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प्रथम पूज्य एवं गणों के स्वामी हैं श्री गणेश

गणेश जी शिवजी और माता पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। गुणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। गांव बड़ी दलवालीके दुर्गा माता मंदिर में गणेशोत्सव पर प्रवचन करते हुए राजिन्द्र ¨सह ¨जदा बाबा ने उक्त चर्चा करते हुए कहा जो भी संसार के साधन हैं। उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी की तरह का सिर होने

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Sep 2018 05:29 PM (IST)Updated: Mon, 17 Sep 2018 05:29 PM (IST)
प्रथम पूज्य एवं गणों के स्वामी हैं श्री गणेश

संवाद सहयोगी, दातारपुर

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गणेश शिव व माता पार्वती के पुत्र हैं और मूषक उनका वाहन है। गुणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। गांव बड़ी दलवालीके दुर्गा माता मंदिर में गणेशोत्सव पर प्रवचन करते हुए राजिन्द्र ¨सह ¨जदा बाबा ने यह बात कही। उन्होंने कहा जो भी संसार के जो भी साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेश जी हैं।

हाथी की तरह का सिर होने के कारण उन्हें गजानन कहते हैं। गणेश जी का नाम ¨हदू शास्त्रों के अनुसार किसी भी कार्य के लिए पहले पूज्य है। इसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणपति आदिदेव हैं। जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है।

शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्मा में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्र¨बदु लड्डू और मात्रा सूंड है।

जिंदा बाबा ने कहा कि चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं हैं। वे लंबोदर हैं, क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आंखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।

जिंदा बाबा ने कहा कि गणेश को जन्म न देते हुए माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की। उस समय उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार में गणेश की रचना के बाद माता ने उनको घर की पहरेदारी करने का आदेश दिया। माता ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के लिए गणेश किसी को भी घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान शिवजी आए और बोले, पुत्र यह मेरा घर है, मुझे प्रवेश करने दो। गणेश के रोकने पर प्रभु ने गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया।

जिंदा बाबा ने कहा कि गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता पार्वती व्याकुल हो उठीं। तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ और उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सिर लगा दिया। उनको प्रथम पूज्य का वरदान मिला। इसलिए सर्वप्रथम गणेश की पूजा होती है।

इस अवसर पर राकेश, मोनू पठानिया, गोला पंडित, कपिल डोगरा, भोली देवी, शीला, सारिता, प्रितपाल ¨सह, राजपाल, त्रिलोचन ¨सह आदि भी उपस्थित थे।


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