Move to Jagran APP

अपने ही वार्ड में विधायक इंदुबाला को करना पड़ा हार का सामना

नगर कौंसिल चुनाव ने राजनीति के समीकरण बदल कर रख दिए हैं। इस बार दिग्गज नेता ही अपनी साख नहीं बचा सके। सबसे बुरी हालत भाजपा की रही।

By JagranEdited By: Published: Sat, 20 Feb 2021 06:15 AM (IST)Updated: Sat, 20 Feb 2021 06:15 AM (IST)
अपने ही वार्ड में विधायक इंदुबाला को करना पड़ा हार का सामना
अपने ही वार्ड में विधायक इंदुबाला को करना पड़ा हार का सामना

सचिन शर्मा, मुकेरियां

loksabha election banner

नगर कौंसिल चुनाव ने राजनीति के समीकरण बदल कर रख दिए हैं। इस बार दिग्गज नेता ही अपनी साख नहीं बचा सके। सबसे बुरी हालत भाजपा की रही। 15 वार्डो में पूरी कोशिश के बावजूद भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। इससे भाजपा के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। उधर, कांग्रेस तो जीती लेकिन खुद विधायक इंदूबाला के वार्ड नंबर सात से ही कांग्रेस उम्मीदवार हार गया। इसके अतिरिक्त वार्ड नौ से चुनाव लड़ रहीं उनकी रिश्तेदार भी हार गई। अकाली दल की हालत भी पतली रही। चुनाव प्रचार के दौरान अकाली नेता सर्वजोत सिंह साबी प्रधान बनाने का दावा ठोक रहे थे, लेकिन जब बक्से खुले तो बड़ी मुश्किल से एक उम्मीदवार ही मात्र दो वोटों से जीत पाया। इसी तरह आम आदमी पार्टी भी खाता खोलने में असफल रही।

वहीं चुनाव के बाद जंगी लाल के राजनीतिक भविष्य पर बादल मंडरा सकते हैं। विधानसभा की टिकट जंगी लाल महाजन को देने के बाद भाजपा का ग्राफ लगातार गिरता नजर आ रहा है। या यूं कहें राजनीतिक की जंग में जंगी लाल पकड़ नहीं बना पा रहे। जब से उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा है तब से कइयों ने भाजपा को छोड़ा है। इनमें भाजपा के ब्लाक समिति के पूर्व चेयरमैन स्वर्ण सिंह, गांव सनियल से सरपंच किशनपाल बिट्टू, मानसर के पंच लाखन सिंह, अल्पसंख्यक मोर्चा के जिला प्रधान ईमानत मसीह, पूर्व युवा जिला प्रधान विनोद कुमार लाडी के अलावा अन्य नेता शामिल हैं।

29 सालों में सबसे शर्मनाक हार

आंकड़ों पर नजर डालें तो 1992 से 2021 तक करीब 29 साल में भाजपा को इस बार सबसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। 1992 में डा. केवल कृष्ण तत्कालीन खजाना मंत्री थे उस वक्त 13 सीटों में भाजपा ने सात पर विजय हासिल की थी। कांग्रेस ने छह सीट जीती थी। तत्कालीन वित्त मंत्री ने उस समय खुद का वोट डालकर कांग्रेस की कमेटी बनाई थी। 1998 में भाजपा के विधायक अरुणेश सागर थे। तब भाजपा ने नौ सीटों पर परचम लहराया। कांग्रेस को मात्र चार सीटें मिली। इसके बाद नगर कौंसिल के प्रधान भाजपा के जंगी लाल महाजन बने। 2003 में डा. केवल कृष्ण विधानसभा स्पीकर थे, उस समय भी भाजपा ने सात सीटों पर ही कब्जा किया और कांग्रेस को फिर छह सीटें मिली। विधायक केवल कृष्ण ने अपना वोट डालकर कौंसिल प्रधान के पद पर मंगलेश कुमार जज को नियुक्त करवाया था। 2008 में वार्ड 13 से 15 हो गए। तब विधायक अरुणेश शाकर थे। चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 13 सीटों पर जीत प्राप्त की। कांग्रेस के हाथ मात्र दो सीटें लगी। भाजपा ने नंद किशोर साहनी को प्रधान बनाया। नंद किशोर के निधन के बाद कंवल कुमार जैन को जिम्मेदारी सौंपी गई।

2014 में भाजपा ने किया था क्लीन स्वीप

2014 में भाजपा की ऐसी आंधी चली कि सभी 15 सीटों पर कब्जा कर लिया और कांग्रेस के हाथ एक भी सीट नहीं लगी। तब दविदर महाजन राम को कौंसिल के अध्यक्ष का ताज पहनाया गया। तब से लेकर अब तक शहरवासियों का भाजपा को भरपूर प्यार मिलता रहा। लेकिन, इस बार शहर के लोगों ने भाजपा का तख्तापलट दिया है। नगर कौंसिल की 15 में से 11 सीटों पर कांग्रेस ने शानदार जीत प्राप्त की और भाजपा को तीन सीटों से ही सब्र करना पड़ा है। अकाली दल एक सीट पर सिमट कर रह गया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.