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उपेक्षा का शिकार हो रहा 10वीं शताब्दी का हरीदेवी मंदिर

गढ़शंकर के बीत इलाके के गांव भवानीपुर में 10वीं शताब्दी का हरी देवी मंदिर पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार हो कर रह गया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 12:02 AM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 06:20 AM (IST)
उपेक्षा का शिकार हो रहा 10वीं शताब्दी का हरीदेवी मंदिर
उपेक्षा का शिकार हो रहा 10वीं शताब्दी का हरीदेवी मंदिर

रामपाल भारद्वाज, गढ़शंकर

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गढ़शंकर के बीत इलाके के गांव भवानीपुर में 10वीं शताब्दी का हरी देवी मंदिर पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार हो कर रह गया है। इसके चलते दिन ब दिन इस मंदिर की हालत खराब हो रही है। जगह जगह से ईंटे उखड़ जाने के कारण मंदिर के पुराने स्वरुप के वजूद का खतरा उत्पन्न हो गया है। बताते हैं कि कभी यहां भव्य मंदिर की मंदिर की स्थापना राजा बैन ने कराई थी। समय के अनुसार इसके क्षरित होने के बाद स्थानीय लोगों ने इस मंदिर को पुननिर्माण कराने के लिए उपक्रम शुरु किया था पर पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने 1986 में इस मंदिर को अपने सरक्षण में लेकर यहां पर निर्माण कार्य पर पाबंदी लगा दी ताकि इसके पुराने रूप को सुरक्षित रखा जा सके। मंदिर के पिछले हिस्से में सरोवर है जिसमें हर समय पानी भरा रहता है।

पावनधाम हरि देवी गांव भवानीपुर मंदिर प्रबंधक जोगिदर सिंह, प्रेम कुमार, महंत अशोक कुमार, रविदर सिंह व कांता देवी ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि यह भगवान हरि का भव्य मंदिर 10वीं शताब्दी में राजा बैन द्वारा निर्मित किया गया था। जो समय अनुसार आज इसे हरीदेवी मंदिर कहा जाता है। उन्होंने कहा कि यह पूजास्थल दक्षिण भारत में बने पूजास्थलों के समान बनाया गया है। इस मंदिर में खुले आसमान के नीचे भगवान की विभिन्न प्रकार की मूर्तियों को स्थापित किया गया है। इस मंदिर को पुरातत्व विभाग ने 1986 में अपने सरक्षण में ले लिया गया था। जिसके बाद मंदिर को बचाने के लिए कोई योजना नही बनाई गई। मंदिर की हालत दिन ब दिन क्षीण होती जा रही है और बारिश में इमारत को नुकसान पहुंचा है, कई जगहों से इस मंदिर की प्रचीन दीवारें गिर गई है। जिसकी पुननिर्माण के लिए पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने कोई कोशिश नही की। मंदिर प्रबंधकों ने बताया कि इस मंदिर के नाम पर 35 एकड़ कीमती जमीन तो है, पर जायदातर जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जे किए हुए हैं। जिसके लिए उन्होंने लोकल कोर्ट से लेकर पंजाब हरियाणा उच्चन्यायालय चंडीगढ़ में संबंधित मुकदमे जीत चुके हैं, पर फिर भी जमीन पर कब्जा करने वाले किसानों ने कब्जे नही छोड़े जिसके चलते मंदिर की आमदनी कम है। मंदिर की जजर्र होती हालत को बचाने के लिए पुरातत्व विभाग ने सिर्फ बोर्ड लगाने के सिवा कुछ नहीं किया। विभाग की ओर से मंदिर को बचाने के लिए दो दीवारों के निर्माण किया गया था. घटिया निर्माण सामग्री के कारण वह पहली बरसात में ही वह दीवारें अपना वजूद भी बचा नहीं सकी। यूं तो विभाग ने इस मंदिर की देखभाल के लिए लेखराज नाम के कर्मचारी की नियुक्ति की हुई है। उपस्थित लोगों ने स्थानीय सभी दलों के नेताओं की मंदिर के प्रति अपेक्षा के लिए भारी रोष दिखा।

मंदिर में उपस्थित श्रद्धालुओं ने कहा कि पुरातत्व विभाग अगर मंजूरी दे तो इस मंदिर के भक्त अपने स्तर पर निर्माण कार्य शुरु करवा सकते है। जिसके लिए इलाका व अन्य जगहों पर रहने वाले श्रद्धालु बढ़चढ़कर सहायता करेंगे। मंदिर प्रबंधकों ने बताया कि ऐसा कई बार हुआ है कि मंदिर के दरवाजे स्वयं बंद हो जाते है।

कमेटी सदस्य डायरेक्टर से मिलकर अपनी बात रख सकते हैं: जसविदर

इस संबंध में पुरातत्व विभाग के टेक्नीशियन जसविदर सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि 13वें वित्त आयोग ने इस मद के लिए कोई राशि का प्रबंध नही किया गया था। अब 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में पुनर्निर्माण के लिए राशि का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि अगर मंदिर कमेटी अपने खर्च पर मंदिर का निर्माण कार्य करवाना चाहते हैं तो उन्हें पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर के पास इस संबंधी प्रपोजल पेश करना चाहिए जिसके बाद विभाग के कर्मचारी की देखरेख में कार्य किया जा सकता है।


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