शुद्ध आचरण सिखाता है प्रभु का सिमरन
इस अवसर पर भक्तों ने छप्पन भोगों का अर्पण किया और झांकियों सहित धूमधाम से गोवर्धन की पूजा-अर्चना की।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : दातारपुर के गजानन चौक के नजदीक शक्ति दुर्गा माता मंदिर में महामंडलेश्वर महंत रमेश दास की अध्यक्षता और सुश्री देवा जी के सान्निध्य में जारी भागवत कथा सप्ताह में कथा प्रवक्ता आचार्य मुकेश विशिष्ट ने श्रद्धालुओं को बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लेते ही कर्म का चयन किया। उन्होंने कहा नन्हें कृष्ण ने जन्म के छठे दिन ही शकटासुर का वध कर दिया, सातवें दिन पूतना को मौत की नींद सुला दिया। तीन महीने के थे तो कान्हा ने व्योमासुर को मार गिराया। प्रभु ने बाल्यकाल में ही कालिया वध किया और सात वर्ष की आयु में गोवर्धन पर्वत को उठा कर इंद्र के अभिमान को चूर-चूर किया।
गोकुल में गोचरण किया तथा गीता का उपदेश देकर हमें कर्मयोग का ज्ञान सिखाया। उन्होंने कहा प्रत्येक व्यक्ति को कर्म के माध्यम से जीवन में अग्रसर होना चाहिए। छठे दिन कथावाचक मुकेश विशिष्ट जी ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और कंस वध का भजनों सहित विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म लेकर भी जो व्यक्ति पाप के अधीन होकर इस भागवत रूपी पुण्यदायिनी कथा को श्रवण नहीं करते तो उनका जीवन ही बेकार है। उन्होंने अपने पिता-माता और पत्नी तीनों के ही कुल का उद्धार कर लिया है। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने गोवर्धन की पूजा करके इंद्र का मान मर्दन किया। भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का साधन गो सेवा है। श्रीकृष्ण ने गो को अपना आराधय मानते हुए पूजा एवं सेवा की।
उन्होंने कहा श्रीमद् भागवत कथा साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन है। यह कथा बड़े भाग्य से सुनने को मिलती है। इसलिए जब भी समय मिले कथा में सुनाए गए प्रसंगों को सुनकर अपने जीवन में आत्मसात करें। इससे मन को शांति भी मिलेगी और कल्याण होगा। कलयुग में केवल कृष्ण का नाम ही आधार है जो भवसागर से पार लगाते हैं। परमात्मा को केवल भक्ति और श्रद्धा से पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन इस संसार का नियम है। यह संसार परिवर्तनशील है, जिस प्रकार एक वृक्ष से पुराने पत्ते गिरने पर नए पत्तों का जन्म होता है, इसी प्रकार मनुष्य अपना पुराना शरीर त्यागकर नया शरीर धारण करता है। उन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं का व गोवर्धन पूजा का वर्णन किया, उन्होंने श्रृद्धालुओं को बताया कि बाल गोपाल ने अपनी अठखेलियों से अपने बाल स्वभाव के तहत मंद-मंद मुस्कान व तुतलाती भाषा से सबका मन मोह रखा था। कृष्ण ने अपनी अन्य लीलाओं से पूतना, बकासुर, कालिया नाग, कंस जैसे राक्षसों का वध करते हुए अवतरण को सार्थक किया तथा त्रेतायुग में धर्म का प्रकाश फैलाया। साथ ही गोवर्धन महाराज की पूजा हेतु उससे संबंधित पूरे वृतांत को भी उपस्थित भक्तगणों को बताया। इस अवसर पर भक्तों ने छप्पन भोगों का अर्पण किया और झांकियों सहित धूमधाम से गोवर्धन की पूजा-अर्चना की। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य से संकट दूर हो जाते हैं
मुकेश विशिष्ट ने छठे दिन भागवत कथा में कहा कि मानव मात्र का कल्याण परमात्मा की शरण में आए बिना संभव नहीं है। प्रभु कथा, मर्यादा व शुद्ध आचरण जीना सिखाती है। विपरीत व संकट से भरी परिस्थितियों में धैर्य पूर्वक सामना करने से संकट दूर हो जाते हैं। इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने बृजवासियों को धैर्य व मिलजुलकर सामना करने की शिक्षा दी थी। उन्होंने गिरीराज की शरण लेकर साक्षात देव दर्शन किए। लोभ, मोह व अहंकार ही शरीर के शत्रु
भागवत कथा में भगवाताचार्य ने लोगों को उपदेश देते हुए कहा मानव के कष्ट हरण करने के लिए भगवान ने अनेक लीलाएं कीं। काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार ही शरीर के शत्रु हैं। भक्ति की शक्ति अथवा सत्संग के प्रभाव से इन पर काबू पाया जा सकता है। सत्संग रूपी कथा अमृत जीवन से परिवर्तन आता है। भागवत कथा जीने की कला सिखाता है।