापित किया गया। यहीं से ही गदर अखबार का प्रकाशन व संगठन का कामकाज संचालित होने लगा। नवंबर 1913 में उर्दू में प्रकाशित हुआ गदर का पहला अंक
1913 में नवंबर के पहले सप्ताह में गदर का पहला अंक उर्दू में प्रकाशित हुआ। कुछ सप्ताह बाद यह पंजाबी व इसके बाद गुजराती में भी प्रकाशित होने लगा। पुस्तक गदर पार्टी का इतिहास-प्रथम भाग 1912-17 में लिखा है, 'गदर के पहले अंक में औरेगन व वॉशिगटन के मजदूरों के डेरों की काफ्रेंस के समाचार प्रकाशित हुए और ऑस्टोरिया में पार्टी की स्थापना संबंधी सामग्री छापी गई। यह पढ़कर कैलिफोर्निया के खेतों में काम करने वाले या फर्मो को ठेके पर जुताई करने वाले हिंदुस्तानियों ने भी पार्टी में शामिल होने के लिए दिसंबर 1913 में बड़े दिनों की छुट्टियों (क्रिसमस) में सेंक्रोमेंट में एक सम्मेलन बुलाया।' गदर ने दिलों में भर दी थी भारत की आजादी की चाह
जीएचजी खालसा कॉलेज गुरुसर सुधार में हिंदी के प्रोफेसर व प्रख्यात लेखक डॉ. राजेंद्र साहिल बताते हैं कि गदर पत्रिका में अंग्रेजों का काला चिट्ठा प्रकाशित कर विभिन्न देशों में रह रहे भारतीयों के मन में भारत की आजादी की ललक भरी जा रही थी। पत्रिका को अमेरिका के पश्चिमी तट की रियासतों कनाडा, जापान, सिंगापुर व हागकाग व भारत के अलावा विभिन्न देशों में राजनीतिक व सामाजिक संगठनों से जुड़े वरिष्ठ सदस्यों के पास भेजा जाता था। पत्रिका में प्रकाशित खबरों व लेख को पढ़कर हिंदुस्तानियों में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था और गदर आदोलन मजबूत हो रहा था। गदर पार्टी ने इस दौरान एक पर्चा भी वितरित किया था। उस पर लिखा था 'जंग दा होका' अर्थात युद्ध की घोषणा। गदर पत्रिका व अन्य पत्र-पत्रिकाओं से ब्रिटिश शासन इतना खौफजदा हो गया था कि उसने इनके वितरण पर रोक लगाने के लिए सख्ती कर दी। दस लाख प्रतियां छपने लगी थी गदर की
गदर पार्टी का इतिहास पुस्तक में लिखा है, 'ज्यों-ज्यों गदर आदोलन का प्रसार हुआ और हिंदुस्तानी जनता में कातिकारी चिंगारी भड़की, अखबार की माग लगातार बढ़ती गई। उर्दू और पंजाबी के अलावा हिंदी, गुजराती, बंगाली, पश्तो व नेपाली भाषा में भी विशेष अंक छपने लगे। यह अखबार हजारों की संख्या में छपने तथा बंटने लगा। कहा जाता है कि 1916 में यह दस लाख के करीब छपने लग गया था।' डॉ. राजेंद्र साहिल कहते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को भड़काने में गदर अखबार का भी अहम योगदान था। इसमें लिखे लेख अंग्रेजों को तीर बनकर चुभते थे।