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को-ऑपरेटिव बैंक में आठ करोड़ का गबन करने वाले पांच दोषियों को चार-चार साल कैद

साल 2012 के बहुचर्चित को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले के मामले की सुनवाई करते हुए वीरवार को अतिरिक्त सेशन जज अमित मल्हण की अदालत ने तत्कालीन अधिकारी रहे पांच आरोपितों को दोषी करार देते हुए चार-चार साल कैद व आठ-आठ लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 28 Feb 2020 12:34 AM (IST)Updated: Fri, 28 Feb 2020 06:05 AM (IST)
को-ऑपरेटिव बैंक में आठ करोड़ का गबन करने वाले पांच दोषियों को चार-चार साल कैद
को-ऑपरेटिव बैंक में आठ करोड़ का गबन करने वाले पांच दोषियों को चार-चार साल कैद

जागरण संवाददाता, होशियारपुर : साल 2012 के बहुचर्चित को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले के मामले की सुनवाई करते हुए वीरवार को अतिरिक्त सेशन जज अमित मल्हण की अदालत ने तत्कालीन अधिकारी रहे पांच आरोपितों को दोषी करार देते हुए चार-चार साल कैद व आठ-आठ लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माना न देने पर दोषियों को तीन-तीन माह अतिरिक्त सजा काटनी होगी। दोषियों की पहचान तत्कालीन बैंक मैनेजर बलवीर सिंह, फील्ड अफसर संदीप सिंह, प्रबंधक मैनेजर बलजीत सिंह, सहायक प्रबंधक विक्रमपाल सिंह व कमेटी के प्रधान कुलदीप कुमार के रूप में हुई है। इस मामले में एक दोषी बलजीत सिंह की मौत हो चुकी है। दोषियों ने मिलीभगत से बैंक को चूना लगाते हुए 105 लोगों को लोन दिया था और जिसमें 35 लोग ऐसे थे जो उनके करीबी रिश्तेदार थे। इस मामले में दोषियों ने बैंक के साथ आठ करोड़ रुपये का घोटाला किया था।

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साल 2012 में होशियारपुर का को-ऑपरेटिव बैंक सुर्खियों में आ गया था। मामला बैंक में करोड़ों रुपये का लोन देकर गबन करने का था। उक्त दोषियों ने मिलीभगत से 105 लोगों को 12.48 करोड़ रुपये का लोन पास कर दिया था। इस दौरान दोषियों ने 35 ऐसे लोन पास कर दिए जो उनके करीबी रिश्तेदारों के थे और 84 ऐसे लोगों को लोन दे दिया जिनको उतना लोन पास ही नहीं हो सकता था। यानी उनकी जितनी लिमिट थी उसे दोगुना कर्ज उन्हें दे दिया गया। लोन की कुल राशि 12.48 करोड़ रुपये की थी, जबकि कानूनन इनके पास केवल 4.50 करोड़ का ही लोन देने का अधिकार था। जिससे बैंक को 7.93 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा था। मामला तब खुला जब सालाना ऑडिट किया गया। ऑडिट के बाद जो रिपोर्ट सामने आई उसे पूरा प्रशासन सकते में आ गया और जांच होनी शुरू हो गई कि लिमिट से अधिक लोन किस तरह पास हो गया। जब विभाग ने जांच शुरू की तो धीरे-धीरे परतें खुलने लगी और मामला साफ हो गया। जांच में यह बात सामने आई कि जो लोन पास हुआ वह उक्त दोषियों की मिलीभगत से बिना किसी जांच के पास कर दिया गया था, जिससे बैंक बुरी तरह से घाटे में चला गया।

चार साल तक खेलते रहे खेल

मामला जब साफ हुआ तो सब हैरान थे कि किस तरह उक्त पांच दोषियों ने सारा खेल खेला और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। 2008 से साल 2012 तक चले इस खेल में को-ऑपरेटिव बैंक के तीन मुलाजिम व कमेटी अधिकारी मिलकर बैंक को आठ करोड़ रुपये का चूना लगा गए। दोषियों ने सरकार के नियमों का उल्लंघन करते हुए हद से ज्यादा लोन पास कर दिया। कुछ को तो उनकी लिमिट से अधिक लोन दे दिया गया। जो लगभग पांच सौ लोगों को दिया जा सकता था व 105 को दे डाला

बैंक अधिकारी हरमेज सिंह ने बताया कि जब बैंक में इतना बड़ा लोन पास हो गया तो मामला शक्की बन गया। जब लोन लेने वाले लोगों की संख्या को देखा गया तो मात्र 105 थी। जिसके बाद मामला खुल गया, क्योंकि जो लोन बैंक की लिमिट के हिसाब से पांच सौ के करीब ग्राहकों को दिया जा सकता है, उन्होंने यह लोन 105 लोगों में ही बांट दिया। यानी जो लोन मात्र 4.50 करोड़ होना चाहिए था, वह उन्होंने 12.48 करोड़ दे दिया यानी लिमिट से 7.93 करोड़ लोन बांट दिया गया। इसके बाद उक्त दोषियों पर थाना सिटी में मामला दर्ज कराया गया था। वीरवार को सुनवाई होते हुए कोर्ट ने आरोपितों को दोषी करार देते हुए उक्त सजा सुनाई है। इस मामले में एक आरोपित बलजीत सिंह की मौत हो चुकी है।


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