परछाइयों से खेलते-खेलते यूं चमक गए थे दो भाई, ये हैं कुछ स्मृतियां...
‘बलराज माय ब्रदर’ में पद्मभूषण भीष्म साहनी ने रावलपिंडी में गुजरे बचपन व जवानी के भी कुछ किस्से साझा किए हैं। उन्हीं में से कुछ स्मृतियां प्रस्तुत हैं...
जेएनएन, जालंधर। घर के अंधियारे में परछाइयों से खेलते-खेलते दो भाई अभिनय व साहित्य जगत के चमकते सितारे बन गए। ये थे अभिनेता बलराज साहनी और भीष्म साहनी। अपनी पुस्तक ‘बलराज, माय ब्रदर’ में पद्मभूषण भीष्म साहनी ने रावलपिंडी में गुजरे बचपन व जवानी के भी कुछ किस्से साझा किए हैं। उन्हीं में से कुछ स्मृतियां प्रस्तुत हैं...
बीते जमाने के सिने स्टार बलराज साहनी के छोटे भाई भीष्म साहनी ने पढ़ाई अंग्रेजी में की थी। मातृभाषा उनकी पंजाबी थी, लेकिन लिखते हिंदी में थे। खालसा कॉलेज अमृतसर के प्रिंसिपल डॉ. महल सिंह कहते हैं कि विभाजन के बाद उन्होंने 1948-1951 तक हमारे कालेज में अंग्रेजी पढ़ाई। फिर पंजाब यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने चले गए। डॉ. भीष्म साहनी ने अपने भाई की बायोग्राफी ‘बलराज माई ब्रदर’ लिखी। इसी कृति में उनके बचपन की झलक दिखती है। रावलपिंडी में हरबंस लाल साहनी व लक्ष्मी देवी के घर जन्मे बलराज साहनी व भीष्म साहनी के भविष्य की नींव कुछ यूं पड़ी थी...
वो परछाइयों का खेल
दोनों भाई घर पर ही महाराणा प्रताप व भगत सिंह की फोटो के कटआउट बनाकर उनके पीछे मोमबत्ती जलाकर रखते और दीवार पर उसकी जो बड़ी परछाई दिखती उसे ही हिलाते हुए पूरा नाटक खेला करते थे। सारे परिवार को वहां बैठाकर महाराणा प्रताप या भगत सिंह की जीवनी से संबंधित कहानियों का मानो नाटकीय मंचन वे वहां कर दिया करते। इस दौरान तरह-तरह की आवाजें अपने मुंह से ही निकालकर नाटक का म्यूजिक भी स्वयं ही दिया करते थे। कहीं न कहीं इसी खेल से एक ओर बलराज साहनी को अभिनय का और भीष्म साहनी को नाटक लेखन का शौक पड़ा। आगे चल कर दोनों ने ही अपने-अपने क्षेत्र में खूब नाम कमाया।
क्यों था उनके घर में अंधेरा?
भीष्म साहनी ने लिखा है ‘रावलपिंडी में बिजली सप्लाई 1929 में शुरू हो गई थी, लेकिन हमारे घर में बिजली सबसे अंत में आई, क्योंकि पिता जी के मन में कहीं से यह बात बैठ गई थी कि बिजली आंखों के लिए नुक्सानदायक है। इसी बात को लेकर घर में कई बार चर्चा होती। अंतत: जब घर में बिजली आई तब भी सबसे कम वॉट के बल्ब लगाए गए थे, ताकि आंखें सुरक्षित रहें। हम उसी रोशनी में पढ़ाई करने को मजबूर थे।’
सबकी परेशानी का सबब बनी वह शरारत
एक अन्य वाक्या रहा जब पूरा परिवार एक शरारत के कारण काफी परेशानी में रहा। हुआ यूं कि हमारी बहन उर्मिला शास्त्री, जो रायबरेली में रहती थीं व कांग्रेस की कार्यकर्ता भी थीं, को भाई बलराज ने एक पत्र में लिखा था, ‘दो बम का ऑर्डर दे दिया है’। यह पत्र पुलिस के हाथ लग गया और पूरी पुलिस टीम उनके घर का सर्च वारंट लेकर पहुंच गई थी। सभी सामान उथल-पुथल करके भी उन्हें कुछ नहीं मिला और उस सब हंगामे के बाद पता चला कि भाई साहब ने टांगे में घोड़े के दोनों ओर लगाए जाने वाले बंबू (जिन्हें बम भी कहा जाता है) के बारे में बहन को सूचित करना चाहा था, लेकिन शरारत वश उस पत्र में टांगे का जिक्र नहीं किया था।
वो गामाशाही जूते
भीष्म साहनी लिखते हैं, ‘हमारे घर में किसी को भी अंग्रेजी जूते पहनने की अनुमति नहीं थी। हम सभी गामाशाही जूते पहना करते थे। ये ऐसे जूते थे जिनके चमड़े को नर्म करने के लिए कई दिन तक खूब सरसों का तेल लगाना पड़ता था। वरना वो इतने काटते थे कि पांव में घाव हो जाते थे।’
‘अब वादे नहीं करता’
महान पंजाबी साहित्यकार गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की पुत्रवधु पूनम सिंह बताती हैं कि कहानियों में हमेशा पंजाबी पृष्ठभूमि की झलक रहती थी। एक बार उन्हें व रतिकंत सिंह को भीष्म साहनी से मुलाकात का मौका मिला तो उनसे उन्होंने अपनी पत्रिका के लिए कुछ लिखने का अनुरोध किया। तब वह तुरंत बोले कि ‘मैं वादे निभा नहीं पाता इसलिए अब मैं वादे नहीं करता।’ उनकी बात कितनी सरल व सहज थी। इतने बड़े लेखक थे, लेकिन सादगी से सराबोर रहे।
प्रसिद्ध कृतियां
इन पर बनी फिल्में- ‘तमस’, ‘मिस्टर एंड मिस्टर अय्यर’, ‘मोहन जोशी हाजिर हो’,
नाटक - ‘तमस’, ‘हानूश’,
उपन्यास - ‘साग मीट’, ‘कबिरा खड़ा बजार में’, ‘नील, नीलू, नीलोफर’, ‘मुआवजे’,
बायोग्राफी - ‘आज का अतीत’, ‘बलराज माय ब्रदर’
(इनपुटः वंदना वालिया बाली, अमृतसर से हरदीप रंधावा के इनपुट के साथ)
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