इस किसान ने अपनाई एेसी तकनीक, नौ दिन में गल गई 55 एकड़ खेत में धान की पराली
फिरोजपुर के किसान ने इसके लिए किफायती और कारगर तरीका इजाद किया है। इसमें समय भी मात्र नौ दिन लगता है। खेत में पानी लगाकर पराली को आसानी से गलाया जा सकता है।
फिरोजपुर [संदीप सिंह धामू]। पराली प्रबंधन में किसान आमतौर पर शिकायत करते हैं कि यह काफी महंगा काम है, लेकिन फिरोजपुर के किसान ने इसके लिए किफायती और कारगर तरीका इजाद किया है। इसमें समय भी मात्र नौ दिन लगता है। खेत में पानी लगाकर धान की पराली को आसानी से गलाया जा सकता है। मुदकी के प्रगतिशील किसान अवतार सिंह ने ने इस सीजन में अपने फार्म पर 55 एकड़ में धान की पराली और अन्य अवशेषों को मात्र नौ दिनों में गला चुके हैं। अब खेत गेहूं की बिजाई करने के लिए तैयार है।
दैनिक जागरण ने उनसे इस तकनीक के बारे में पूछा तो अवतार सिंह ने बताया कि इसके पहले एसएमएस तकनीक लगी कंबाइन से धान की कटाई करवाना जरूरी है। इससे पराली छोटे टुकड़ों में कट जाती है। कटाई के बाद खेत में सिंचाई कर दें और साथ ही ट्रैक्टर से रोटावेटर चला दें। रोटावेटर के ब्लेड मिट्टी की खुदाई कर पराली को अच्छी तरह से खेत की मिट्टी में मिला देते हैं। इससे पराली पूर्णत: नमी पकड़ लेती है।
मिट्टी और पानी की वजह से गलने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। अगले दिन फिर खेत में रोटावेटर चला देने से पराली टूट कर मिट्टी में मिल जाती है। करीब 10 से 15 दिन में खेत गेहूं की बिजाई करने लायक हो जाता है। अवतार सिंह के अनुसार उन्होंने 55 एकड़ धान की कटाई करने के बाद 18 अक्टूबर को पानी लगाकर रोटावेटर चलाया था। अब खेत में दबी पराली पूर्ण गल चुकी है।
पीएयू ने किया सम्मानित
अंडर ग्रेजुएट अवतार सिंह खेती में नवाचार करते रहते हैं। उनके खेत में धान की ज्यादा उत्पादकता होने पर पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी भी उन्हें सम्मानित कर चुकी है। वर्ष 1985 में उनके खेत में प्रति एकड़ की उत्पादकता 37 क्विंटल से ज्यादा रही थी। इसके अलावा कृषि वानिकी में 80 एकड़ में क्लोनल सफेदा भी उगा चुके हैं।
पानी से जल्द होती है डी कंपोजिशन की प्रक्रिया
पीएयू के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र के सहायक प्राध्यापक डॉ. विक्की सिंह के अनुसार बारीक कटी पराली पानी लगे खेत में दबने से डी कंपोजिशन की प्रक्रिया तेजी से होती है। ये प्रक्रिया पूर्णत: प्राकृतिक है। इसे बगैर किसी केमिकल सिर्फ ट्रैक्टर चलित मशीनरी से किया जा सकता है। ऐसा करने के बाद खेत में डिस्क हेरो चलाकर सामान्य मशीन से भी गेहूं की बिजाई की जा सकती है। पराली के अवशेष जमीन का उपजाऊपन बढ़ाते हैं।
किसानों को मुफ्त मशीनें बांट जगतार ने जगाई अलख
वहीं, बठिंडा के गांव महिमा सरजा के किसान जगतार सिंह बराड़ ने 2012 से पराली को बिना आग लगाए उसका प्रंबंध कर रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ पराली बिना आग लगाए संभाली, बल्कि अपने खरीदे हुए पराली संभालने वाली मशीनें आसपास के किसानों को मुफ्त में बांटी। कृषि विज्ञान केंद्र के खेती विज्ञानी प्रकाश सिंह सिद्धू, प्रसार शिक्षा के गुरमीत सिंह ढिल्लों व सहायक निर्देशक जतिंदर सिंह बराड़ ने बताया कि किसान जगतार के पास 40 एकड़ जमीन है। वे इसे ठेके पर चलाते हैं। उसने 2012 में सबसे पहले पराली की संभाल के लिए बेलर को अपने खेत में प्रयोग किया। इसके तहत पराली की गांठें बनाकर बिजली पैदा करने वाले प्लांट को बेचा व पराली से मुनाफा लिया।
इसके बाद उन्होंने अपने खेत में बेलर नहीं चलाया, जबकि साल 2014 में खेत में चौपर से पराली जमीन में मिलाई। वहीं साल 2016 में जगतार सिंह बराड़ ने रिवर्सिबल एमबी प्लो इटली की कंपनी का मल्चर खरीदा, यह मशीनें 45-50 हॉर्स पावर के ट्रैक्टर से चलती थीं। इससे एक दिन में 6-8 एकड़ पराली की संभाल हो सकती है।
इसके बाद रोटावेटर व तवियों से पराली खेत में मिलाकर फसल की बिजाई की। वह मशीनें बिना किराये अन्य किसानों को आसपास के खेतों में इस्तेमाल करने के लिए देते हैं। क्योंकि वह पराली जलाने से होने वाले नुकसान को जान चुका है। वह हर साल धान की 80 एकड़ फसल की खेती करते हैं। वह धान की प्रमाणित किस्मों पीआर-126, पीआर-122, पीआर-124 व गेंहू की एचडी 3086, एचडी 2967, पीबी डब्लयू- 725 के अलावा गेहंू, धान, आलू, मिर्च, लहसुन व सब्जियों की काश्त भी करता है।
पराली न जलाने पर मिला सम्मान
जगतार बराड़ को पराली न जलाने के लिए सम्मानित किया जा चुका है। वह खेतीबाड़ी से संबंधित व सोशल कमेटियों के मेंबर भी है। किन्नू कल्टीविकेशन व विभिन्न तकनीकों से खेती करने के लिए उन्हें वर्ष 2017 में पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की अेार से इनोवेटिंग फार्मिंग के लिए सम्मानित किया गया।