जालंधर कैंट की इमारतों ने तय किया गुलामी से आजादी तक का सफर, जलियांवाला बाग कांड के समय यहीं रहते थे जनरल डायर
जालंधर के छावनी इलाके को करीब 1300 सैनिकों के फौज के लिए निर्मित किया गया था। पहली मई 1849 में बनाई गई इस छावनी में विभिन्न धर्मों के धार्मिक स्थलों सहित कैंट क्लब की इमारतें आज भी यहां की शान है।
मनाेज त्रिपाठी, मनुपाल शर्मा, जालंधर। देश के तमाम सैन्य इलाकों में शामिल जालंधर के सैन्य इलाके की तमाम इमारतों ने गुलामी से लेकर आजादी तक के सफर को अपने अतीत की यादों में आज भी छिपाकर रखा है। यही वजह है कि यहां की इमारतों की बात ही कुछ और है।
कैंट क्लब की इमारतें आज भी यहां की शान
4463 एकड़ में फैले जालंधर के छावनी इलाके को करीब 1300 सैनिकों के फौज के लिए निर्मित किया गया था। पहली मई 1849 में बनाई गई इस छावनी में विभिन्न धर्मों के धार्मिक स्थलों सहित कैंट क्लब की इमारतें आज भी यहां की शान है। जालंधर से इस छावनी के सैनिकों द्वारा मुल्तान (अब पाकिस्तान) तक का एरिया कवर किया जाता था। जालंधर का राज उस दौर में पाकिस्तान के मुल्तान तक होता था।
यही वजह है कि यहां के पहले कमांडर ब्रिगेडियर एचएम व्हीलर ने लाइट कैवेलरी रेजिमेंट (214 पुरुष), हॉर्स आर्टिलरी की एक टुकड़ी (42 गनर के साथ दो बंदूकें) और दो देशी पैदल सेना बटालियन (1,045 पुरुष) के साथ गुलामी के दौर में इस छावनी का सफर शुरू किया था जो आजादी के बाद से लेकर आज तक की यादों को अपने अंदर छिपाए हुए है।
1905 में जालंधर क्लब का निर्माण
अंग्रेजों ने इस छावनी में अपने परिवारों के सामाजिक तौर पर मिलने के लिए 1905 में जालंधर क्लब का निर्माण करवाया था। इस क्लब के निर्माण के बाद यहां पर अंग्रेज सेना के अधिकारी अपने परिवारों के साथ पार्टियां करते थे। साथ ही जरूरत पड़ने पर खास-खास भारतीयों को भी इन पार्टियों में शामिल किया जाता था।
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जालंधर क्लब का फर्नीचर इस दाैर का करवाता है एहसास
आजादी के बाद इस क्लब का संचालन उसी प्रकार जारी रहा और भारतीय सेना ने इस क्लब को संचालित करना शुरू कर दिया। आज भी इस क्लब में सेना के अधिकारी ही ज्यादातर सदस्य हैं। सिविलियंस में से भी कुछ लोगों को इसका सदस्य बनाया जाता है, लेकिन क्लब ने उसी दौर का इंफ्रास्ट्रक्चर आज भी मेंटेन किया हुआ है और इमारत से लेकर अंदर रखे फर्नीचरों में काफी फर्नीचर भी उसी दौर के हैं जो यहां के सदस्यों को उस दौर का एहसास करवाते हैं।
जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम देकर सैकड़ों भारतीयों की हत्या करवाने वाले जनरल डायर यहां बनाई जिस इमारत में रहते थे, वह आज फौजियों के लिए खाना बनाने के मेस के रूप में इस्तेमाल में लाई जा रही है। जनरल डायर शुरू में छावनी के अंदर माल रोड पर स्थित फ्लैग स्टाफ हाउस में बसा था, लेकिन बाद में उसने अपने लिए कालोनियल पैटर्न पर एक घर बनाने का फैसला किया और इसे ‘द लान्ग एश्टन’ नाम दिया था।
जलियांवाला बाग कांड के समय यहीं रहते थे जनरल डायर
बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग की घटना की निगरानी के लिए रवाना होने से दो दिन पहले जनरल डायर 11 अप्रैल 1919 तक यहां रहा। कभी इसी इमारत से जारी होने वाले फरमान लोगों की जिंदगी लील लेते थे, लेकिन आज यह फौजियों का पेट भरने के लिए इस्तेमाल में लाई जा रही है। रोजाना आलू, गाजर, मूली व तमाम प्रकार की सब्जियां सुबह-सुबह से ही यहां अपनी खुशबू बिखेरनी शुरू कर देती हैं।
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सेंट मैरी कैथेड्रल गिरजाघर
अंग्रेजों ने अपने धर्म को बढ़ावा देने के लिए 1847 में सेंट मैरी कैथेड्रल गिरजाघर का निर्माण करवाया था। इसी के नजदीक पुराना गिरजाघर सेंट पैटिक को समर्पित था और इसका निर्माण किया गया था। इसी गिरजाघर में कभी ब्रिटिश सैन्य अधिकारी व नागरिक प्रार्थना के लिए आते थे। इसकी निर्माण शैली अंग्रेजों के शासनकाल की शैली के साथ मेल खाती है। गिरजाघर उस दौर से लेकर आज तक खास समुदाय के साथ-साथ दूसरे समुदाय के लिए भी अलग महत्व रखता