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पौंग बांध में जलभराव सीजन की अवधि समाप्त

ब्यास नदी पर मिट्टी की दीवार से बनाए गए एशिया के सबसे बड़े पौंग बांध में इस बार पानी कम रहा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Sep 2021 05:02 PM (IST)Updated: Sun, 19 Sep 2021 05:55 PM (IST)
पौंग बांध में जलभराव सीजन की अवधि समाप्त

संवाद सहयोगी, दातारपुर : ब्यास नदी पर मिट्टी की दीवार से बनाए गए एशिया के सबसे बड़े पौंग बांध की महाराणा प्रताप सागर झील में बांध के कैचमेंट एरिया में कम बारिश के चले जल भराव का लक्ष पूरा नहीं हो पाया, जो बेहद चिंता की विषय है। ऐसे ही हालात में तो अगले साल मध्य जून तक सिचाई के लिए राजस्थान, पंजाब हिमाचल तथा हरियाणा को भारी किल्लत होगी और बिजली उत्पादन भी बुरी तरह से प्रभावित होगा। आंकड़ों की नजर डालें तो 19 सितंबर को बांध में सुबह छह बजे कुल 17416 क्यूसिक पानी की आवक हो रही है, जबकि बांध के बिजली घर की टरबाइनों के माध्यम से 11002 क्यूसिक पानी छोड़ा जा रहा है और सुबह छह बजे जलस्तर 1352.75 फीट दर्ज किया गया।

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वहीं आज के दिन 2020 में बांध में 1375.03 फीट पानी था और इसी समय बांध में 6931 क्यूसिक पानी की आमद हो रही थी तथा 13502 क्यूसिक पानी छोड़ा जा रहा था, इस लिहाज से आज विगत वर्ष की तुलना में 23 फीट पानी के लेबल का अंतर है। जबकि इस साल एक अगस्त को बांध की महाराणा प्रताप सागर झील में सुबह छह बजे 1326.30 फीट जलस्तर रिकार्ड किया। इसी समय झील में मात्र 41478 क्यूसिक पानी की आमद हो रही थी। झील में से 3011 क्यूसिक पानी शाह नहर बैराज में छोड़ा जा रहा था और आज पूरे 50 दिन बाद 19 सितम्बर को आज बांध में जलस्तर 1352.75 फीट है। इसका मतलब कि इन 50 दिनों की अवधि में बांध में मात्र 26 फीट पानी की ही बढ़ोतरी हुई है जो नितांत चिंता का विषय है।

अब जबकि बांध में जलभराव सीजन के तमाम दिन बीत चुके हैं, तो ऐसे में 1390 अथवा 1395 फीट तक जलभराव कैसे हो सकेगा। नतीजतन पूरे साल के लिए बिजली उत्पादन और सिचाई में भी असुविधा होना लाजिमी है ऐसा मानसून की बेरुखी और मौसम विभाग की भविष्यवाणी असत्य साबित होने के कारण हुआ है।

ऐसे में 1390 से 1395 फीट तक का जलभराव होना बहुत ही जोरदार मानसून की बारिशों से ही संभव है, जो आज की मानसून की स्थिति को देखते हुए बिलकुल असंभव ही नजर आता है।

वहीं बांध के स्पिल के गेट जो 1365 फीट की उंचाई पर स्थित हैं, से जलस्तर आज के दिन 13 फीट दूर है और वांछित जलस्तर का आंकडा अभी कोसों दूर है। ऐसी स्थिति के चलते सभी प्रांतों को बिजली की कमी और सिचाई के लिए पानी की उपलब्धता से पूरे साल समस्या झेलनी पड़ेगी।


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