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कामाक्षी देवी मंदिर में युधिष्ठिर ने की थी तपस्या

कमाही देवी में स्थित मां कामाक्षी देवी का मंदिर प्राचीन समय से ही भक्तों की श्रद्धा का केंद्र रहा है। यहां स्थापित पिडी के नीचे से जल निकलता है जो सामने बने सरोवर में गिरता है। मंदिर को नवरात्र के उपलक्ष्य में सुंदर सजाया गया है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 04:40 PM (IST)Updated: Wed, 14 Apr 2021 05:30 AM (IST)
कामाक्षी देवी मंदिर में युधिष्ठिर ने की थी तपस्या
कामाक्षी देवी मंदिर में युधिष्ठिर ने की थी तपस्या

सरोज बाला, दातारपुर

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कमाही देवी में स्थित मां कामाक्षी देवी का मंदिर प्राचीन समय से ही भक्तों की श्रद्धा का केंद्र रहा है। यहां स्थापित पिडी के नीचे से जल निकलता है, जो सामने बने सरोवर में गिरता है। मंदिर को नवरात्र के उपलक्ष्य में सुंदर सजाया गया है। भक्तों के लिए रहने व खाने के लिए मंदिर प्रबंधन की ओर से विशेष प्रबंध किया गया है। मां कामाक्षी दरबार होशियारपुर से वाया हरियाना 50 किमी व दसूहा से 20 और तलवाड़ा से 16 व मुकेरियां से 30 किमी दूर है। यहां पर निजी वाहनों के अलावा प्राइवेट व सरकारी बसों से भी पहुंचा जा सकता है। मंदिर में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए कई कमरे व दो बड़े सत्संग भवन है जो सभी सुविधाओं से सुसज्जित है। लंगर व्यवस्था लगातार सुचारू रूप से चल रही है। प्रतिदिन यहां दुर्गा माता की पूजा व आरती की जाती है। तपोमूर्ति महंत राजगिरी की अध्यक्षता में भागवत कथा, श्री राम कथा, विष्णु यश व धर्म सम्मेलन पूरे साल करवाए जाते हैं। महंत ने बताया कि मां कामाक्षी देवी सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी करती है। मेले में सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं।

इतिहास

शिवालिक पर्वतमाला की गोद में स्थित मां कामाक्षी देवी मंदिर में तपोमूर्ति महंत 108 राजगिरी की अध्यक्षता में नवरात्र के उपलक्ष्य में मेला लगाया जाता है। प्राचीन कथा के अनुसार यहां पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान मां की आराधना की थी। विराट नगरी दसूहा में रहते हुए ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर ने यहां तपस्या की थी। साल में दो बार लगने वाले नवरात्र मेले में असंख्य श्रद्धालु आते हैं और मन्नत मांगते हैं, पूरी होने पर ढोल बाजों के साथ खुशी का इजहार करते हैं। नवरात्र में ही श्रद्धालु यहां नवजात शिशुओं के मुंडन करवाने के लिए भी दूर दूर से आ रहे हैं।

मनोकामना पूरी होने पर बजते हैं ढोल

विभिन्न प्रांतों के श्रद्धालु माता के दरबार में हाजिरी लगवाते हैं। मनोकामनाएं पूरी होने पर प्रसाद, नारियल, धूप, चुनरी आदि सामग्री से पूजा कर ध्वजारोहण ढोल बाजे के साथ करते हैं और जगतजननी के प्रति श्रद्धा एवं आस्था का इजहार करते हैं।

प्रतिदिन सुबह व शाम विहंगम आरती

प्रतिदिन सुबह व शाम विहंगम आरती, यज्ञ व अन्य आयोजन होते हैं। विद्वान अजय शास्त्री, बंबारी लाल बड़े नियम से सारी प्रक्रिया को अंजाम देते हैं। महंत विनम्र स्वभाव के उच्च कोटि के संत हैं और हर समय परहित चितन में लगे रहते हैं।


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