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प्रिंसिपल जगरूप सिंह का कल्चरल ब्वॉय से राइटर बनने तक का सफर..

पहले स्किट, माइम, मोनो ए¨क्टग से स्टेज जीती, फिर लिखने की स्किल भी बेहतर हो गई। मैंने कविताएं और कहानियां लिखनी शुरू की। विद्यार्थी जीवन में मेरी पहली किताबी 'निक्के निक्के सूरज' छपी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 08:21 PM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 08:21 PM (IST)
प्रिंसिपल जगरूप सिंह का कल्चरल ब्वॉय से राइटर बनने तक का सफर..
प्रिंसिपल जगरूप सिंह का कल्चरल ब्वॉय से राइटर बनने तक का सफर..

जालंधर : मेरी कॉलेज स्टडी की शुरुआत डीएम कॉलेज मोगा से हुई है, वहां एक्टर सोनू सूद की माता जी मेरी अध्यापिका थी। 1987 में सिविल इंजीनिय¨रग के लिए गुरु नानक इंजीनिय¨रग कॉलेज, लुधियाना में दाखिला मिलना किसी गर्व से कम नहीं था। इसी गर्व ने आगे चलकर मुझे कल्चरल ब्वॉय और फिर राइटर बनाया। टीचर्स के साथ के साथ ही मेरा कल्चरर एक्टीविटीज का सफर भी शुरू हो गया। पहले स्किट, माइम, मोनो ए¨क्टग से स्टेज जीती, फिर लिखने की स्किल भी बेहतर हो गई। मैंने कविताएं और कहानियां लिखनी शुरू की। विद्यार्थी जीवन में मेरी पहली किताबी 'निक्के निक्के सूरज' छपी। रात को जाते थे स्पेशल परांठे खाने

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स्टडी और एक्टीविटीज को लेकर जितनी मेहनत की, उतनी ही दोस्तों के साथ मिलकर खूब शरारतें भी की। टीचर्स की ए¨क्टग करना, अटैंडेंस लगाकर क्लास से चोरी छुपे निकल जाना तो आम हो गया था। होस्टल के दोस्तों के साथ रात 12 बजे पराठे खाने जाते थे। किसी खास दिन पर कॉलेज बंक भी करते। उस समय रै¨गग भी काफी प्रचलित थी लेकिन किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाया जाता है। सीनियर्स से सिर्फ मस्ती करते थे।

..वहीं गेस्ट बनकर पहुंचा

गुरु नानक इंजीनिय¨रग कॉलेज में मैंने कई एक्टीविटीज में भाग लिया था। जिस स्टेज पर परफॉर्म करता था एक दिन वहीं गेस्ट बनकर पहुंचा तो बेहद अच्छा लगा। मुझे अपनी किताब के लिए भाई मिन्ना ¨सह (नाटककार गुरशरण ¨सह) के हाथों इनाम भी मिला। किताबों की कई कई बड़ी प्रसिद्ध हस्तियों ने फोन पर सराहना भी की। ..जब यूथ फेस्ट के दिन हुआ आतंकी हमला

1990 में थापर कॉलेज में यूथ फेस्टिवल था जिसके लिए हमने कई महीनों पहले ही तैयारी शुरू कर दी। हमारी परफॉर्मेंस अभी बाकी थी कि अचानक बाहर से आवाजें आने लगी। कॉलेज के गा‌र्ड्स ने सारे दरवाजे बंद कर दिए। कुछ देर बाद पता चला कि बाहर आतंकवादियों ने हमला किया है। कई घंटों बाद शोर शांत हुआ तो चैन की सांस ली। --

कॉलेज के समय में मस्ती बहुत की है लेकिन कभी टीचर्स का निरादर नहीं किया। स्व. प्रोफेसर कमजीत ¨सह ने मुझे बेहद स्पोर्ट किया। मुझे उन्होंने ही कल्चरर एक्टविटीज को लेकर प्रोत्साहित किया।

--जगरूप ¨सह, ¨प्रसिपल, मेहर चंद पॉलिटेक्निकल कॉलेज, जालंधर


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