होशियारपुर में नहीं है कोई ट्रामा सेंटर, एंबुलेंस भी नकाफी, इलाज के नाम पर रेफर कर दिए जाते हैं सीरीयस मरीज
होशियारपुर के अंतर्गत आने वाले 123 किमी के नेशनल हाईवे व 152 किमी के स्टेट हाईवे और 26 किमी डिस्ट्रिक्ट रोड पर हादसों में गंभीर रूप से घायल होने वालों के लिए एक भी ट्रामा सेंटर नहीं है। घायलों को ले जाने के लिए एंबुलेंस भी कम हैं।
जागरण संवाददाता, होशियारपुर। प्रतिदिन सड़क हादसों में लोग अपनों को खो रहे हैं लेकिन इसे लेकर लेकर प्रशासन गंभीर नहीं है। जिला होशियारपुर के अंतर्गत आने वाले 123 किमी के नेशनल हाईवे व 152 किमी के स्टेट हाईवे और 26 किमी डिस्ट्रिक्ट रोड पर हादसों में गंभीर रूप से घायल होने वालों के लिए एक भी ट्रामा सेंटर की व्यवस्था नहीं है। न ही सटीक एंबुलेंस सुविधा उपलब्ध है ताकि समय रहते घायलों को उपचार के लिए अस्पतालों तक पहुंचा सके।
आधे मामलों में ही समय पर पहुंच पाती है एंबुलेंस
यहां सड़क हादसों में घायल होने वाले 30-35 प्रतिशत लोग समय पर उपचार के अभाव में दम तोड़ जाते हैं। घायलों के इलाज की सुविधा के नाम पर केवल स्थानीय सरकारी अस्पताल हैं जहां सिर्फ मरहम पट्टी का ही इंतजाम है। यहां भी गंभीर घायल को प्राथमिक उपचार देने के बाद चंडीगढ़ या अमृतसर रेफर करने के अलावा कुछ और नहीं होता है। एंबुलेंस सुविधा भी कारगर नहीं है। आपात स्थिति में 100 में से 50 मौकों पर ही एंबुलेंस समय पर पहुंच पाती है, जबकि अन्य मामलों में राहगीरों की सहायता से घायलों को अस्पताल पहुंचाया जाता है।
पैट्रोलिंग पार्टियां भी केवल तीन
पैट्रोलिंग के नाम पर भी जिले में चंद टीमें हैं और उनके पास हद से अधिक क्षेत्र हैं। जिले में केवल तीन पैट्रोलिंग पार्टियां हैं। इसमें एक पार्टी नसराला से चौहाल व चक्क साधु के लिए चलती है, दूसरी टांडा से दसूहा व तीसरी दसूहा से मुकेरियां तक चलती हैं। अन्य इलाकों जैसे होशियारपुर से गढ़शंकर, माहिलपुर से जैजों, होशियारपुर से मेहटियाना के लिए एक भी पैट्रोलिंग पार्टी नहीं है। इन पार्टियों का काम हादसे वाले स्थान पर पहुंचना व घायलों को तुरंत अस्पतालों तक पहुंचाना और पुलिस को थाने के अंतर्गत हादसे की जानकारी देना है। इतने बड़े क्षेत्र को केवल तीन पैट्रोलिंग पार्टियों से कवर करना आटे में नमक के बराबर है।
301 किमी लंबी सड़क के लिए 22 सरकारी एंबुलेंस
नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे और जिले की सड़कों पर होने वाले हादसों में घायल लोगों को समय पर उपचार और अस्पताल पहुंचाने के लिए 108 के तहत केवल 16 एंबुलेंस हैं। इसके अलावा निजी फैक्ट्रयों की एंबुलेंसों से भी मदद ली जाती है। उदाहरण के तौर पर जालंधर रोड पर हादसे के लिए सोनालिका की एंबुलेंस, फगवाड़ा रोड पर हादसे के लिए जीएनए या वर्धमान फैक्ट्री, होशियारपुर से गढ़शंकर के लिए सैला पेपर मिल व चौहाल इलाके में हुए हादसों के लिए रिलायंस, जेसीटी आदि फैक्ट्रियों का सहारा है।
सिविल अस्पताल होशियारपुर में 4 एंबुलेंस हैं। वहीं दो एंबुलेंस एमपी कोटे से है। यानी जिले में 301 किलोमीटर की सड़क नापने के लिए केवल 22 सरकारी एंबुलेंस हैं।
सरकारी अस्पताल बन गया है रेफर केंद्र
सड़क हादसे में घायल होने वाला यदि समय पर सरकारी अस्पताल पहुंच भी जाता है तो गंभीर स्थिति निपटने के लिए यहां किसी प्रकार की सुविधा नहीं है। मामूली टांके लगाने व दर्द निवारक दवा देने के अलावा यहां और कुछ भी नहीं है। अधिक गंभीर हालत में प्राथमिक उपचार देने के बाद घायलों को रेफर कर दिया जाता है। मुकेरियां-दसूहा-टांडा इलाके तक कोई सड़क आती है तो घायलों को पहले स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचाया जाता है, गंभीर हालत में जालंधर या फिर मेडिकल कालेज अमृतसर रेफर कर दिया जाता है।
यदि हादसा होशियारपुर इलाके में होता है तो घायलों को सरकारी अस्पताल होशियारपुर से पीजीआइ चंडीगढ़, मेडिकल कालेज अमृतसर, डीएमसी लुधियाना या फिर जालंधर रेफर कर दिया जाता है। इस रेफर के चक्कर में सही उपचार न मिलने के कारण हादसे में घायल 100 में से करीब 30-35 लोग दम तोड़ जाते हैं। कुल मिलाकर जिले में हादसे के बाद गंभीर घायल मरीज भगवान भरोसे ही होता है।
इसलिए जरूरी है ट्रामा सेंटर
आपात स्थिति में घायल मरीजों को चिकित्सकीय सुविधा प्रदान करने के लिए ट्रामा सेंटर की व्यवस्था की जाती है। यह किसी भी अस्पताल का सबसे मुख्य वार्ड होता है जहां विशेष डाक्टरों के साथ-साथ विशेष सर्जन और प्रशिक्षित स्टाफ होते हैं ताकि सड़क हादसों में गंभीर घायलों को समय पर उचित इलाज देकर उनकी जान बचाई जा सके।
समय पर इलाज से घायलों के बचने की 80 प्रतिशत संभावना : शिंगारा राम
रिटायर्ड एएसआइ ट्रैफिक शिंगारा राम ने कहा कि हाईवे पर हर 20 किलोमीटर पर एंबुलेंस की व्यवस्था होनी चाहिए। उस हिसाब से एंबुलेंसों की संख्या लगभग सही है लेकिन फिर भी सुधार की जरूरत है। गंभीर मरीजों को इलाज के लिए पीजीआइ चंडीगढ़, मेडिकल कालेज अमृतसर या डीएमसी लुधियाना तक का सफर करना पड़ता है। ऐसे में एंबुलेंस सेवा का सटीक होना जरूरी है।
समय पर इलाज शुरू हो जाने से गंभीर रूप से घायल मरीजों के बचने की संभावना करीब 80 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। वहीं जिले में एक भी ट्रामा सेंटर न होने से सड़क हादसों में गंभीर घायल होने वाले अधिकतर लोग दम तोड़ जाते हैं। इसे लेकर सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा।