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गणेश चतुर्थी के व्रत से संतान के कटते हैं कष्ट : महंत राज गिरी

हिदू शास्त्र और मान्यताओं के अनुसार माघ माह में आने वाली संकट चौथ का विशेष महत्व है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 04:05 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 04:05 PM (IST)
गणेश चतुर्थी के व्रत से संतान के कटते हैं कष्ट : महंत राज गिरी

संवाद सहयोगी, दातारपुर : हिदू शास्त्र और मान्यताओं के अनुसार, माघ माह में आने वाली संकट चौथ का विशेष महत्व है। मां कामाक्षी दरबार कमाही देवी में भक्तों को संबोधित करते हुए तपोमूर्ति महंत राज गिरी जी महाराज ने कहा कि इसके पीछे की पौराणिक कथा विघ्नहर्ता गणेश जी से जुड़ी है। उन्होंने कहा इस दिन गणेश जी पर बड़ा संकट आकर टला गया था, इसलिए इस दिन का नाम सकट चौथ पड़ा है। कथा के अनुसार माता पार्वती एक दिन स्नान करने के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने पुत्र बालक गणेश को दरवाजे के बाहर पहरा देने का आदेश दिया और बोलीं कि जब तक वे स्नान करके ना लौटें किसी को भी अंदर नहीं आने दें। गणेश जी मां की आज्ञा का पालन करते हुए बाहर खड़े होकर पहरा देने लगे। महंत जी ने कहा ठीक उसी वक्त भगवान शिव माता पार्वती से मिलने पहुंचे, गणेश जी ने तुरंत ही भगवान शिव को दरवाजे के बाहर रोक दिया। यह देख शिव जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने त्रिशूल से वार कर बालक गणेश की गर्दन धड़ से अलग कर दी। इधर पार्वती जी ने बाहर से आ रही आवाज सुनी तो वह भागती हुईं बाहर आईं। पुत्र गणेश की कटी हुई गर्दन देख घबरा गईं और शिव जी से अपने बेटे के प्राण वापस लाने की गुहार लगाने लगी। शिव जी ने माता पार्वती की बात मानते हुए गणेश जी को जीवन दान तो दे दिया लेकिन गणेश जी की गर्दन की जगह एक हाथी के बच्चे का सिर लगाना पड़ा। उसी दिन से सभी महिलाएं अपने बच्चों की सलामती के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत रखती हैं। एक कुम्हार से भी जुड़ी संकट चौथ की कथा

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महंत जी ने कहा संकट चौथ की दूसरी कथा मिट्टी के बर्तन बनाने वाले एक कुम्हार से जुड़ी हुई है। कहानी के अनुसार एक राज्य में एक कुम्हार रहता था। एक दिन वह मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए आवा (मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए आग जलाना) लगा रहा था। उसने आवा तो लगा दिया लेकिन उसमें मिट्टी के बर्तन पके नहीं। यह देखकर कुम्हार परेशान हो गया और वह राजा के पास गया और सारी बात बताई। राजा ने राज्य के राज पंडित को बुलाकर कुछ उपाय सुझाने को बोला, तब राज पंडित ने कहा कि, यदि हर दिन गांव के एक-एक घर से एक-एक बच्चे की बलि दी जाए तो रोज आवा पकेगा। राजा ने आज्ञा दी कि पूरे नगर से हर दिन एक बच्चे की बलि दी जाए। कई दिनों तक ऐसा चलता रहा और फिर एक बुढि़या के घर की बारी आई, लेकिन उसके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा उसका अकेला बेटा अगर बलि चढ़ जाएगा तो बुढि़या का क्या होगा, ये सोच-सोच वह परेशान हो गई। उसने संकट की सुपारी और दूब देकर बेटे से बोला, जा बेटा, संकट माता तुम्हारी रक्षा करेंगी और खुद संकट माता का स्मरण कर उनसे अपने बेटे की सलामती की कामना करने लगी। अगली सुबह कुम्हार ने देखा कि आवा भी पक गया और बालक भी पूरी तरह से सुरक्षित है और फिर सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक जिनकी बलि दी गई थी, वे सभी भी जी उठें। इस अवसर पर कवि राजेंद्र मेहता, अजय शास्त्री, रमन गोल्डी, डा. रविद्र सिंह, रमेश ठाकुर, विक्रांत व अन्य उपस्थित रहे।


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