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भाई की प्रेरणा व माता पिता के आशीर्वाद से मिला है मुकाम : सिविल सर्जन

हमारी थोड़ी सी जमीन थी उसकी बदौलत हमें पाल पोसकर पिता जी ने यहां तक पहुंचाया। पढ़ने में शुरू से ही होशियार था। पता नहीं था डाक्टर बनूंगा पर इतना पता था कि नौकरी करनी है। स्कालरशिप से ही पढ़ा हूं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 May 2021 07:15 AM (IST)Updated: Sat, 15 May 2021 07:15 AM (IST)
भाई की प्रेरणा व माता पिता के आशीर्वाद से मिला है मुकाम : सिविल सर्जन

नीरज शर्मा, होशियारपुर

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हमारी थोड़ी सी जमीन थी, उसकी बदौलत हमें पाल पोसकर पिता जी ने यहां तक पहुंचाया। पढ़ने में शुरू से ही होशियार था। पता नहीं था डाक्टर बनूंगा पर इतना पता था कि नौकरी करनी है। स्कालरशिप से ही पढ़ा हूं। यह भी मन था कि कोई न कोई टेस्ट पास करके अफसर बनूंगा। लेकिन भाई ने एमबीबीएस में जब दाखिला लिया तो जिंदगी ने नई राह दे दी, डाक्टर बनने के लिए खुद भी मेहनत शुरू कर दी। वाहेगुरु ने भी जमकर साथ दिया और आज जिस मुकाम पर हूं यह उन्हीं की देन है। यह कहना है सिविल सर्जन होशियारपुर डा. रणजीत सिंह घोतड़ा का। दैनिक जागरण ने डा. रणजीत घोतड़ा से बातचीत की जिसके अंश इस प्रकार हैं। सवाल :- डाक्टर बनने का मन में विचार कैसे आया?

जवाब :- पहले तो मन में ऐसा कोई ख्याल नहीं था परंतु जब बड़े भाई ने एमबीबीएस में दाखिला लेकर डाक्टरी की पढ़ाई शुरू की तो उनकी प्रेरणा से मन में यह ठान लिया कि भाई की तरह ही डाक्टर बनूंगा। एक बात तो है यदि डाक्टर न होता तो भी सरकारी नौकरी करता। सवाल :-क्या-क्या मुश्किलें सामने आई?

जवाब : पिता जी ने गांव में थोड़ी जमीन में ही खेतीबाड़ी करके पढ़ाया, लेकिन जब पढ़ाई में आर्थिक रुकावट खड़ी होने लगी तो स्कालरशिप लेकर पढ़ाई करने का फैसला किया और कड़ी मेहनत से स्कालरशिप ली। स्कालरशिप से ही इतना पढ़ सका। सवाल :- कब शुरू हुआ बतौर डाक्टर जिदगी का सफर?

जवाब :- पैड्रिटिक्स के तौर पर जिला गुरदासपुर के कलानौर में 1991 में ज्वाइन किया। इसके बाद अलग अलग स्थानों पर पोस्टिग हुई और आज होशियारपुर में बतौर सिविल सर्जन सेवाएं निभा रहे हूं। सवाल :- बतौर सिविल सर्जन बनने के बाद क्या लक्ष्य है ?

जवाब :- पहले केवल डाक्टर था, अपने काम तक ही सीमित था, कुछ कमियां खलती थीं पर कर कुछ नहीं सकते थे। लेकिन अब सिविल सर्जन हैं, प्रबंधन का सारा काम हाथ में हैं और लक्ष्य है कि सिविल अस्पताल होशियारपुर को ऐसा बनाएं जिससे पूरे प्रदेश में इसकी अलग पहचान हो। यानी सिविल अस्पताल से कोई इस कारण रेैफर न हो कि यहां वह सुविधा नहीं है। सवाल :- और क्या-क्या शौक हैं ?

जवाब :- किसान का बेटा हूं, इसलिए खेतीबाड़ी से लगाव है। जब भी मौका मिलता है खेतों में दो दो हाथ जरूर करता हूं। पिछले चार साल से सारी फसल आर्गेनिक उगा रहा हूं। इसके अलावा मार्निंग वाक जीवन का हिस्सा है, साइकलिग का भी शौक है। खेतों में फलदार पेड़ व अलग अलग किस्म के पौधे लगाने भी पसंद है। सवाल :- पढ़ाई के दौरान ऐसे क्षण जो नहीं भूल सकते ?

जवाब :- वैसे तो शिक्षा ग्रहण करने का हरेक क्षण महत्वपूर्ण होता है, फिर भी मुझे याद है कि जब पीएमटी का टेस्ट दिया था तो पंजाब में 244वां रैंक आया था और वहीं पीजीडीसी में एक नंबर आया था जो भूल नहीं सकता। स्कालरशिप का टेस्ट पास करना एक तरह से सुखद अहसास था। सवाल :- कामयाबी का श्रेय किसे देते हैं?

जवाब :- बड़े भाई जिनकी प्रेरणा से यहां तक पहुंचा और माता पिता के दिए गए आशीर्वाद से जो एक इंसान का जीवन बदल देते हैं। माता पिता का आशीर्वाद आपके साथ है तो सारी कायनात मदद करती है। वाहेगुरु का शुक्र गुजार हूं जिन्होंने यहां तक पहुंचाया। सवाल :- माता पिता की ऐसी नसीहत जिसने कामयाबी दिलवाई?

जवाब :- हां मुझे आज भी याद है जब डाक्टरी के लिए माता पिता से पूछा था तो उन्होंने कहा, कोई भी काम करो बहुत ईमानदारी और लग्न से। ईमानदारी में मुश्किल तो आती है पर हार नहीं। ईमानदार हो तो वाहेगुरु खुद सहारा बनता है। आज तक माता पिता के दिखाए मार्ग पर चल रहा हूं। सवाल :- लोगों के लिए क्या संदेश देंगे?

जवाब : बस इतना ही कि ईमानदारी से जीती गई जंग से जो सुकून मिलता है वह लाखों खर्च करके नहीं मिल सकता। मेहनत, लग्न व ईमानदारी से किए काम में कभी हार नहीं होती। सच्चाई रहती है चाहे कोई लाख दावे करे। सवाल :- परिवार के बारे में कुछ ?

जवाब :- एक बेटी और एक बेटा है। बेटी भी बेटे से कम नहीं है। दोनों कनाडा में साफ्टवेयर इंजीनियर हैं और अच्छे सेटल हैं। माता जी हैं, पत्नी हैं, बड़े भाई हैं जो हाल ही में मुकेरियां से बतौर एसएमओ के पद से रिटायर्ड हुए हैं डा. तरसेम सिंह व तीन बहनें हैं। भाई बहनों में तीसरे नंबर पर हूं।


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