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मिठास बांटने वाले पंजाब के किसानों को लागत निकालने के लाले, बिचौलियों के वारे न्यारे

Loss to Farmers देश के कई राज्‍यों में लोगों को मिठास बांटने वाले पंजाब किसान नुकसान का कड़वा घूंट पीने को विवश हैं। इन किसानाें के लिए अपनी फसल की लागत निकालने के भी लाले हो गए हैं और दूसरी ओर बिचौलियों के वारे न्‍यारे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 23 May 2021 06:28 PM (IST)Updated: Sun, 23 May 2021 08:13 PM (IST)
मिठास बांटने वाले पंजाब के किसानों को लागत निकालने के लाले, बिचौलियों के वारे न्यारे
पंजाब के कपूरथला के एक गांव में अपनी तरबूज की फसल दिखता किसान। (जागरण)

कपूरथला, [हरनेक सिंह जैनपुरी] । देश के कई राज्‍यों के लोगों तक मिठास पहुंचाने वाले पंजाब के किसान खुद कड़वा घूंट पीने को मजबूर हैं। उत्तर भारत में दोआबा के खरबूजे व तरबूज मिठास व गुणवत्ता के मामले में बेहतरीन माने जाते हैं। इनकी डिमांड भी अधिक होती है। इसके बावजूद इसकी खेती करने वाले किसानों के लिए अपनी फसल की लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है। हां, बिचौलियों के वारे न्‍यारे हो रहे हैं। बिचौलियों किसानों से खरबूज और तरबूज महज दा़ई से साढ़े तीन रुपये प्रति किलो की दर से खरीदते हैं और मंडी के बाहर 15 से 20 रुपये प्रति किलो बेचते हैं।

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किसानों से ढाई से साढ़े तीन रुपये में खरीदकर 15 से 20 रुपये प्रति किलो खरबूजा व तरबूज बेच रहे बिचौलिये

बता दें कि कपूरथला मंडी से गुजरात, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, हरियाणा एवं दिल्ली आदि अनेक राज्यों को खरबूजा व तरबूज सप्लाई होता है। इस साल लाकडाउन की वजह से अन्य राज्यों को इनकी पूरी सप्लाई नहीं हो रही है। इससे किसान कम कीमत पर अपनी फसल बेचने को विवश हैं। यहां तक कि उनको लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। किसानों का खरबूजा व तरबूज मंडी में ढाई से साढ़े तीन रुपये प्रति किलो बिक रहा है। मंडी में बिचौलिया इन्हें खरीद लेते हैं। मंडी से बाहर 100-200 मीटर की दूरी पर जाते ही ये खरबूजा व तरबूज 15 से 20 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहे हैं।

किसानों से व्यापारी या आढ़ती ढाई से साढ़े तीन रुपये में खरीदकर आगे मंडी में आठ रुपये तक बेचते हैं। मंडी से बाकी दुकानदार या रेहड़ी वाले दस से 12 रुपये में खरीदकर कर रिटेल में 15 से 20 रुपये प्रति किलो में बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं।

बीज ही मिलता है 20 से 25 हजार रुपये प्रति किलो

गांव बरिंदपुर में करीब 150 एकड़ में खरबूजे की खेती करने वाले नवजोत सिंह ढोट बताते हैं कि उन्होंने इस बार मधु 149, सम्राट, गोल्डन जुबली एवं फार्मर ग्लोरी चार किस्म के खरबूजों की बिजाई की है। खरबूजे का बीज 20 से 25 हजार रुपये किलो आता है, जिससे चार एकड़ में बिजाई होती है। इसके अलावा दो बोरे डीएपी खाद डालनी पड़ती है। 

वह बताते हैं कि सुंडी, वायरस एवं मच्छर इत्यादि से बचाव के लिए सात से आठ बार स्प्रे करना पड़ता है। हर स्प्रे पर करीब 2000 रुपये खर्च आता है। खरबूजे की लवाई, गुड़ाई व तुड़ाई सब कुछ मजदूर हाथ से ही करते हैं। इस समय मंडी में खरबूजा ढाई से साढ़े तीन रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है, जिससे लागत भी पूरी नहीं आ पा रही है। नवजोत के पिता लखबीर सिंह का कहना है कि वह करीब 50 साल से खरबूजे की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन इतनी मंदी पहले बहुत कम देखने को मिली है।

सात-आठ रुपये किलो बिके तो होगा लाभ

गांव डडविंडी के युवा किसान प्रभजोत सिंह प्रिंस कहते हैं कि उन्होंने करीब 90 एकड़ में खरबूजे की बिजाई की है। शुरू में कुछ दिन सात-आठ रुपये किलो खरबूजा बिका था, लेकिन फिर बरसात होने के बाद करीब तीन रुपये पर आ गया। खरबूजे का अधिकांश काम हाथ से होता है। मजदूर एक दिन का 350 से 400 रुपये तक दिहाड़ी लेते हैं। प्रति किलो सात-आठ रुपये से अधिक में फसल बिकेगी तो कुछ लाभ मिल सकता है।

कोरोना संक्रमण व लाकडाउन से कम आए हैं व्यापारी

गांव बरिंदपुर एवं बहुई में करीब 250 एकड़ में तरबूज व खरबूजे की बिजाई करने वाले कुलदीप सिंह ढोट कहते हैं कि मंडी में तरबूज व खरबूजे ढाई से साढ़े तीन रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहे हैं। मंडी में बिकने के बाद ये बाहर 15 से 20 रुपये किलो बिकने लगते हैं। उन्होंने बताया कि खरबूजे की तुलना में तरबूज की पैदावार अधिक होती है, लेकिन सारा कुछ रेट पर ही निर्भर करता है।

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उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण व लाकडाउन की वजह से मंडियां बहुत कम समय के लिए खुलती हैं। दूसरे राज्यों से इस बार व्यापारी भी कम आए हैं। इससे भी किसानों को रेट कम मिल रहा है। अगर अन्य राज्यों से व्यापारियों को आने की छूट मिल जाए तो किसानों का कुछ भला हो सकता है।

अन्य राज्यों को पचास फीसद कम हो रही सप्लाई

नई सब्जी मंडी के आढ़ती दिनेश कौड़ा का कहना है कि कपूरथला से पहले अन्य राज्यों को रोजाना करीब पांच सौ ट्रक, टेंपो व अन्य गाडि़यों में खरबूजा व तरबूज सप्लाई होता था। इस समय यह लगभग पचास फीसद कम होकर 200 से 250 गाडि़यों तक सीमित रह गया है।

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