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आत्म बल का अहंकार न करे मनुष्य : महंत राजगिरी

कौशिक नामक एक ब्राह्मण बड़ा तपस्वी था। तप के प्रभाव से उसमें बहुत आत्म बल आ गया। एक दिन वह वृक्ष के नीचे बैठा था कि ऊपर बैठी हुई चिड़िया ने उस पर बीट कर दी। कौशिक को क्रोध आ गया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 04:24 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 05:13 AM (IST)
आत्म बल का अहंकार न करे मनुष्य : महंत राजगिरी
आत्म बल का अहंकार न करे मनुष्य : महंत राजगिरी

संवाद सहयोगी, दातारपुर : कौशिक नामक एक ब्राह्मण बड़ा तपस्वी था। तप के प्रभाव से उसमें बहुत आत्म बल आ गया। एक दिन वह वृक्ष के नीचे बैठा था कि ऊपर बैठी हुई चिड़िया ने उस पर बीट कर दी। कौशिक को क्रोध आ गया। लाल नेत्र करके ऊपर देखा, तो तेज के प्रभाव से चिड़िया जलकर नीचे गिर पड़ी। तपोमूर्ति महंत राज गिरी ने मां कामाक्षी दरबार कमाही देवी में धर्म चर्चा करते हुए कहा, ब्राह्मण दूसरे दिन सद्गृहस्थ के यहां भिक्षा मांगने गया। गृहिणी पति को भोजन परोसने में लगी थी। उसने कहा, भगवान थोड़ी देर ठहरें। इस पर वह क्रोध में सोचने लगा कि तपस्वी की उपेक्षा करके यह पति की सेवा को अधिक महत्व दे रही है। गृह स्वामिनी ने दिव्य दृष्टि से सब बात जान ली। उसने ब्राह्मण से कहा, क्रोध न कीजिए मैं चिड़िया नहीं हूं। अपना कर्तव्य पूरा करने पर आपकी सेवा करूंगी।

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ब्राह्मण क्रोध करना तो भूल गया, उसे आश्चर्य हुआ कि चिड़िया वाली बात इसे कैसे मालूम हुई। ब्राह्मणी ने इसे पति सेवा का फल बताया और कहा कि अधिक जानना हो तो मिथिला पूरी में तुलाधार वैश्य के पास जाइए। भिक्षा लेकर कौशिक तुलाधार के घर जा पहुंचा। वह तौल नाप में लगा हुआ था। उसने ब्राह्मण को देखते ही प्रणाम किया और कहा, तपोधन कौशिक देव आपको सद्गृहस्थ स्वामिनी ने भेजा है। अपना नियत कर्म कर लूं तब आपकी सेवा करूंगा। ब्राह्मण को बड़ा आश्चर्य हुआ कि बिना बताए ही इसने मेरा नाम व आने का उद्देश्य कैसे जाना। थोड़ी देर में जब वैश्य अपने कार्य से निवृत्त हुआ, तो उसने बताया कि ईमानदारी के साथ उचित मुनाफा लेकर अच्छी चीजें लोकहित की दृष्टि से बेचता हूं। इस नियत कर्म को करने से ही यह दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई है। अधिक जानना हो तो मगध के निजात चांडाल के पास जाइए। कौशिक मगध चल दिया और चांडाल के यहां पहुंचा। वह नगर की गंदगी झाड़ने में लगा था। उसने ब्राह्मण को कहा, भगवान आप चिड़िया मारने जितना तप करके उस सद्गृहस्थ देवी और तुलाधार वैश्य के यहां होते हुए पधारे, यह मेरा सौभाग्य है। चांडाल जब सेवा से निवृत्त हुआ, तो उन्हें संग ले गया और वृद्ध माता-पिता को दिखाकर कहा, अब इनकी सेवा करनी है। तब कौशिक की समझ में आया कि केवल तप साधना से ही नहीं, नियत कर्तव्य कर्म निष्ठा करते रहने से भी आध्यात्मिक लक्ष्य पूरा हो सकता है और सिद्धियां मिल सकती हैं। तात्पर्य यह है कि मनुष्य को कभी भी अपने आत्म बल पर अहंकार नहीं करना चाहिए।


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