कौन सी 'घुट्टी' पिलाई डीसी ने? कोरोना मरीजों के खुले 26 निजी अस्पताल के द्वार
डीसी घनश्याम थोरी द्वारा इलाज व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने के बाद पिजालंधर के पिम्स में मरीजों का इलाज शुरू कराया और 26 निजी अस्पताल भी इलाज को तैयार हो गए।
जालंधर, [मनीष शर्मा]। कोरोना महामारी शुरू हुई तो इसका इलाज तो दूर, निजी अस्पतालों ने जुकाम-बुखार के मरीजों से भी दूरी बना ली। मरीज में कोरोना जैसे लक्षणों का पता लगते ही तुरंत उसे सिविल अस्पताल रवाना कर दिया जाता था। कई अस्पतालों ने तो अपनी फीस तक बढ़ा दी, ताकि मरीज इसे सुनकर आएं ही न। हालात यह थे कि दस डॉक्टरों ने मिलकर शाहकोट में कोविड केयर सेंटर खोला तो उसे भी बंद करने की नौबत आ गई। जाहिर था हर रोज बढ़ती मरीजों की गिनती सरकारी सेहत ढांचे से नहीं संभलनी थी। तब डीसी घनश्याम थोरी ने इलाज की व्यवस्था सुधारने की जिम्मेदारी खुद संभाली। पिम्स में मरीजों का इलाज शुरू कराया और 26 निजी अस्पताल भी इलाज को तैयार हो गए। अब चर्चा है कि आखिर डीसी ने इन्हें कौन सी 'घुट्टी' पिलाई?
चंडीगढ़ वालों की जालंधर से नाराजगी
चौंकिए नहीं! यह नाराजगी लोगों के बीच नहीं बल्कि ट्रांसपोर्ट विभाग के अफसरों की है। चंडीगढ़ बैठे ट्रांसपोर्ट विभाग के सेक्रेटरी व स्टेट ट्रांसपोर्ट कमिश्नर जालंधर से खफा लगते हैं। बात इक्का-दुक्का हो तो मान लें, लेकिन हर बार सुनवाई नहीं होती तो और क्या कहें। पहले तो महानगर होने के बाद भी यहां आरटीए सेक्रेटरी के अलावा कोई सहायक ट्रांसपोर्ट अफसर नहीं दिया। कागजों में जिनकी ड्यूटी लगाई, वे ज्वाइन करने ही नहीं आए। अब मौजूदा सेक्रेटरी के कोरोना पॉजीटिव आने के बाद वे छुट्टी पर हैं तो न कोई नया सेक्रेटरी लगाया गया और न दूसरे को चार्ज दिया गया। पूछने की कोशिश करो तो ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी व एसटीसी का न फोन उठता है, न मैसेज का जवाब मिलता है। ट्रांसपोर्ट मंत्री के तो दर्शन ही नहीं हुए। नतीजा, डीएल-आरसी समेत सब काम ठप पड़े हैं और सेक्रेटरी के कोरोना से ठीक होने का इंतजार हो रहा है।
डीसी साहब, दान पात्र लगा दो
जिस जिला प्रशासकीय कांप्लेक्स में डीसी से लेकर तमाम बड़े प्रशासनिक अफसर बैठते हों, उसे तो कोरोना वायरस से बचाव की मिसाल होना चाहिए था लेकिन यह मखौल बनकर रह गया है। थर्मल थर्मामीटर गेट पर बैठे पुलिस वालों ने सिर्फ दिखाने के लिए रखा है। किसी की जांच ही नहीं होती तो और क्या कहें। ऑटोमेटिक हैंड सैनिटाइजर लगे हैं लेकिन खाली ही पड़े रहते हैं। ज्ञान जरूर नोटिस लगाकर बांटा जा रहा है कि अंदर जाने से पहले हाथ सैनिटाइज कर लें। रही बात शारीरिक दूरी की तो वह इतनी ही है कि छोटे क्लर्क से लेकर बड़े अफसर तक आम लोगों से नहीं मिल रहे। बाकी कांप्लेक्स में शारीरिक दूरी की किसी को कोई फिकर नहीं है। वैसे, खाली मशीनें देखकर आने-जाने वाले वहां बैठे पुलिस वालों को ताना मारने से नहीं चूकते कि 'डीसी साब नूं केह के एत्थे इक सैनिटाइजर लइ दान पात्र रख लवो'।
कमिश्नरेट पुलिस दे रही 'पेटी' इंसाफ
कोरोना काल में पुलिस 'पेटी' इंसाफ दे रही है। चैंकिए नहीं, दरअसल जब से पुलिस कमिश्नर दफ्तर की पीए ब्रांच का कर्मचारी कोराना वायरस से संक्रमित पाया गया है तब से पूरी कमिश्नरेट पुलिस को सील कर दिया गया है। अफसर किसी से नहीं मिल रहे हैं। फरियादी को अंदर जाने नहीं दिया जा रहा। सिर्फ अफसरों के करीबी को ही अंदर जाने की इजाजत मिल पाती है। मुश्किल चाहे जितनी बड़ी हो, बाकी लोग तो बाहर बैठे कर्मचारियों के रहमोकरम पर ही निर्भर हैं। कोई फरियाद लेकर आता है तो उसे पेटी में डलवा दिया जाता है। फिर फरियादी इंसाफ की जगह भरोसा लेकर लौट आता है। साथ में उसे यह भी सुना देते हैं कि कोरोना चल रहा है, तो थोड़ी देर तो हो ही जाएगी। अब चूंकि अदालतों में भी अभी पूरी तरह से कामकाज शुरू नहीं हो पाया है, इसलिए फिलहाल जनता इसी पर निर्भर है।