स्वस्थ रहना है तो किचन से स्टील के बर्तन हटा कांसा व पीतल अपनाएं
सोलन से पहुंचे आयुर्वेदाचार्य विजय कपूर ने कहा कि शरीर को बीमारियों का घर बनाने के बजाय अगर स्वस्थ जीवन जीना है तो सबसे पहले घर की किचन से स्टील के बर्तनों और प्लास्टिक की बोतलों को बाहर कर दें।
जासं, जालंधर : सोलन से पहुंचे आयुर्वेदाचार्य विजय कपूर ने कहा कि शरीर को बीमारियों का घर बनाने के बजाय अगर स्वस्थ जीवन जीना है तो सबसे पहले घर की किचन से स्टील के बर्तनों और प्लास्टिक की बोतलों को बाहर कर दें। कांसे व पीतल के बर्तनों को अपना लें। पीने का पानी प्लास्टिक की बोतलों में भरकर रखना है, तो उसमें तुलसी का एक पत्ता जरूर डाल दें। फिर पानी भूमिगत ताजा जल ही क्यों न हो, किसी फिल्टर की जरूरत नहीं है। तुलसी का पत्ता पानी में सभी बेक्टीरियल इन्फेक्शन दूर करने में सक्षम है।
आयुर्वेदाचार्य कपूर मंगलवार को मोता ¨सह नगर स्थित शिव मंदिर में खेती विरासत मंच के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में वे लोगों को दवाओं के बिना स्वस्थ जीवन जीने का मंत्र दे रहे थे। उन्होंने कहा कि आधुनिकीकरण के नाम पर हमने अपने शरीर को बीमारियों को घर बना दिया है। बोतलों में पानी पैक करके देसी व विदेशी कंपनियां धड़ल्ले से मिनरल वाटर बताकर बेच रही हैं, लेकिन सच्चाई ये है न देसी कंपनियों की बोतलों में मिनरल वाटर है न विदेशी कंपनियों की बोतलों में। लिक्विड फोर्म में कोई भी चीज पैक नहीं हो सकती है, जिसे मिनरल वाटर बताकर बोतलों में पैक करके बेचा जा रहा है, उसमें फिल्टरेशन के समय ज्यादातर मिनरल्स निकल जाते हैं। पानी को लंबे समय तक खराब होने से बचाने के लिए पेस्टीसाइड्स मिलाए जाते हैं, जिसे हम पी रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आज देश में डॉक्टरों की कमी की बात कही जा रही है, लेकिन डॉक्टरों की कमी की बात होनी ही नहीं चाहिए। हमारी 5000 पुरानी भारतीय संस्कृति के अनुसार अपने जीवन को ढाल लें तो बीमारियां रहेंगी ही नहीं। बीमारियां जीवन शैली में बदलाव के कारण हैं। घर में बनने वाली सब्जियों में टॉक्सिटी को खत्म करने के लिए आम की लकड़ी से बने चमचे का प्रयोग करें। चमचा न हो तो साधारण लकड़ी का भी प्रयोग किया जा सकता है। इस लकड़ी से सब्जी को एक बार हिला दिया जाय, तो उसकी टॉक्सिटी को दूर किया जा सकता है।
तुलसी के पत्ते की शक्ति को उन्होंने मौके पर साबित करके भी दिखाया। तुलसी के पत्ते को हाथ में लेने मात्र से शरीर की शक्ति में कई गुना इजाफा हो जाता है, सुनने में ये बात अजीब लग सकती है, लेकिन कार्यक्रम के बीच में आयुर्वेदाचार्य ने साबित करके दिखाया। वहां मौजूद प्रबुद्ध वर्ग के लोगों में एनआईटी के प्रोफेसर अजय त्रेहन भी मौजूद थे। आयुर्वेदाचार्य ने बताया कि पहले बच्चों के जन्म के समय कांसे की थालियां बजाई जाती थीं, ये ढकोसला नहीं है, इससे वातावरण स्वच्छ होता है। उन्होंने दावा कि एलोपैथी ने कई जीवन रक्षक दवाइयां बनाईं, उनमें से सैकड़ों दवाएं हानिकारक बताकर दुनिया ने प्रतिबंधित कर दीं, आयुर्वेद में आज तक कोई ऐसी दवा नहीं बनी जो प्रतिबंधित करनी पड़ी हो, सच्चाई को किसी सबूत की जरूरत नहीं है, इसे दुनिया को मानना ही पड़ेगा। वेदों पर आधारित भारतीय जीवनशैली ही स्वस्थ जीवन का आधार है, जिसने अपना लिया वह स्वस्थ रहेगा, अन्यथा बीमारियां तो आज के दौर में हर तरफ पसरी पड़ी हैं। कार्यक्रम में खेती विरासत मिशन के पंकज जैन, लिपिका कोचर रीति जैन आदि प्रमुख रूप से शामिल थे।