भाई की शहादत ने बहनों को कर दिया बेसुद
आखिर कब तक हमारे बूढ़े पिता खुद अपने लिए खाना बनाते रहेंगे और तुम हमसे कपड़े धुलवाते रहोंगे। शादी करके एक बहु को घर में लाओ जिससे सभी की समस्या समाप्त हो जाए। ठीक है बहना एक साल बाद आपकी यह इच्छा भी पूरी कर दूंगा। यह आखिरी बातचीत हुई थी शहीद म¨नदर ¨सह की अपनी बहन शबनम के साथ। जिसे याद करके बहन अपनी सुदबुध गवा बैठी और रो-रो कर सबको यह बातें बता रही थी। शहीद म¨नदर ¨सह की बहन शबनम ने बताया कि म¨नदर ने छुट्टी के दौरान 12 फरवरी को उसे फोन करके कहा कि बहन आकर मेरे कपड़े धो देना, मुझे ड्यूटी पर जाना है। म¨नदर ने अपनी बहन से कहा था कि अगर वह नहीं आ सकती तो बता दे, वह खुद
सुनील थानेवालिया, शंकर श्रेष्ठ, गुरदासपुर, दीनानगर
आखिर कब तक हमारे बूढ़े पिता खुद अपने लिए खाना बनाते रहेंगे और तुम हमसे कपड़े धुलवाते रहेंगे। शादी करके एक बहू को घर में लाओ जिससे सभी की समस्या समाप्त हो जाए। ठीक है बहना एक साल बाद आपकी यह इच्छा भी पूरी कर दूंगा। यह आखिरी बातचीत हुई थी शहीद म¨नदर ¨सह की अपनी बहन शबनम के साथ। जिसे याद करके बहन अपनी सुदबुध गवां बैठी और रो-रो कर सबको यह बातें बता रही थी।
शहीद म¨नदर ¨सह की बहन शबनम ने बताया कि म¨नदर ने छुट्टी के दौरान 12 फरवरी को उसे फोन करके कहा कि बहन आकर मेरे कपड़े धो देना, मुझे ड्यूटी पर जाना है। म¨नदर ने अपनी बहन से कहा था कि अगर वह नहीं आ सकती तो बता दे, वह खुद ही कपड़े धो लेगा। जिस पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि कपड़े तो मैं धो दूंगी, लेकिन यह सब कब तक चलेगा। कब तक हमारे बूढ़े पिता खुद खाना बनाने के लिए हाथ जलाते रहेंगे। अब जब भी तू अगली छुट्टी आएगा तो हम तेरी शादी कर देंगे। जिस पर म¨नदर ¨सह कहता था कि क्या उसका दिल नहीं करता कि कोई उसे अफसर की बहन कहे, केवल एक साल रूक जाओ।
पिता की तरह निभाता था जिम्मेदारी
शहीद म¨नदर ¨सह की बहनों ने बताया कि भले ही वह सभी बहनों से छोटा था, लेकिन तीनों की शादी में उसकी अहम भूमिका थी। शादी के बाद वह उन्हें माता-पिता की तरह मिलकर हर जिम्मेदारी निभाता था। जिसके चलते उसने हमें कभी मृतक मां की कभी भी महसूस नहीं होने दी। वह व्रत, लोहड़ी व सभी त्यौहार भेजता था। उन्होंने बताया कि वह अपने भाई की शादी के लिए लड़की तलाश करने में लगे हुए थे, कि उसकी शहादत की खबर आ गई।
पड़ोसी देते थे मिसाल
शहीद के परिजनों ने बताया कि म¨नदर ¨सह शुरू से ही पढ़ाई व खेलों में काफी होशियार था। जिसके मोहल्ले के लोग अपने बच्चों को म¨नदर की मिसाल देकर समझाते थे कि उसकी तरह पढ़ाई और खेलों में हिस्सा लेकर ¨जदगी में आगे बढ़ो। मोहल्ले के नौजवान भी उसे अपनी प्रेरणा मानते थे।
भाई मुझे तो अफसर ही बनना है
शहीद म¨नदर ¨सह के चचेरे भाई रमेश चंद ने बताया कि वह पंजाब पुलिस में बतौर एएसआइ तैनात हैं। म¨नदर ¨सह उसने अपने दिल की हर बात करता था। वह उन्हें अक्सर कहता था कि वह भी उनकी तरह अफसर ही बनेगा। जिसके चलते वह लगातार प्रयास कर रहा था और उन्हें पूरा विश्वास था कि वह एक दिन अपनी मेहनत के बल पर बड़ा अफसर जरूर बन जाएगा।
ढांढस बंधाने वालों की घर में लगी भीड़
जैसे ही म¨नदर ¨सह की शहादत की खबर पहुंची तो उनके घर में लोगों की भीड़ जमा होना शुरू हो गई। लोग बड़ी संख्या में शहीद के घर पहुंचकर पीड़ित परिवार को दिलासा देने में जुट गए। पूरे कस्बे में शोक की लहर दौड़ गई। पड़ोसियों द्वारा शहीद के घर में आने वाले लोगों को अपने घरों से ही चाय-पानी लाकर पिला रहे थे।