जब तक ज्ञान का दीपक नहीं जलेगा तब तक नहीं मिलेगा सुख
दिव्य ज्योति संस्थान द्वारा अंबेदकर नगर स्थित आश्रम में सत्संग कार्यक्रम किया गया।
संवाद सहयोगी, बटाला : दिव्य ज्योति संस्थान द्वारा अंबेदकर नगर स्थित आश्रम में सत्संग कार्यक्रम किया गया। इसमें श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी शशि प्रभा भारती ने अपने प्रवचनों के माध्यम से संगत को निहाल किया। सत्संग में पहुंचे सैकड़ों श्रद्धालुओं ने आध्यात्मिक आनंद उठाया। साध्वी ने कहा कि जन्म से मृत्यु तक, बचपन से बुढ़ापे तक एक दौर निरंत चलता है। सुख को पाने की मानवीय दशा अत्यन्त दुखद है। उनके दुख की कहानी क्या कहें।
उन्होंने कहा कि अज्ञानता का शिकार व्यक्ति जीवन पर्यन्त क्या करता है। एक-एक सुख के तिनके के लिए खर्च होता है। कहीं से भी, किसी प्रकार से, बस सुख का तिनका मिल जाए। कैसी कशिश है। एक बेचैनी है। इंसान के मानस पटल पर सुख के इस तिनके की तलाश में वह कहीं दूर चला गया, किसी और ही दिशा में पहुंचे गया। किसी और ही उलझन को बुनता चला गया। धीरे-धीरे यह जल इतना विशाल हो गया कि उसका कहर छोर दिखाई नहीं दे रहा।
सुख के तिनके की लालसा उसके जीवन में ढेरों दुखों को निमंत्रण देने लगी है। वह गांव अंधेरे में कभी सुलझ नहीं पाएगी। यदि कमरे में दीप जला दिया जाए तो उस दीपक के प्रकाश में मनुष्य गांठ को शीघ्र ही सुलझा पाएगा। इसी प्रकार मनुष्य आज अज्ञानता रूपी अंधकार में विचरण कर रहा है। इस अंधकार में सुख का तिनका ढूंढता है, परन्तु कैसे मिलेगा। दीप जलाने की जब तक उसके हदय में ज्ञान का दीपक प्रज्जवलित नहीं होगा तब मनुष्य दुखों का अधिकारी रहेगा। जैसे ज्ञान का दीप भीतर आलोकित होगा, सत-असत का भेद स्पष्ट दिखाई देने लगेगा। उस समय स्पष्ट होगा ब्रह्म सत्य जगत मिध्या तब अनुभूति होगी। सत्य का मूल है और मिथ्या दुख की जड़। जब भीतर ज्ञान दीपक जलेगा तब सुख का तिनका भर नहीं समय सुख प्राप्त हो जाएगा।