सतगुरु की शरण में जाकर ही मिलता है आनंद
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से राम लीला ग्राउंड बटाला में शिव मंदिर में भगवान शिव कथा का आयोजन किया गया। जिसमे श्री आशुतोष महाराज जी का शिष्य साध्वी जगदीपा भारती जी ने कहा कि आज सारा संसार दुखी है। जिसके बारे में गौतम बुद्ध जी ने भी कहा Þदुख एक आर्य सत्य है।Þ इस संसार में तीन प्रकार के दुख होते है। आधिभौतिक आधिदैविक और आध्यात्मिक। प्रशन यह है कि दुख है क्या? उन्होंने इस प्रशन का का उत्तर देते हुए कहा कि दुख संस्कृत की दो धातुओं से मिलकर बना है। यथा दुख यहाँदु नकारात्मक विचारों की ओर संकेत करता है औरखअकाश का बोधक है। यानी हमारे मन रूपी अकाश में नकारात्मक विचारो का उठना।
सवांद सूत्र, बटाला : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा रामलीला ग्राउंड में शिव मंदिर में भगवान शिव कथा का आयोजन किया गया। जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य साध्वी जगदीपा भारती जी ने कहा कि आज सारा संसार दु:खी है। जिसके बारे में गौतम बुद्ध जी ने भी कहा 'दु:ख एक आर्य सत्य है।' इस संसार में तीन प्रकार के दु:ख होते हैं। आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक। प्रश्न यह है कि दु:ख है क्या? उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि दु:ख संस्कृत की दो धातुओं से मिलकर बना है। यथा दु:ख यहां 'दु :' नकारात्मक विचारों की ओर संकेत करता है और 'ख' आकाश का बोधक है। यानी हमारे मन रूपी आकाश में नकारात्मक विचारों का उठना।
दूसरे शब्दों में कहे तो दु:ख का मूल कारण हमारे मानसिक परिवेश में व्याप्त नकारात्मक विचार ही हैं। असल में तृष्णा और दु:ख में कार्य के कारण का सकंध है। जब-जब तृष्णा पूर्ति में बाधा पड़ती है, तब-तब तृष्णा मानव दु:खी होता है। हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि इस संसार में यह दु:ख है तो उसका निवारण भी अवश्य है। उन्होंने कहा कि इसके निवारण के लिए मानव को उस परम आनंदित 'सच्चिदानंद' को जानना होगा, फिर ही वह दु:खों से मुक्त हो सकता है। जैसे हम संसार में देखें एक मां खुद दु:खी हो सकती है, लेकिन उसका प्रयास होता है कि उसका बच्चा कभी भी किसी संकट में न पड़े इसलिए वह उसका ध्यान रखती है, समझाती है। लेकिन जब बच्चा बड़ा हो जाता है तो वह मां के साय से दूर हो जाता है और दु:ख भी सहन करता है। लेकिन ठीक इसके विपरीत जब जीवन में एक सतगुरु मां बनकर आता है तो वह सदैव अपने बच्चों का ध्यान रखता है। बच्चा चाहे उससे कितना भी दूर हो फिर भी गुरु रूपी मां हर पल उसका साया बनकर रहती है और हर दु:ख से हर संकट से दूर रखती है, बचाती है। इसलिए यदि मानव भी प्रत्येक दुख से दूर होना चाहता है तो उसे भी जरूरत है जीवन में किसी सतगुरु का साया प्राप्त करने की, सतगुरु की शरण में जाकर आनंद को प्राप्त करने की। अंत में साध्वी भारती ने भजनों का गायन किया।