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बाबा साहब की यादें संजोए है डॉ. आंबेडकर भवन, 90 वर्षीय लाहौरी राम ने साथ किया था काम

डॉ. बीआर आंबेडकर भवन के निर्माण में लाहौरी राम बाली की अहम भूमिका रही। वह आज भी भीम पत्रिका निकाल रहे हैं। उन्होंने बाबा साहब पर करीब 200 किताबें लिखी हैं।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sat, 25 Jan 2020 04:55 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 04:55 PM (IST)
बाबा साहब की यादें संजोए है डॉ. आंबेडकर भवन, 90 वर्षीय लाहौरी राम ने साथ किया था काम
बाबा साहब की यादें संजोए है डॉ. आंबेडकर भवन, 90 वर्षीय लाहौरी राम ने साथ किया था काम

जालंधर, [शाम सहगल]। कल गणतंत्र दिवस है। देश को संविधान देकर विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक ढांचे के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले डॉ. भीम राव आंबेडकर का जालंधर से विशेष नाता रहा है। देश में संविधान लागू होने के बाद बाबा साहब पंजाब के दौरे पर आए थे। इस दौरान वह जालंधर में जहां रुके थे, वहां पर उनके नाम पर विशाल भवन बनाया गया है। हम बात कर रहे हैं श्री गुरु रविदास चौक के पास स्थित आंबेडकर भवन की। उनकी यादों के इस घरौंदे में उनकी कई तस्वीरें और पुस्तकों को आज भी धरोहर के रूप में सहेज कर रखा गया है। 

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आंबेडकर भवन के निर्माण और बाबा साहब की यादें संजो कर रखने में उनके साथ करीब सात वर्ष तक रहे लाहौरी राम बाली की भूमिका विशेष रही है। बाबा साहब की शख्सियत और उनके जीवन से प्रभावित होकर 90 वर्ष की उम्र में भी वह भीम पत्रिका के माध्यम से उनकी सोच पर पहरा दे रहे हैं। बाबा साहब पर करीब 200 किताबें लिख चुके लाहौरी राम आज भी पूरे जज्बे के साथ काम कर रहे हैं।

जालंधरः बाबा साहब वर्ष 1951 में जालंधर आए थे। उन्होंने डीएवी कॉलेज में संसदीय लोकतंत्र का भविष्य विषय पर संबोधित किया था।

भवन निर्माण के लिए खरीदी छह कनाल जमीन

90 वर्षीय लाहौरी राम बाली ने जालंधर में डॉ. आंबेडकर भवन निर्माण में अहम भूमिका निभाई। वह आज भी उनकी सोच पर पहरा दे रहे हैं।

50 के दशक में संविधान को लेकर लोगों में जागृति पैदा करने के लिए पंजाब दौरे के दौरान जालंधर में पहुंचे डॉ. आंबेडकर का यहां भव्य स्वागत किया गया था। लाहौरी राम बाली बताते हैं कि उस समय बाबा साहब बूटा मंडी स्थित पूर्व विधायक अविनाश चंद्र के पिता सेठ किशन दास कलेर के घर ठहरे थे। वही श्री गुरु रविदास चौक के पास स्थित खाली पड़ी जमीन पर उन्होंने समाज में जागृति पैदा की थी। बाबा साहब के आगमन को अमर बनाने के लिए उन्होंने 1963 में भगवान दास के साथ मिलकर छह कनाल जमीन खरीदी थी। इसी पर डॉ. बीआर आंबेडकर भवन का निर्माण किया गया है।

दबे कुचले वर्ग को इंसाफ दिलाने के लिए जुटते हैं संगठन

नकोदर रोड पर स्थित डॉ. बीआर आंबेडकर भवन में आज भी दबे कुचले वर्ग को इंसाफ दिलाने के लिए विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि जुटते हैं। यहां पर भारतीय संविधान के अनुरूप समानता के अधिकार की बात की जाती है। इसके अलावा डॉ. आंबेडकर के जन्मदिवस व पुण्यतिथि पर यहां पर उनकी यादों का पिटारा समूचे समाज के लिए खोला जाता है। उनकी अनमोल देन संविधान पर चर्चा की जाती है।

देश भर में कर रहे बाबा साहब और संविधान का प्रचार

जालंधरः बुजुर्ग लाहौरी राम बाली करीब सात वर्ष तक बाबा साहब के साथ रहे थे। वह उनके ऊपर अब तक 200 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं।

बाबा साहब के निधन के बाद उनके साथी लाहौरी राम बाली ने उनके जीवन और संविधान का प्रचार करने की मशाल थाम ली थी। इसके लिए उन्होंने 200 के करीब किताबें लिख डालीं हैं। वह तब से लेकर ‘भीम’ पत्रिका के माध्यम से देश भर में बाबा साहब के सिद्धांतों का प्रचार कर रहे हैं। लाहौरी राम बाली बताते हैं कि जालंधर में बाबा साहब के आगमन से लेकर आज तक वह उन्हें अपने आसपास ही महसूस करते हैं। यही कारण है कि उनकी सोच और लक्ष्य के अनुसार उनकी कलम चलती रहती है।

आंबेडकर भवन के इंचार्ज बताते हैं कि युवाओं को पढ़ाई की ओर आकर्षित करने के लिए आंबेडकर भवन में विशेष पुस्तकालय बनाया गया है। इसकी कोई फीस नहीं रखी गई है। इसके अलावा यहां विभिन्न प्रतियोगिताओं की तैयारी के लिए निःशुल्क कोचिंग भी दी जाती है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अनेक किताबें यहां उपलब्ध हैं। भवन में एक बड़ा हॉल है जो जनता को विभिन्न पारिवारिक आयोजनों के लिए किराये पर उपलब्ध करवाया जाता है। भवन की दीवारों पर बाबा साहब के जीवन के अहम पड़ावों व विभिन्न कार्यक्रमों में उनकी शिरकत की गवाही देती सजीव तस्वीरें उकेरी गई हैं।

यूं जीवित हैं यहां उनकी यादें

श्री गुरु रविदास चौक के नजदीक स्थित डॉ. बीआर आंबेडकर भवन में संविधान के इस निर्माता की यादें तस्वीरों व पुस्तकों के साथ जीवित हैं। बौद्ध धर्म अपनाने वाले डॉ. आंबेडकर को समर्पित इस भवन में महात्मा बुद्ध की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। यह उनकी याद हमेशा ताजा बनाए रखती है।

बाबा साहब को दिया वचन किया पूरा, एडवांस जमा करवाया वेतन

डॉ. बीआर आंबेडकर के साथ सात वर्ष तक रहे लाहौरी राम बाली दूरसंचार विभाग में तैनात थे। बाबा साहब के साथ रहते हुए उन्होंने उनकी सोच को जीवित रखने का वचन दिया था। छह दिसंबर, 1956 को बाबा साहब के निधन के बाद से वह अपना वचन पूरा कर रहे हैं। बाबा साहब की सोच को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उन्होंने न सिर्फ नौकरी से त्यागपत्र दे दिया बल्कि नियमानुसार एक महीने का वेतन 150 रुपए भी जमा करवाया। नौकरी से मुक्त होते ही शुरू हुआ बाबा साहब के सिद्धांतों का प्रचार और संविधान के प्रति लोगों को जागरूक करने का दौर। इसमें शहर ने एकजुट होकर आवाज बुलंद की।

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