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जालंधर के सिविल अस्पताल में इकलौता ट्रामा सेंटर, सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति पहुंच जाए तो भी कोई फायदा नहीं

हाईवे के नजदीक एक भी सरकारी ट्रामा सेंटर नहीं सरकारी अस्पताल में बना ट्रामा सेंटर खुद बीमार बिना डाक्टर और दर्जा चार कर्मचारी केवल नर्सों के सहारे इलाज। घायलों को दवाएं तक नहीं मिलती। लोगों को निजी अस्पतालों में बने ट्रामा सेंटर में घायल को ले जाना पड़ता है।

By Edited By: Published: Fri, 18 Nov 2022 07:19 PM (IST)Updated: Sat, 19 Nov 2022 03:19 AM (IST)
जालंधर के सिविल अस्पताल में इकलौता ट्रामा सेंटर, सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति पहुंच जाए तो भी कोई फायदा नहीं
ट्रोमा सेंटर को नेशनल हाइवे अथारिटी की ओर से दी गई एंबुलेंस, जो खस्ताहाल हो चुकी है। जागरण

जगदीश कुमार, जालंधर। जिले की सीमा में आते 185 किलोमीटर के नेशनल हाईवे पर होने वाले सड़क हादसों के बाद घायलों को सरकारी ट्रामा सेंटर तक ले जाना भी कड़ी चुनौती है। नेशनल हाईवे अथारिटी के पास घायलों को प्राथमिक सहायता देने व अस्पताल पहुंचाने के लिए कोई संसाधन नहीं है। हाईवे पर एंबुलेंस सेवा लेने के लिए न तो कोई हेल्पलाइन नंबर लिखा गया और न ही एंबुलेंस की व्यवस्था की गई।

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अगर किसी गंभीर घायल मरीज को सिविल अस्पताल में बनाए गए सरकारी ट्रामा सेंटर में लाना पड़ जाए तो एक घंटा तक लग जाता है। पंजाब हेल्थ सिस्टम कारपोरेशन के राज्य में सबसे बड़े शहीद बाबू लाभ सिंह सिविल अस्पताल में बना लेवल-2 का ट्रामा सेंटर नेशनल हाईवे से करीब साढ़े चार किलोमीटर की दूरी पर है। यहां पहुंचने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

पीएपी चौक से नामदेव चौक तक तो आसानी से पहुंच जाते है लेकिन इसके बाद भगवान श्रीराम चौक, भगवान वाल्मीकि चौक से होते ही सिविल अस्पताल तक पहुंचने के लिए भारी भरकम जाम में फंसना पड़ता है। कई बार तो अस्पताल के बाहर ट्रैफिक अव्यवस्था के चलते एंबुलेंस को सिविल अस्पताल के मुख्यद्वार से इमरजेंसी तक पहुंचने के लिए ही तीन से पांच मिनट लग जाते है। हालांकि रात के समय आसानी से पहुंचा जा सकता है।

जालंधर में सिविल अस्पताल के बाहर दिन में ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी रहती है। 

अगर मरीज पहुंच भी जाए तो भी कोई खास फायदा नहीं होने वाला। कारण, सरकारी ट्रामा सेंटर खुद च्ट्रामाज् का शिकार हो चुका है। सेंटर में न स्टाफ, और न डाक्टर। दर्जा चार कर्मचारियों की भी भारी कमी है। ज्यादातर मरीजों को दवाइयों को लेकर भी तरसना पड़ता है। सरकार ने कोरोना काल में इसे आईसीयू बना दिया और वेंटीलेटर व उपकरण मुहैया करवाए थे। इसके बाद से यह कोरोना वार्ड ही बनकर रह गया।

ट्रामा सेंटर की एंबुलेंस भी बूढ़ी हो चुकी है। एंबुलेंस में वेंटीलेटर सहित अन्य महत्वपूर्ण उपकरण एक-एक कर चोरी हो चुके है और अस्पताल प्रशासन ने कभी सुधबुध नहीं ली। अब एंबुलेंस केवल सामान की ढुलाई के काम आ रही है। अस्पताल की इमरजेंसी एंबुलेंस 108 की सेवाओं पर पूरी तरह निर्भर है।

रोड सेफ्टी प्रोजेक्ट के तहत 1.30 करोड़ में तैयार हुआ था ट्रामा सेंटर

केंद्र सरकार ने रोड सेफ्टी प्रोजेक्ट के तहत नेशनल हाईवे अथारिटी के सहयोग से 1.30 करोड़ की लागत से लेवल-2 ट्रामा सेंटर तैयार किया था। इसका उद्घाटन 27 नवंबर 2009 को उस समय की सेहत मंत्री प्रो. लक्ष्मी कांता चावला ने किया था। करीब चार साल तक केंद्र सरकार के सहयोग चलाने के बाद फंड बंद हो गया और डाक्टर व ज्यादातर पैरामेडिकल स्टाफ के सदस्य नौकरी छोड़ गए। इसके बाद वीवीआईपी आईसीयू के रूप में चल रहा है। जो स्टाफ ट्रामा सेंटर में तैनात किया गया, उनकी सिविल अस्पताल में सेवाएं ली जा रही हैं।

हर 25 किलोमीटर दायरे में होनी चाहिए एक एंबुलेंस

रोड सेफ्टी एक्सपर्ट सुरिंदर सैनी का कहना है कि नेशनल हाईवे अथारिटी की ओर से 20 से 25 किलोमीटर के दायरे में एक एंबुलेंस मुहैया करवाने का प्रावधान है। पहले रामामंडी चौक के पास एंबुलेंस खड़ी मिलती थी लेकिन दो साल से नहीं दिखी। पंजाब स्टेट पुलिस एपेक्स कमेटी आफ एनजीओज ने जिला पुलिस को पांच एंबुलेंस दी है। इनके स्टाफ को भी प्राथमिकी सहायता के लिए ट्रेनिंग दी गई है।

फिल्लौर स्थित टोल प्लाजा पर खड़ी एंबुलेंस। एंबुलेंस में प्राथमिकी सहायता के लिए नाममात्र उपकरण हैं।

टोल प्लाजा पर भी प्राथमिकी सहायता राम भरोसे

जिले में नेशनल हाईवे पर फिल्लौर में टोल प्लाजा है। वहां जुगाड़ वाली इनोवा गाड़ी में एंबुलेंस बनाकर रखी गई है। एंबुलेंस में न तो पूरी तरह से मरीज को लिटाने की व्यवस्था है और न ही दवाओं का इंतजाम है। केवल जनरल बीमारियों के इलाज के लिए चंद दवाइयां है।

एंबुलेंस का एक ही ड्राइवर है जो 24 घंटे ड्यूटी करता है। एक डाक्टर तैनात कर रखा है जो सुबह 9 से साम 5 बजे तक ड्यूटी करता है। रात को कोई भी सड़क हादसे का मामला आता है तो उसे एंबुलेंस का ड्राइवर ही हैंडल करता है। अगर गंभीर है तो उसे सिविल अस्पताल फिल्लौर में दाखिल करवाया जाता है।

स्टाफ नहीं मिला तो ट्रामा सेंटर को सिविल अस्पताल से ही जोड़ लिया

सिविल अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डा. राजीव शर्मा का कहना है कि ट्रामा सेंटर को सिविल अस्पताल के साथ जोड़ा गया है। स्टाफ की भारी कमी है। स्टाफ पूरा करने के लिए विभाग के पत्र लिखा गया है। विभाग के पास एमपी लैड फंड से दो वेंटीलेटर वाली एंबुलेंस हैं, जिनका आपातकाल में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा राज्य सरकार ने इमरजेंसी एंबुलेंस 108 को भी सरकारी सुविधाओं के साथ जोड़ा गया है।

ट्रोमा सेंटर में स्टाफ की किल्लत

स्टाफ            स्टाफ की जरूरत          मौजूदा स्थिति

न्यूरोसर्जन             01                          00

रेडियोलाजिस्ट        02                          00

कैजुएलिटी मेडिकल अफसर 08              00

नर्सें                      40                           14

नर्सिंग अटेंडेंट         07                          05

ओटी टेक्नीशियंस    05                          00

रेडियोग्राफर            04                         00

लैब टेक्नीशियंस       02                          00

मल्टी टास्क वर्कर    15                           00

हड़्डी रोग माहिर    03                            03

सर्जन                     02                           00

एंस्थिसियालिस्ट        03                           00

--- सरकारी एंबुलेंस सेवाएं सेहत विभाग के पास एंबुलेंस आठ और ड्राइवर तीन इमरजेंसी एंबुलेंस 108- 24 एंबुलेंस रेडक्रास सोसायटी -07 एंबुलेंस ---- यहां भी हैं ट्रामा सेंटर लेकिन हाईवे अथारिटी के न पैनल में शामिल और न इनसे टाईअप किया गया जौहल अस्पताल रामामंडी। पिम्स, गढ़ा। एसजीएल अस्पताल, गढ़ा। सत्यम अस्पताल कपूरथला चौक। सेक्रेड हार्ट अस्पताल, मकसूदां। कमल अस्पताल नकोदर। इनोसेंट हार्टस अस्पताल, नकोदर रोड। कपूर बोन एंड चिल्ड्रन अस्पताल अस्पताल पठानकोट चौक। श्रीमन अस्पताल पठानकोट रोड कैपिटोल अस्पताल पठानकोट रोड बीएसएफ बेस अस्पताल। सेना का अस्पताल।

दैनिक जागरण की टीम ने दौरा देखा-किन हालात में चल रहा ट्रामा सेंटर

सिविल अस्पताल के ट्रामा सेंटर में प्रवेश करते ही अंधेरे से स्वागत होता है। ट्रामा सेंटर में वीरवार रात को कुल नौ मरीज दाखिल थे। इनमें से एक भी मरीज सड़क हादसों का शिकार नहीं था। सभी मरीज वो थे जिन्हें वेंटीलेटर की जरूरत हो और उनको सिविल अस्पताल से शिफ्ट किया गया था। ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर का कमरा खाली मिला। एक नर्से ग्राउंड फ्लोर पर अपने कमरे में बैठी थी और दूसरी पहली मंजिल पर आईसीयू में दाखिल मरीज को ग्लूकोज लगा रही थी। उनकी सहायता केवल दो नर्सिंग छात्राएं कर रही थी।

ट्रामा सेंटर में न तो डाक्टर था और न ही दर्जा चार कर्मी। स्वजन अपने मरीजों को खुद ही व्हीलचेयर पर बिठाकर शौचालय के लिए लेकर जा रहे थे। बेड पर मरीजों के लिए न चादरें और न ही सर्दी से बचाव के लिए कंबल मिले। नर्सें कम होने की वजह से एक मरीज तो खुद ही अपना ग्लूकोज कंट्रोल करता दिखा। दवाइयों की भी किल्लत देखी गई। ट्रामा सेंटर का आईसीयू एक जनरल वार्ड बन चुका है जहां मरीजों के स्वजनों की भीड़ और सभी जूते डालकर खुलेआम घूमते है और स्टाफ आंखें मूंद कर ड्यूटी करता है।

यह हाल राज्य में सरकार की तरफ से बनाए गए उस ट्रामा सेंटर का है, जहां सड़क हादसे के बाद मरीज को लाने की ड्यूटी है। इस बारे में एमएस डा. राजीव शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि स्टाफ की कमी के चलते सड़क हादसे में घायल व्यक्ति पहले इमरजेंसी वार्ड में पहुंचते है और वहां पड़ताल व प्राथमिकी सहायता के बाद उसे ट्रामा वार्ड में शिफ्ट किया जाता है।डाक्टरों की कमी होने के कारण रात को एक ही रेजीडेंस डाक्टर पूरे अस्पताल में दाखिल मरीजों को देखता है।


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