लापरवाह नगर निगम, नियमों को दफन कर खड़ी होती कामर्शियल इमारतें
नगर निगम की उदासीनता से शहर में कार्मशियल ईमारतें नियमों को दफन करके खड़ी हो रही हैं। इन इमारतों के लिए नियम व शर्ते महज सरकारी फाइलों में ही दिखते हैं जबकि जमीनी हकीकत यह होती है कि बिल्डिग का मालिक अपनी मनमर्जी से बिल्डिग खड़ी करता है। न तो वह पार्किंग छोड़ता है।
जागरण संवाददाता, होशियारपुर : नगर निगम की उदासीनता से शहर में कार्मशियल ईमारतें नियमों को दफन करके खड़ी हो रही हैं। इन इमारतों के लिए नियम व शर्ते महज सरकारी फाइलों में ही दिखते हैं, जबकि जमीनी हकीकत यह होती है कि बिल्डिग का मालिक अपनी मनमर्जी से बिल्डिग खड़ी करता है। न तो वह पार्किंग छोड़ता है। न ही रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम ही लगाता है। और तो और दो मंजिला बिल्डिग का नक्शा पास करवाया जाता है और बिल्डिग खड़ी कर दी जाती है तीन या फिर चार मंजिला। ऐसा नहीं है कि नगर निगम अधिकारियों को नियमों को दफन करने वाले इमारत मालिकों के बारे में जानकारी नहीं है।
अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी कानों में तेल डालकर बैठे हुए हैं। नगर निगम की इस उदासीनता से शहर में नियमों को ताक पर रखकर बन रहीं कामशियल इमारतें हादसे को दावत दे रही हैं। हादसा होने पर निगम अधिकारियों के पास सिवाय हाथ मलने के कुछ नहीं होता है, जैसा कि शुक्रवार को चौक घंटाघर के पास नियमों को ताक पर रखकर बनाई जा रही तीन मंजिला बिल्डिग का बनेरा गिरने के बाद देखने को मिला। इस दर्दनाक हादसे में छह लोग जख्मी हो गए और नगर निगम के अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं था कि प्रशासन के नाक तले तीन मंजिला बिल्डिग कैसे खड़ी हो गई। शहर का दौरा करने पर मालूम पड़ा है कि बिना पार्किंग छोड़े और नियमों की अनदेखी करके सड़कों के किनारे कार्मशियल इमारतें धड़ल्ले से बन रही हैं। हालांकि नगर निगम की ओर से लैंड चेंज और नक्शा पास करते समय इमारतों के मालिकों को नियमों का पाठ पढ़ाया जाता है।
यानी कि जगह के हिसाब से पार्किंग छोड़ना लाजिमी होगा। रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम लगाना भी अनिवार्य होता है, मगर यह सब सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं। नगर निगम से फाइल ओके होने के बाद ईमारत के मालिक अपने हिसाब से बिल्डिग को खड़ी करते हैं। न तो पार्किंग छोड़ी जाती है। न ही रेन वाटर हास्र्वेस्टिग सिस्टम ही लगाए जाते हैं। और तो और कुछ कार्मशियल इमारतें ऐसी भी हैं, जिनके नक्शे दो मंजिल के पास हुए हैं और मालिकों ने तीन से चार मंजिला खड़ी कर दी है और कुछ अवैध बिल्डिग खड़ी कर रहे हैं। हैरानीजक पहलू यह है कि शहर से न जाने कितनी बार नगर निगम के अधिकारी गुजरते हैं, मगर उनका ध्यान नियमों को दफन करके खड़ी होने वाली इमारतों पर नहीं पड़ता है। इससे अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि नगर निगम की मिलीभगत से नियमों को दफन करके कार्मशियलें इमारतें खड़ी की जा रही हैं। अगर ऐसा नहीं तो फिर नियमों को ताक पर रखकर बनने वाली इमारतों व उनके मालिकों के खिलाफ शिकंजा क्यों नहीं कसा जा रहा है। नाम न छापने की शर्त पर कुछ विभागीय मुलाजिमों ने बताया की कि यह सारा खेल नगर निगम के कुछ अधिकारियों और इमारतों के मालिकों की मिलीभगत से होता है। जबकि नियमों के अनुसार शर्तों के मुताबिक बिल्डिग न बनाने पर शिकंजा कसने का प्रावधान है, मगर यहां के अधिकारी अवैध निर्माण को लेकर सख्ती नहीं की जा रही है।
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स्वार्थ के चक्कर में नहीं होती है कार्रवाई नगर निगम के कुछ मुलाजिम ही बताते हैं कि दरअसल बिल्डिग ब्रांच के कुछ मुलाजिमों के स्वार्थ नीति की वजह से नियमों को ताक पर रखकर कामर्शियल बिल्डिगें बन रही हैं। सिर्फ कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए नोटिस निकालकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। जबकि चाहिए कि अगर कोई बिल्डिग मालिक नियमों के खिलाफ बिल्डिग बनाएं तो बिल्डिग तो तुरंत गिरा देना चाहिए। मगर मिलीभगत के चक्कर में ऐसा नहीं हो रहा पा रहा है। क्योंकि बहुत सारे बिल्डिग मालिक सरकारी मुलाजिमों से सेटिग कर लेते हैं।
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