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दातारपुर में धर्माचार्यों ने जयंती पर गीता का समझाया मर्म

पांच हजार वर्ष पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के मंगल प्रभात के समय कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर योगेश्वर श्रीकृष्ण के मुखारविद से गीता का ज्ञान प्रवाह बहा और भारत को गीता का अमूल्य ग्रंथ प्राप्त हुआ।

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Dec 2020 03:35 PM (IST)Updated: Thu, 24 Dec 2020 03:35 PM (IST)
दातारपुर में धर्माचार्यों ने जयंती पर गीता का समझाया मर्म

संवाद सहयोगी, दातारपुर

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पांच हजार वर्ष पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के मंगल प्रभात के समय कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर योगेश्वर श्रीकृष्ण के मुखारविद से गीता का ज्ञान प्रवाह बहा और भारत को गीता का अमूल्य ग्रंथ प्राप्त हुआ। गीता जयंती के अवसर पर उपस्थिति का मार्गदर्शन करते हुए मां कामाक्षी दरबार कमाही देवी के महंत राजगिरि ने कहा तब से यह दिन भारत के ज्वलंत सांस्कृतिक इतिहास का स्वर्ण पृष्ठ बनकर रहा है। केवल भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व के सूझवान व्यक्ति भावपूर्ण अंत:करण से गीता जयंती का उत्सव प्रतिवर्ष मनाते हैं। कदाचित संपूर्ण विश्व में गीता ही ऐसा ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाई जाती है। भगवान गोपाल कृष्ण की लीलाओं ने गोकुल में सभी को मुग्ध किया तो योगेश्वर कृष्ण की ज्ञान दायिनी गीता ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर अर्जुन को युद्ध के लिए प्रवृत्त किया। जीवन एक संग्राम है और इसलिए कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता का गान एक सुयोग्य पृष्ठभूमि का सर्जन है।

दुर्गा माता मंदिर दलवाली के अध्यक्ष आध्यात्मिक विभूति राजिद्र सिंह जिदा बाबा ने कहा गीता मानव मात्र को जीवन में प्रतिक्षण आने वाले छोटे-बड़े संग्रामों के सामने हिम्मत से खड़े रहने की शक्ति देती है। गीताकार ने मानव जीवन के चिरंतन मूल्यों को गीता में ग्रंथित किया है। ऐसा अमूल्य ग्रंथ मानव मात्र को देकर भी कृष्ण की नम्रता कितनी अद्भुत है। उन्होंने कहा भगवान स्वमुख से कहते हैं कि इसमें मेरा कुछ भी मौलिक नहीं है। ऋषियों ने जिसे अनेक बार अनेक प्रकारों से गाया है, वही मैं फिर से कह रहा हूं। गीता को भगवान ने स्वमुख से गाया है और यही उसका खासियत है। वेदव्यास ने बाद में गीता को महाभारत में ग्रंथित किया है। इस अवसर पर सतपाल शास्त्री, जयशंकर शास्त्री, बालकृष्ण, विरेंद्र शास्त्री उपस्थित थे।


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