Batala blast: वर्षों पहले मृत व्यक्ति के नाम पर चल रही थी यह 'हत्यारी' फैक्टरी, जानें हादसे का सच
बटाला की फैक्टरी में धमाके को लेकर बड़े खुलासे हुए हैं। यह फैक्टरी कई साल मरे चुके व्यक्ति के नाम पर जारी लाइसेंस पर चल रही थी और इसका 10 साल से रिन्यू तक नहीं कराया गया था।
बटाला, [विनय कोछड़]। 23 लोगों की चिता बनी बटाला की पटाखा फैक्टरी को लेकर बेहद चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। इनसे अब बड़ा सवाल उठ गया है कि आखिरकार इतने बेगुनाह लोगों की मौत के असल जिम्मेदार कौन हैं। फैक्टरी पहले दो बार हुए हादसों के बावजूद धड़ल्ले से चल रही थी और वह भी बिना लाइसेंस के। दरअसल फैक्टरी का लाइसेंस सतनाम सिंह के नाम था, जिसकी कई साल पहले मौत हो गई थी। इतना ही नहीं, यह लाइसेंस पिछले करीब 10 वर्षों से रिन्यू नहीं कराया गया था। इसके साथ ही यह खुलासा हुआ है कि बुधवार को फैक्टरी में एक नहीं तीन धमाके हुए थे। उधर, पुलिस ने फैक्टरी मालिक और उसके सभी परिजनों पर मामला दर्ज कर लिया है जिनमें सात की मौत हो चुकी है।
मृत व्यक्ति के नाम पर जारी लाइसेंस पर चल रही थी फैक्टरी, 10 साल से लाइसेंस काे रिन्यू तक नहीं कराया
सबसे बड़ा सवाल यह है कि सारे नियमों को ताक पर रखकर फैक्टरी आबादी वाले क्षेत्र में चल रही थी और 2016 और 2017 में हादसे होने के बाद भी जांच की खानापूर्ति कर प्रशासन मूकदर्शक बना था। फैक्टरी के आसपास रहनेवाले लोगों का कहना है कि यह पिछले 50 सालों से यह फैक्टरी अवैध तरीके से चल रही थी।
प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, फैक्टरी में एक नहीं तीन विस्फोट हुए
फैक्टरी के पास रहने वाले बलजीत सिंह ने बताया कि फैक्टरी में बुधवार करीब साढ़े तीन बजे एक नहीं बल्कि तीन ब्लास्ट हुए थे। इस पटाखा फैक्टरी के लाइसेंस की अवधि काफी समय पहले खत्म हो गई थी। इसका लाइसेंस मृत व्यक्ति सतनाम सिंह के नाम पर था। सतनाम सिंह की दस साल पहले मौत के बाद लाइसेंस को रिन्यू तक नहीं करवाया गया। इतना ही नहीं, फैक्टरी की बगल में एक ही परिवार चार पटाखा दुकानें चला रहा था। इनमें भारी मात्रा में पटाखे और बारुद पड़ा था।
हादसे में फैक्टरी मालिक और उसके परिवार के छह लोगों की मौत, परिवार में एक महिला व लड़की बची
पूरे मामले में फैक्टरी मालिक और उसके परिवार को भी लापरवाही बरतने की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। विस्फोट में फैक्टरी मालिक सहित उसके परिवार के सात लोगों की भी मौत हो गई है। घर भी पूरी तरह तबाह हो गया। परिवार में केवल महिला तथा उसकी बेटी बची है। इनका बटाला के सिविल अस्पताल में इलाज चल रहा है। विस्फोट में फैक्टरी मालिक जसपाल सिंह सहित उसके परिवार के सात लोगों की मौत हो गई। उनकी पहचान सुरेंद्र सिंह, परमजीत सिंह, बिकरजीत सिंह, रजिंदर पाल सिंह, ओंकार सिंह, लाडी के तौर पर हुई। अब घर में महिला और एक बच्ची ही बच है।
हादसे में बची फैक्टरी मालिक के परिवार की लड़की और महिला।
बलजीत सिंह के अनुसार 50 साल पहले इस इलाके में रिहायशी कालोनी नहीं थी और यह सुनसान व हंसली (गंदा पानी से भरा क्षेत्र) हुआ करता था। तभी से यह पटाखा फैक्टरी यहां चल रही थी। बाद में यह सघन आबादी क्षेत्र हो गया, लेकिन फैक्टरी नहीं हटाई गई।
लाइसेंस खत्म होने के बाद भी प्रशासन ने नहीं की कार्रवाई
पटाखा फैक्टरी का लाइसेंस दस साल पहले खत्म हो चुका था। इसके बावजूद प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। वर्ष 2017 में इसी फैक्टरी में हादसा हुआ था और धमाके में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और तीन लोग घायल हो गए थे। उसके बाद मजिस्ट्रेट जांच के साथ पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने जांच के आदेश जारी किए थे। जांच के बाद फैक्टरी के मालिक को क्लीयरेंस दे दी गई थी। इसके बाद पटाखे तैयार करने का काम दोबारा धड़ल्ले से शुरू हो गया। सबसे दिलचस्प बात है कि पूरी जांच में फैक्टरी का लाइसेंस समाप्त होने जैसे तथ्य पर ध्यान नहीं दिया गया
हादसे में मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार के दौरान रोते परिजन।
हर समय भारी मात्रा में पटाखा रहता था फैक्टरी और आसपास की दुकानों में
बताया जा रहा है कि पटाखा फैक्टरी में करोड़ों का पटाखा तैयार होता था और काफी मात्रा में फैक्टरी के अंदर पटाखे पड़े होते थे। यहां हर समय लगभग 30-35 कर्मचारी व श्रमिक काम करते थे। पटाखा बनाने का काम पूरे सीजन चलता था। फैक्टरी से पटाखों की डिलीवरी पंजाब और आसपास के राज्यों में होता था। यहां तैयार पटाखों को चार दुकानों और शहर स्थित उनके पांच गोदामों में रखा जाता था।
फैक्टरी के गोदाम कादीया चुंगी और उमरपुरा क्षेत्र में स्थित है। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि प्रशासन की नाक तले सबकुछ होता रहा फिर भी पटाखा फैक्टरी मालिक के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। फैक्टरी संचालक लोगों की जिंदगियों से खेलते रहे और प्रशासन आंखें मूंदकर तामाशा देखता रहा।
फैक्टरी मालिक को पंजाब के राजनेता का आशीर्वाद प्राप्त होने की चर्चाएं
दूसरी ओर, चर्चाएं हैं कि फैक्टरी मालिक को पंजाब के एक राजनेता का आशीर्वाद प्राप्त था। कहा जा रहा है कि फैक्टरी को लेकर जब-जब जांच बैठाई गई, उक्त राजनेता उसकी सिफारिश कर कार्रवाई से बचा लेता था।
सारी जांच बस महज औपचारिकता रह जाती थी। इससे फैक्टरी मालिक का हौसला बढ़ता गया और वह लगातार भारी मात्रा में अवैध पटाखे तैयार करता रहा। अंतत: वह खुद भी इसका शिकार हो गया।
श्मशान में एक साथ जलीं कई चिताएं।
50 साल बारुद के ढेर पर था इलाका
क्षेत्र के लोगों का कहना है कि लगभग 50 साल तक गुरु रामदास कालोनी बारुद के ढेर पर रही। यहां रहने वाले लोगों को हमेशा डर लगा रहता था कि कहीं कोई बड़ी घटना न हो जाए। उनकी यह आशंका बुधवार को हकीकत में बदल गई। धमाकों ने पूरी कालोनी को हिलाकर रख दिया। लोगों की आंखों के सामने एेसा खौफनाक मंजर था, जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा तक न था।
ब्लॉस्ट से सड़कें तक उखड़ गईं। दूर-दूर तक घरों के शीशे टूट गए। धमाकों की चपेट में आई कार लगभग 300 मीटर दूर हंसली पुल पर जा गिरी। उस कार में दो जले शव मिले थे। पता चला है कि इस इलाके लगभग 10 हजार लोग तथा एक शिक्षक संस्थान में पांच हजार स्टूडेंट पढ़ते रहे हैं।
तीन साल पहले हुआ था समझौता
फैक्टरी मालिक के पड़ोसी इंद्रजीत सिंह ने बताया कि तीन साल पहले सारे इलाके के लोगों ने फैक्टरी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। लोग फैक्टरी बंद करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए थे। इसके बाद पास स्थित गुरुद्वारा श्री गुरुरामदास में क्षेत्रवासियों और फैक्टरी मालिक के बीच समझौता हुआ। फैक्टरी मालिक ने कहा था कि वह फैक्टरी को यहां से शिफ्ट कर देगा। केवल पटाखे की दुकानें ही चलेंगी।
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लोग बोले- मजिस्ट्रेट जांच का क्या फायदा
क्षेत्रवासियों का कहना है कि पंजाब सरकार ने घटना की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन इस जांच का क्या फायदा? पहले भी दो बार इस फैक्टरी में हादसेे को लेकर जांच के आदेश दिए गए थे और जांच कमेटी भी बनी। लंबे समय तक जांच चली लेकिन रिपोर्ट में फैक्टरी मालिक को क्लीनचिट दे दी गई। अगर उस समय समुचित कार्रवाई की गई होती तो आज इस तरह का हादसा नहीं होता।
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खुलेआम पटाखों में डाला जाता था बारुद
फैक्टरी लगभग 500 गज क्षेत्र में थी। इसी के बीच में संचालक का घर था। बारुद चौबीस घंटे खुले में पड़ा रहता था। आसपास रिहायशी कालोनी थी। पटाखे बनाने के लिए दिन-रात शिफ्ट चलती थी। दीपावली के समीप काम बिल्कुल बंद नहीं किया जाता था। उस समय तो पटाखों की मांग बढ़ने के कारण लेबर की संख्या भी बढ़ जाती थी।
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2016 व 2017 में भी हुए थे हादसे, एक मजदूर की हुई थी मौत, तीन हुए थे घायल
उस समय मामला सिविल लाइन थाना के पास पहुंचा था। प्रशासन के पास अवैध व रिहायशी इलाके में फैक्टरी चलने की बात भी आई थी। जांच कमेटी तक बैठाई गई थी, लेकिन बाद में समझौता होने के कारण पर्चा खारिज कर दिया गया था। उस समय घायल मजदूरों का इलाज दो माह तक सिविल अस्पताल में भी चला था। पर्चा खारिज होने के बाद इस अवैध फैक्टरी को फिर से क्लीयरेंस मिल गई और मालिक ने पटाखा बनाना शुरू कर दिया।
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