हिन्दू धर्म की आस्था का केंद्र है श्री अच्चलेश्वर धाम
बटाला में जालंधर रोड पर स्थित श्री अच्चलेश्वर धाम में हिन्दू धर्म के साथ पुराना इतिहास जुड़ा है। इतिहास जुड़ा है। स्वामी कार्तिकेय की तपोस्थली के नाम से जाने वाले इस भव्य स्थल पर जो भी कोई 41 दिन श्रद्धाभावना से यहां नतमस्तक होता है। भगवान शंकर तथा स्वामी कार्तिकेय उनकी मनोकामना
नरेश भनोट,बटाला:बटाला में जालंधर रोड पर स्थित श्री अच्चलेश्वर धाम में हिन्दू धर्म के साथ पुराना इतिहास जुड़ा है। स्वामी कार्तिकेय की तपोस्थली के नाम से जाने वाले इस भव्य स्थल पर जो भी कोई 41 दिन श्रद्धाभावना से नतमस्तक होता है भगवान शंकर तथा स्वामी कार्तिकेय उनकी मनोकामना पूर्ण करते है।
शिव महापुराण के पेज नं. 341 वर्णित कथा अनुसार भगवान शंकर ने जब अपना उतराधिकारी चुनने की सोची तो अपने दोनों बेटों स्वामी कर्तिकेय तथा गणेश की परीक्षा लेने के उदेश्य से पृथ्वी की परिक्रमा करने की आज्ञा दी। पिता जी की आज्ञा मान कर स्वामी कार्तिकेय अपने वाहन मयूर(मोर) तथा गणेश अपने वाहन मयूष(चूहे) पर सवार होकर कैलाश से निकल पड़े। कुछ ही दूरी तय करने पर गणपति गणेश वापस कैलाश पर मुड़ आए।
भगवान शंकर अति प्रसन्न हुए और उन्हें अपना उतराधिकारी घोषित कर दिया। उधर अपने वाहन मयूर पर जब देवताओं ने सेनापति कार्तिकेय परिक्रमा कर रहे थे, तो नारद मुनि ने उनको बताया कि आप यहां परिक्रमा कर रहें हैं, उधर भगवान शंकर ने अपनी परिक्रमा करने पर ही गणेश जी को अपना उतराधिकारी घोषित कर श्रद्धि व सिद्धी से उनका विवाह कर दिया। इतनी बात सुनते ही कार्तिकेय मयूर सहित आकाश मार्ग से नीचे उतर आए और यहां से कैलाश वापिस न लौटने का प्रण कर लिया।
इसी स्थान को साधु लोग श्री अच्चलेश्वर धाम के नाम से पुकारते है। श्री अच्चलेश्वर धाम को स्वामी कार्तिकेय की तपोस्थली कहा जाता है। यहां रूकने के बाद स्वामी कार्तिकेय कैलाश पर नही गए। उन्हें मनाने के लिए भगवान शंकर माता पार्वती तथा 33 काटि के देवता भी आए,लेकिन स्वामी कार्तिकेय यहीं अच्चल हो गए। भगवान शंकर ने कार्तिकेय के हठ को देखते हुए उन्हें वर दिया कि दिवाली के नौवीं तथा दसवीं के दिन सभी देवता, किन्नर,गन्धर्व,योगानियां तुम्हारे दर्शनों के लिए यहां आया करेंगे और मैं भी यहां विराजमान रहूंगा।