क्लेम खारिज करने में देरी, ब्याज समेत अस्पताल का खर्चा दे बीमा कंपनी
कंज्यूमर फोरम ने बीमा कंपनी को ब्याज समेत अस्पताल का खर्चा और बीस हजार का हर्जाना देने के आदेश दिए। मॉडल टाउन के बलजीत सिंह ने फोरम को यह शिकायत की थी।
जालंधर, जेएनएन। क्लेम खारिज करने की सूचना देने में लगभग एक साल की देरी को आधार मानते हुए जिला कंज्यूमर फोरम ने बीमा कंपनी को ब्याज समेत अस्पताल का खर्चा और बीस हजार का हर्जाना देने के आदेश दिए। मॉडल टाउन में पंजाब ऑप्टिकल हाउस चलाने वाले बलजीत सिंह ने फोरम को यह शिकायत की थी। इसमें अस्पताल में भर्ती व डिस्चार्ज होने के बाद तय वक्त पर आवेदन न देने की वजह से ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी ने उनका क्लेम खारिज कर दिया था।
मॉडल टाउन निवासी बलजीत सिंह ने कंज्यूमर फोरम को दी शिकायत में कहा कि उन्होंने ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी से सिल्वर प्लान के अधीन हैप्पी फैमिली फ्लोटर पॉलिसी खरीदी थी, जो उनकी पिछली पॉलिसी के साथ ही जुड़ी हुई थी। इस पॉलिसी की अवधि 27 अप्रैल 2015 से एक साल के लिए थी। प्रीमियम के तौर पर उन्होंने इसके 19,365 रुपये भी जमा किए थे। पॉलिसी देते वक्त कंपनी के एजेंट ने कहा था कि इसमें पांच लाख तक के अस्पताल के खर्चे कवर हो जाएंगे। इसी दौरान शिकायतकर्ता को चलने में दिक्कत, कब्ज व पेशाब से जुड़ी बीमारी हो गई और वो नासा ब्रेन व स्पाइन सेंटर में भर्ती रहे।
नौ अप्रैल को भर्ती होने के बाद 15 अप्रैल को वो वहां से डिस्चार्ज हुए। उन्होंने इलाज पर तीन लाख खर्च किए। इसके क्लेम के लिए उन्होंने बीमा कंपनी को जरूरी दस्तावेजों के साथ आवेदन कर दिया। पहले कंपनी इसे लटकाती रही और फिर 16 नवंबर 2016 पॉलिसी के हिसाब से तय वक्त पर क्लेम न करने का तर्क देकर आवेदन खारिज कर दिया।
तय वक्त पर नहीं किया क्लेम
बीमा कंपनी ने जवाब दिया कि शिकायतकर्ता ने 14 मई 2015 को उनके पास क्लेम किया, जबकि पॉलिसी के हिसाब से अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटे के भीतर और डिस्चार्ज होने से पहले क्लेम के बारे में जानकारी देनी होती है। फिर डिस्चार्ज होने के सात दिन के भीतर संबंधित दस्तावेज जमा करने होते हैं। मगर, शिकायतकर्ता ने तय वक्त पर क्लेम नहीं किया। हालांकि कंपनी ने माना कि शिकायतकर्ता ने पॉलिसी ली थी और 1 लाख, 16 हजार 206 रुपये का क्लेम मांगा था।
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद निकाला निष्कर्ष
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद फोरम ने निष्कर्ष निकाला कि तय वक्त पर आवेदन न करने से शिकायतकर्ता का क्लेम खारिज हुआ लेकिन बाद में कंपनी ने उस पर दोबारा विचार करने की बात कही लेकिन अभी तक क्लेम नहीं दिया गया। फोरम ने माना कि शिकायतकर्ता ने डिस्चार्ज होने के तीस दिन बाद क्लेम के लिए आवेदन किया लेकिन बीमा कंपनी की तरफ से उसे इतने लंबे वक्त तक पेंडिंग क्यों रखा गया? क्लेम खारिज होने के बारे में 16 नवंबर 2016 को पत्र भेजा गया। अगर कोई कमी थी तो कंपनी को उसी वक्त फैसला लेना चाहिए था। इसमें एक साल का वक्त लेना सेवा में कमी का मामला बनता है। इसके बाद फोरम ने कंपनी को आदेश दिए कि वो शिकायतकर्ता को अस्पताल खर्चे के 1,16,206 रुपये अदा करे और क्लेम खारिज होने की सूचना देने की तारीख यानि 16 नवंबर 2016 तक का नौ फीसद ब्याज भी दे। शिकायतकर्ता को हुई परेशानी के एवज में बीस हजार का हर्जाना और केस खर्च के तौर पर दस हजार रुपए देने के आदेश दिए।