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102 साल पहले ऐसे ही लॉकडाउन से दी थी मौत को मात, अंधविश्वास ने बढ़ाई थी समस्या

एक सदी पहले भी जिन देशों ने पहले ‘लॉकडाउन’ कर लिया था वहां मौतें कम हुई थीं। जो देरी से जागे उनकी हालत आज के इटली स्पेन और अमेरिका जैसी हुई।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 02 Apr 2020 10:23 AM (IST)Updated: Thu, 02 Apr 2020 10:39 AM (IST)
102 साल पहले ऐसे ही लॉकडाउन से दी थी मौत को मात, अंधविश्वास ने बढ़ाई थी समस्या

सुमित मलिक, जालंधर। कोरोना के कारण बढ़ रहे मौत के आंकड़ों ने 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू की याद दिला दी है। 1920 तक विभिन्न अंतराल में कहर बरपाने वाले इस फ्लू ने विश्व में पांच करोड़ से अधिक लोगों की जान ली थी। भारत में मौत का आंकड़ा एक करोड़ से अधिक था। बेइंतहा तरक्की के बावजूद हालात में ज्यादा अंतर नहीं हैं। एक सदी पहले भी जिन देशों ने पहले ‘लॉकडाउन’ कर लिया था, वहां मौतें कम हुई थीं। जो देरी से जागे उनकी हालत आज के इटली, स्पेन और अमेरिका जैसी हुई।

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कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के केलोव्ना शहर के मेयर डेनियल विल्बर सदरलैंड का 1918 में निकाला गया पब्लिक नोटिस वायरल हो रहा है। दैनिक जागरण ने इस नोटिस की सच्चाई जानी तो पता चला कि यह नोटिस उस समय प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक अखबार ‘केलोव्ना रिकॉर्ड’ में लगातार तीन सप्ताह तक दिया गया। समाचार पत्र के पहले पन्ने पर भी फ्लू से होने वाले नुकसान, लगाई गई पाबंदियों की खबरें थीं। 24 अक्टूबर 1918 को प्रकाशित अंक में पहली बार मेयर ने इस वायरस के शहर में घुसने के बारे में बताया। उसी दिन डॉक्टर नॉक्स की ड्यूटी लगाकर ऐसी इमारतों की तलाश करने को कहा गया, जिन्हें आइसोलेशन अस्पताल बनाया जा सके। अखबारों में विज्ञापन भी दिया गया कि वालंटियर नर्सिंग के रूप में काम करने के इच्छुक लोग संपर्क करें।

यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के आर्काइव में इस समाचार पत्र की प्रतियां आज भी हैं। नेशनल जियोग्राफिक की एक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन का पालन कराने के लिए सरकारों ने सख्ती भी की। सैन फ्रांसिस्को में एक हेल्थ वर्कर ने तीन लोगों को गोली मार दी थी। उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि एक व्यक्ति ने मास्क पहनने से मना कर दिया था। अमेरिका के एरिजोना में दस डॉलर का जुर्माना लगाया गया। 2007 में नेशनल स्टडी ऑफ सांइस की दो प्रकाशित दो अध्ययन रिपोर्टों में भी बताया गया है कि इन देशों ने महामारी का प्रभाव कम किया। उन रिपोर्टों के अनुसार स्कूल, चर्च, थियेटर व सार्वजनिक समारोह पर प्रतिबंध लगाना सबसे कारगर साबित हुआ। इससे मौत की दर तेजी से गिरी। जिस शहर ने जितनी जल्दी फैसले लिए और लोगों ने साथ दिया, उतनी जल्दी ही ये प्रतिबंध उनके शहर से हटे। लॉकडाउन के कारण फिलेडेल्फिया, न्यूयॉर्क, क्वीसलैंड, बेल्टीमोर, ओमाहा जैसे प्रांतों में मृत्यु दर दस फीसद से गिरकर एक फीसद से कम रह गई।

यह लिखा है इस नोटिस में

स्पेनिश इन्फ्लुएंजा के प्रसार को रोकने के लिए सार्वजनिक और निजी स्कूलों, चर्च, थिएटर, पिक्चर हॉल, पूल रूम व मनोरंजन के अन्य स्थानों समेत लॉज मीटिंगों को अगले नोटिस तक बंद कर दिया जाए। सभी सार्वजनिक समारोहों में दस से अधिक लोगों के शामिल होने पर मनाही है। यह नोटिस 24 अक्टूबर, 31 अक्टूबर व सात नवंबर के अंक में दिया गया।

अंधविश्वास ने बढ़ाई थी समस्या

उस समय लोग जागरूक नहीं थे। डॉक्टर से ज्यादा धार्मिक नेताओं पर उनका विश्वास था। अंधविश्वास का भी बोलबाला था, जिस कारण मौत का आंकड़ा बढ़ता गया। भारत में तब यह फ्लू एक समुद्री जहाज से आए सैनिकों के जरिए आया। उस समय भी आइसोलेट कर व हाईजीन बढ़ाकर लोगों को ठीक किया गया।

स्पेनिश फ्लू से जुड़े अहम तथ्य

  • सबसे पहले स्पेन ने इसके बारे में बताया, लिहाजा इसका नाम स्पेनिश फ्लू पड़ गया।
  • जिस देश या प्रांत ने इसे छिपाने की कोशिश की, वे सबसे अधिक प्रभावित हुए।
  • मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दादा फेड्रिक ट्रंप की 1918 में इसी फ्लू से मौत हुई थी।
  • गुजरात में रहते हुए महात्मा गांधी को भी फ्लू ने जकड़ा। वह कुछ सप्ताह तक तरल पदार्थों के सहारे जीए।
  • 1918 में स्पेनिश फ्लू से बच निकलने वाली 108 साल की ब्रिटिश महिला कोरोना से नहीं बच सकी। क्वारंटाइन होने के 24 घंटे के भीतर ही लंदन में दम तोड़ दिया।
  • विख्यात कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पत्नी व कई रिश्तेदारों की इस बीमारी से मृत्यु हुई। उनकी कविताओं में भी इसका जिक्र है।

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