ग्राउंड रिपोर्ट: हटेंगे नहीं डटे रहेंगे, सेना की मदद करेंगे और दुश्मन के दांत फिर खट्टे करेंगे
पंजाब के गुरदासपुर के सीमा क्षेत्र में भी लोगों के हौसले भी बेहद बुलंद हैं। उनका कहना है कि युद्ध जैसे हालात के बावजूद हम न हटेंगे नहीं डटे रहेंगे और सेना की मदद करेंगे।
गुरदासपुर, [रजिंदर कुमार/शमशेर]। पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सीमा पर भारी तनाव और युद्ध के माहौल के बावजूद पंजाब के सीमा क्षेत्र के लोगों का जज्बा और हौसला कमाल का है। देश की सीमा पर स्थित गुरदासपुर जिले के गांवों के लोगों के लिए जान से बढ़कर देश है। पंजाब के गुरदासपुर व फाजिल्का जिलों में भारत-पाक सीमा पर स्थित गांवों के लोगों का कहना है कि सीमा पर तनाव व दहशत बेशक बढ़ गई हो लेकिन वे डर कर गांव नहीं छोड़ेंगे, यहां से हटेंगे नहीं, डटेंगे रहेंगे। वे देश की रक्षा के लिए तैनात सेना के जवानों की यथासंभव मदद करेंगे।
एयर स्ट्राइक के बाद व्याप्त तनाव से सीमावर्ती गांवों के लोग परेशान नहीं
इन गांवों में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने 1971 की जंग देखी है और जख्म झेले हैं। इनका कहना है कि जिस तरह 1971 की जंग में सेना ने दुश्मन के दांत खट्टे किए थे, वैसे ही अब फिर उनके छक्के छुड़ाए जाएंगे। अब जंग से डर नहीं लगता। जंग हुई तो सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहेंगे। जरूरत पड़ी तो जान भी कुर्बान करेंगे।
सीमा क्षेत्र के एक गांव में बेखौफ लोग।
गुरदासपुर जिले में रावी दरिया पार सीमा से सटे गांव मम्मी चकरंजा के 80 वर्षीय तरसेम का चेहरा 1971 की जंग में जीत को याद कर गर्व से चमक उठता है। वह बताते हैं कि 3 दिसंबर, 1971 को युद्ध की घोषणा होने के बाद प्रशासन व सैनिकों ने सीमावर्ती गांवों के लोगों को अपने-अपने घर कुछ मिनटों के अंदर ही खाली करने के लिए बोल दिया था। लोग एकदम से दहशत में आ गए थे। वे जल्दबाजी में अपने-अपने घर खाली करने लगे थे। उस समय उनके गांव के कुछ लोगों ने अपने घर खाली करने से मना कर दिया था। उनमें उनका परिवार भी था।
-कई लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने देखी है 1971 की जंग, झेले हैं जख्म पर जज्बा देशप्रेम का
तरसेम कहते हैं, 'हम सबने दो-टूक कह दिया था कि हम गांव नहीं छोड़ेंगे और सेना का साथ देंगे। 16 दिसंबर, 1971 को जब रात के समय अचानक गोलीबारी होने लगी तो हमारे होश उड़ गए। फिर हमें सैनिकों ने अपनी निगरानी में बड़ी मशक्कत से गोलीबारी के बीच में से निकाला था। काफी समय तक चले इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान को ध्वस्त तो कर दिया था, युद्ध के दौरान हमारे घर पूरी तरह से तबाह हो गए थे। उस युद्ध के दिए जख्म आज भी हमारे सीने में हरे हैं। फिर भी हम आज भी सेना की मदद के लिए खड़े हैं।'
सेना के लिए खाने-पीने की व्यवस्था करने, घायल होने पर अस्पताल पहुंचाने में की थी तब मदद
गांव मराड़ा के जनक राज शर्मा ने बताया कि 1971 की जंग में उनके परिवार ने सेना का पूरा साथ दिया था। उस समय उनकी आयु करीब 36 साल थी। उनके परिवार ने भारतीय सैनिकों को खाने-पीने की सामग्री मुहैया करवाई थी। यदि फिर से युद्ध की स्थिति बनती है तो वे भारतीय सैनिकों के साथ हर हालात में खड़े रहेंगे।
यही जज्बा फाजिल्का जिले के गांवों के लोगों में भी है। गांव पक्का चिश्ती निवासी गुरदयाल सिंह, बलबीर सिंह व कृष्ण लाल बताते हैं कि कारगिल की लड़ाई के दौरान गांव खाली किए गए थे। फिर 28 सितंबर, 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान गांव छोड़ने को मजबूर हुए थे, लेकिन अब वे चाहते हैं कि आतंकियों को पनाह देने वाले और आतंकी पैदा करने वाले पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया जाए। वे यहां से हटेंगे नहीं, सेना को उनकी जरूरत पड़ी तो उसका साथ देंगे।
गुरदासपुर के बहरामपुर के गांव बाला पिडी निवासी 70 वर्षीय बलदेव राज बताते हैं कि 1971 की जंग का मंजर आज भी उनकी आंखों के सामने घूमता है। वह खुद सैनिकों के लिए खाना तैयार करवाने में मदद करते थे। आज भी युद्ध की स्थिति में वह सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगे।
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जिले के दोरांगला निवासी 70 वर्षीय बुजुर्ग केवल कृष्ण ने बताया कि 71 की जंग के समय उनकी आयु 21 वर्ष थी। जंग का पूरा मंजर अपनी आंखों से देखा है। युद्ध के समय उन्होंने घायल जवानों को अस्पताल तक पहुंचाने में मदद की थी। पाकिस्तान को उस समय भी भारतीय सेना ने घुटनों के बल कर दिया था। यदि पाकिस्तान से युद्ध की स्थिति बनती है तो वे देश के लिए हर स्थिति से निपटने को तैयार हैं।