भारतीय संस्कृति व त्योहारों का ध्यान रखें : नडाला
दुनियाभर के समाज धर्म और देशों में अलग-अलग समय में नववर्ष मनाया जाता है
संवाद सहयोगी, दीनानगर :
दुनियाभर के समाज, धर्म और देशों में अलग-अलग समय में नववर्ष मनाया जाता है। अधिकतर कैलेंडर में नववर्ष मार्च से अप्रैल के बीच आता है और दूसरे दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है। मार्च में बदलने वाले कैलेंडर को ही प्रकृति और विज्ञान सम्मत माना जाता है जिसके कई कारण है। यह बात अधिवक्ता आर के नडाला ने कही।
उन्होंने कहा कि मार्च में प्रकृति और धरती का एक चक्र पूरा होता है। भारतीय कैलेंडर के अनुसार सूर्योदय से दिन शुरू होता है। सूर्यास्त के बाद उस दिन की रात प्रारंभ होती है। उस रात का अंतिम प्रहर बीत जाने पर जब नया सूर्योदय होता है तब दिन और रात का एक चक्र पूरा हो जाता है। जबकि ईसाई कैलेंडर में रात की 12 बजे नया दिन प्रारंभ हो जाता है जो कि विज्ञान सम्मत नहीं है। दूसरा यह कि जनवरी में प्रकृति का चक्र पूरा नहीं होता। उन्होंने कहा कि धरती के अपनी धूरी पर घूमने और धरती के सूर्य का एक चक्कर लगाने लेने के बाद जब दूसरा चक्र प्रारंभ होता है असल में वही नववर्ष होता है। नववर्ष में नए सिरे से प्रकृति में जीवन की शुरुआत होती है। वसंत की बहार आती है।
अधिवक्ता आर के नडाला ने कहा कि यदि कोई कैलेंडर आपकी मान्यता, विश्वास, धार्मिक घटना, संदेशवाहक के जन्म, जयंती आदी पर आधारित है तो वह कैलेंडर भी कैलेंडर ही होता है, लेकिन उसका संबंध विज्ञान से नहीं इतिहास से होता है। हालांकि सभी तरह के कैलेंडर अनुसार नववर्ष मनाया जा सकता है, क्योंकि सभी का सम्मान भी जरूरी है। उसके साथ साथ भारतीय संस्कृति व भारतीय पर्वो का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
आरके नडाला ने कहा कि दरअसल, भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम तथा प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं। उन्होंने 95 शक राजाओं को पराजित करके भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला और संस्कृति को विक्रमादित्य ने विशेष प्रोत्साहन दिया था। वे अपने सुख के लिए राजकोष से धन नहीं लेते थे। इस लिए हम सभी को मिलकर विक्रमी संवत को हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए।