महंत रमेश दास ने ऑनलाइन दिए भक्तों को प्रवचन
आषाढ़ महीने की संक्रांति के अवसर पर आज बाबा लाल दयाल आश्रम दातारपुर में हुए समारोह में जहां हजारों श्रद्धालु जुटते थे। वहीं रविवार को इस अवसर पर कोरोना के दुष्प्रभाव तथा रविवार के लॉकडाउन के चलते महामंडलेश्वर महंत रमेश दास ने ऑनलाइन होकर सभी भक्तों को प्रवचन देकर अभिभूत किया।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : आषाढ़ महीने की संक्रांति के अवसर पर आज बाबा लाल दयाल आश्रम दातारपुर में हुए समारोह में जहां हजारों श्रद्धालु जुटते थे। वहीं रविवार को इस अवसर पर कोरोना के दुष्प्रभाव तथा रविवार के लॉकडाउन के चलते महामंडलेश्वर महंत रमेश दास ने ऑनलाइन होकर सभी भक्तों को प्रवचन देकर अभिभूत किया। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा आज भारतीय संस्कृति को अपनाने का समय आ गया है तभी इस विभीषिका से बचा जा सकता है। उन्होंने कहां भारतीय संस्कृति में पुरातन समय से रिवाज रहा है कि बाहर से घर आते ही हाथ व मुंह को धोते थे और कपड़े बदलते थे। रसोई में अलग वस्त्र पहन कर खाना बनाते थे, ताकि कीटाणु और विषाणु दूर रहें। हाथ पांव आज भी धोने पड़ रहे हैं। महंत जी ने कहा भारतीय संस्कृति के अनुसार कभी हाथ नहीं मिलाया जाता रहा है। हमेशा से दूर से दोनों हाथ जोड़कर नमसकार करने की रीति रही है। आज भी फिजिक्ल डिस्टेंस अपनाने की जरूरत है और पूरे विश्व में हाथ जोड़कर नमस्कार ही किया जा रहा है। चाहे हमारी संस्कृति बहुत ही उदार है, मगर इसमें नियम कड़े भी थे जैसे जूते हमेशा घर के बाहर ही खोले जाते थे आज तो रसोई में और हर कमरे में जूते पहने ही लोग चले जाते हैं पर आज वही पुरानी मान्यताएं काम आ रही हैं और लोग घर से बाहर जूते खोलने लगे हैं। खाना बनाने और खाने के भी नियम थे, मासाहार वर्जित था, मगर आज मांसाहार अथवा चीन के बुहान में चमगादढ़ अथवा अन्य जीवों का मास खाने से ही तो कोरोना फैला है। आज फिर से शाकाहार की उपयोगिता समझ आने लगी है। भारतीय संस्कृति महान है और उसके सिद्धांतों को अपना कर ही ऐसी विपदाओं से बचा जा सकता है। उन्होंने अंत में सभी के भले की कामना की।