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कलानौर के ऐतिहासिक शिव मंदिर में माथा टेकने उमड़े श्रद्धालु

जिला गुरदासपुर के सीमावर्ती क्षेत्र कलानौर में स्थित प्राचीन शिव मंदिर है की महिमा अपरंपार है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 03 Mar 2019 06:08 PM (IST)Updated: Sun, 03 Mar 2019 06:08 PM (IST)
कलानौर के ऐतिहासिक शिव मंदिर में माथा टेकने उमड़े श्रद्धालु
कलानौर के ऐतिहासिक शिव मंदिर में माथा टेकने उमड़े श्रद्धालु

महिदर सिंह अर्लीभन्न, कलानौर

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जिला गुरदासपुर के सीमावर्ती क्षेत्र कलानौर में स्थित प्राचीन शिव मंदिर है की महिमा अपरंपार है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा रणजीत सिह के बेटे खड़क सिंह और मुगल बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने करवाया था। इन दिनों महाशिवरात्रि के मौके पर यहां पर तीन दिन लगातार मेला चलता है, जिसमें देश भर के श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं।

महाशिवरात्रि पर्व पर रविवार से ही मेला शुरू हो गया, जो छह मार्च तक चलेगा। मेले की रौनक बढ़ाने के लिए राज्य भर से लोग पहुंचने लगे हैं। मेला प्रबंधक कमेटी की ओर से श्रद्धालुओं के लिए लंगर की व्यवस्था की जाती है। जबकि पुलिस की ओर से भी सुरक्षा व्यवस्था के कड़े प्रबंध किए जाते हैं। तब कहां जाता था महानेश्वर

वर्ष 1338 में कलानौर को महानेश्वर के नाम से भी जाना जाता था। जब भगवान शंकर के दरबार से कार्तिक रुष्ट होकर आए थे तो उन्होंने अपने पहले चरण बटाला के अचलेश्वर धाम में ही डाले थे। जब कार्तिकेय नहीं माने तो भगवान शिव ने उन्हें देवी देवताओं के आह्वान पर खुद जाकर मनाया था। गुरदासपुर से डेरा बाबा नानक रोड पर स्थित है कलानौर

पंजाब के हर कोने से आने वाले श्रद्धालु पहले गुरदासपुर में पहुंचते हैं। इसके बाद गुरदासपुर के परशुराम चौक से डेरा बाबा नानक की तरफ कलानौर को रुख किया जाता है। यह रास्ता मात्र 26 किलोमीटर का है, जहां पर भगवान शिव का प्राचीन शिव मंदिर स्थापित है। अकबर ने इसलिए करवाया निर्माण

जिसने नहीं देखा लाहौर वह देख ले कलानौर की कहावत बहुत प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि मुगल सम्राट जलालुद्दीन अकबर की ताजपोशी के समय में जब अकबर की सेना कलानौर में आई तो एक सुनसान जगह से जब घोड़े गुजरते तो वे लंगड़े हो जाते थे। जब यह सूचना बादशाह अकबर को मिली तो वे खुद उस जगह को देखने के लिए पहुंचे। इसके पश्चात अकबर के कहने पर सैनिकों ने वहां पर खुदाई की, जहां से शिवलिग निकला। इसके बाद अकबर जलालुद्दीन है यहां पर मंदिर का निर्माण करवाया। मुगलों ने मंदिर को मस्जिद में तब्दील करने की कोशिश की

पुरातन समय में जब मुगलों का राज था तो मंदिर को मस्जिद में तब्दील करने की कोशिश की गई। इसके पश्चात महाराजा रणजीत सिंह के बेटे खड़क सिंह ने भोले शंकर का यहां पर मंदिर और भी भव्य निर्माण कराया और मुगलों को धूल चटाई।


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