गुरु साहिब की तरफ से बनाई मस्जिद दे रही है सदभाव का संदेश
ज्यादातर लोग जानते हैं कि पांचवें पातशाही गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब की नींव फकीर साईं मियां मीर से रखवाई थी
संजय तिवारी, बटाला
ज्यादातर लोग जानते हैं कि पांचवें पातशाही गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब की नींव फकीर साईं मियां मीर से रखवाई थी, लेकिन ज्यादातर लोग यह नहीं जानते होंगे कि मिरी-पीरी के मालिक छठें गुरु श्री हरगोबिद साहिब जी ने एकता का संदेश देते हुए इस्लाम धर्म के अनुयायियों को एक खुबसूरत मस्जिद(इबादतगाह) बनाकर दी है।
छठें पातशाही श्री हरगोबिद साहिब जी की तरफ से इस्लाम धर्म के अनुयायियों को मस्जिद के रूप में दिया यह खूबसूरत तोहफा आज भी ब्यास नदी के तट पर पांचवे पातशाही श्री गुरु अर्जन दवे जी की तरफ से बसाये नगर श्री हरगोबिदपुर में सुशोभित है। खुदा की इस इबादतगाह को गुरु की मस्जिद के नाम से जाना जाता है।
मुसलमान अल्लाह की इबादत कर सकें, इसलिए गुरु ने मस्जिद बनाकर उन्हें सौंपा था-
इस संबंध में डीपीआरओ इंद्रजीत सिंह ने बताया कि ब्यास नदी के दाहिने किनारे पर श्री हरगोबिदपुर शहर के पूर्व की तरफ स्थित गुरु की दरगाह बहुत खूबसूरत है और यह मुस्लिम धर्म समेत सारे ही धर्मो के अनुयायियों द्वारा प्रतिष्ठित है। गुरु की मस्जिद दरगाह के पास से गुजरने वाली ब्यास नदी आज भी इस बात की गवाह है कि मीरी-पीरी के मालिक गुरु हरगोबिद साहिब ने इस दरगाह को बनवाकर मुस्लिम समुदाय के लोगों को सौंप दिया था, ताकि वे अल्लाह की इबादत कर सकें,उन्हें कोई परेशानी न हो।
कैसे पड़ा शहर का नाम श्री हरगोबिदपुर
इंद्रजीत सिंह ने बताया कि श्री हरगोबिदपुर शहर माझा का वो ऐतिहासिक शहर है जिसके निर्माण में दो गुरुओं, श्री गुरु अर्जन देव और श्री हरगोबिद साहिब का योगदान रहा है। जब गुरु अर्जन देव जी ने इस नगर की स्थापना की तो उन्होंने इसका नाम गोबिदपुर रखा था, बाद में छठे गुरु, श्री हरगोबिद साहिब द्वारा इस शहर का पुनर्निर्माण और विस्तार किया गया। मीरी-पीरी के मालिक का जालंधर के सुबेदार अलीबेग से भी युद्ध हुआ था, जिसमें गुरु साहिब की जीत हुई थी। गुरु साहिब के यहा रहने और शहर के पुनर्निर्माण के कारण, शहर का नाम श्री हरगोबिदपुर पड़ा।
धर्मशाला और मंदिर का निर्माण करवाया
बताया कि जब छठें पातशाह श्री हरगोबिद साहिब जी द्वारा श्री हरगोबिदपुर का पुनर्निर्माण किया जा रहा था। सभी धर्मों का सम्मान करते हुए, उन्होंने एक धर्मशाला, शहर में एक मंदिर और मुसलमानों के लिए एक शानदार मस्जिद का निर्माण किया। यह मस्जिद गुरु साहिब की धर्मनिरपेक्ष नीति की मिसाल है। हालाकि गुरु अर्जन को मुगल बादशाह जहांगीर ने यातनाएं देकर शहीद कर दिया था, फिर भी गुरु साहिब के मन में इस्लाम के प्रति कोई क्रोध या घृणा नहीं थी। गुरु नानक के घर में शुरू से ही यह प्रथा रही है कि सिख पंथ ने हमेशा अत्याचारी को सबक सिखाया है और अत्याचारी का कोई धर्म नहीं होता है।
भारत विभाजन से पहले यहां बड़ी संख्या में थी मुस्लिम आबादी
गुरु साहिब के समय से भारत और पाकिस्तान के विभाजन तक, श्री हरगोबिदपुर शहर और आसपास के गांवों में एक बड़ी मुस्लिम आबादी रहती थी। बंटवारे तक मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ गुरु की मस्जिद में रोजाना पांच नमाज अदा करते थे।
गुरु सहित ने वजू के लिए एक कुआं भी बनवाया था
बता दें कि मस्जिद के गेट के बगल में गुरु साहिब द्वारा बनाया गया एक कुआं है, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग वजू होगें। उस समय यह मस्जिद बहुत चमकीली थी। यह मस्जिद बेहद खूबसूरत है और आज भी श्री हरगोबिदपुर शहर की शान बनी हुई है।
देश विभाजन के बाद खंडहर होने लगी थी मस्जिद की इमारत
जब देश का विभाजन हुआ, तो श्री हरगोबिदपुर शहर सहित पूरे क्षेत्र के मुसलमान पाकिस्तान चले गए। बहुत देर तक कोई गुरु की मस्जिद में बंदगी करने नहीं आया। रखरखाव के अभाव में इस पवित्र मस्जिद की इमारत खंडहर में तब्दील होने लगी। फिर, कुछ दशक बाद, क्षेत्र के निहंग सिंह ने गुरु साहिब द्वारा निर्मित मस्जिद की देखभाल करना शुरू कर दिया। 21वीं सदी की शुरुआत में, 2002 के आसपास, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने गुरु की मस्जिद का जीर्णोद्धार किया और इसे कुछ हद तक बहाल किया।
निहंग सिंह जत्थेदार मस्जिद के रखरखाव का कार्यभार संभाला
गुरु की मस्जिद के जीर्णोद्धार के बाद, निहंग सिंह जत्थेदार बलवंत सिंह ने मस्जिद में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना की और इसके रखरखाव का कार्यभार संभाला। और उसकी सेवा कर रहे हैं। मुस्लिम समुदाय को छठे पातशाही गुरु हरगोबिद द्वारा 'मस्जिद' के रूप में दिया गया उपहार आज भी मिलन का प्रतीक है और यह पवित्र मस्जिद हमें हमेशा एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करना सिखाएगी।