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इतिहास व संस्कृति को संजोए हुए है साधू आश्रम

जिला होशियारपुर के ऊना रोड स्थित साधु आश्रम में विश्वेश्वरनंद वैदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थापित है। जिसे अब तक का सबसे बड़ा संग्रहालय माना जाता है। वैदिक साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए यह विदेशों में भी बहुत प्रसिद्ध है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 11:06 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 11:06 PM (IST)
इतिहास व संस्कृति को संजोए हुए है साधू आश्रम

जागरण टीम, होशियारपुर : संग्रहालय किसी समाज के लिए उतना ही महत्व रखते हैं जितना की विकास। संग्रहालय से हमें पता चलता सकता है कि हमारे पूर्वज कितनी उन्नति कर चुके थे। उनकी हमें क्या देन है और अब हमें उनके दिखाए मार्ग पर कैसे चलना है। ताकि उनकी दी गई उन्नत सभ्यता तो हम और भी उन्नत कर सकें। वहीं संग्रहालय हमारे इतिहास को भी संभाले हुए हैं। ऐसा ही एक इंस्टीट्यूट व संग्रहालय है साधू आश्रम। जिला होशियारपुर के ऊना रोड स्थित साधु आश्रम में विश्वेश्वरनंद वैदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थापित है। जिसे अब तक का सबसे बड़ा संग्रहालय माना जाता है। वैदिक साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए यह विदेशों में भी बहुत प्रसिद्ध है। साधु आश्रम के इस केंद्र में अनगिनत प्राचीन ग्रंथ व दक्षिण भारत की लिपि में लिखे गए संस्कृत के अनेक ग्रंथ पड़े हैं। देश ही नहीं विदेशों से भी लोग यहां खोज करने के लिए आते हैं। चारों वेद व डेढ़ लाख से ज्यादा किताबों का भंडार

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इसके लिए इसकी ऐतिहासिक महत्ता और बढ़ जाती है। चारों वेदों जिसे कि हिदू धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है। वह भी यहां पर पड़े हैं। उनका अंग्रेजी व फ्रेंच भाषा में अनुवाद भी मौजूद हैं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि यहां पर ज्ञान का विशाल भंडार है, जो जितना चाहे जहां से ले सकता है। यहां विश्व की प्रमुख भाषाओं की डिक्शनरी, प्रसिद्ध विद्वानों की आत्मकथा, करीब डेढ़ लाख से ज्यादा पुस्तकें मिल जाती है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा का भी हिदी के साथ संबंधित भाषा में अनुवाद मौजूद है। पुणे के भंडारा रिसर्च इंस्टीट्यूट के बाद इसका भारत में दूसरा संस्थान है। धार्मिक शास्त्रों के अलावा यहां साहित्य कला व दर्शनशास्त्र भी उपलब्ध है। गुरमुखी लिपि में श्रीराम चरितमानस है मौजूद

गुरमुखी लिपि में लिखा हुआ श्रीराम चरितमानस और ग्रंथ संस्कृत में लिखी श्री गुरु ग्रंथ साहिब भी यहां देखे जा सकते हैं। इसके अलावा यहां पर अन्य ग्रंथ तथा पुस्तकें मौजूद है। व्यक्ति यहां जितना चाहे ज्ञान का भंडार जमा कर सकता है। आयुर्वेद का असीमित ज्ञान भी यहां से प्राप्त किया जा सकता है। चरक संहिता भी उपलब्ध है। साथ ही कई प्रकार के प्राचीन सिक्के भी यहां की अनमोल धरोहर है। 1957 में हुआ था संस्था का निर्माण

जानकारी अनुसार इस संस्था के निर्माण के लिए निकटवर्ती गांव बजवाड़ा के धनीराम भल्ला ने अपने पिता की याद में साधु आश्रम बनाने के लिए जमीन दी थी। 1957 में इस संस्था का निर्माण करने वाले अचार्य विश्व बंधु को महाराजा पटियाला गोपीचंद भार्गव व संस्कृत के प्रति रुचि रखने वाले अनेक शख्सियतों ने सहयोग दिया था, लेकिन समय के साथ-साथ लोगों का रुझान अंग्रेजी की तरफ बढ़ना शुरू हो गया। अंग्रेजी को मानना ही सभ्यता की निशानी होने लगी। लेकिन इस सबके बीच आज भी साधु आश्रम संग्रहालय की एक जीवंत उदाहरण है। जहां पर जीवन के बारे में एक एक बात को समझा जा सकता है। लेकिन संग्रहालय का लाभ तभी है, अगर हम जहां जाकर किताबों में पड़े ज्ञान को खंगालने और उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें।


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