लोग बोले, एक्जिट पोल तो दुकानदारी
लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के बाद रविवार शाम से आ रहे ज्यादातर एग्जिट पोल बेशक एक बार फिर से पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार दिखा रहे हैं।
अबोहर के युवा नंबरदार स्टीनू जैन का कहना है कि एग्जिट पोल विगत छत्तीसगढ़, राजस्थान विधानसभा चुनावों में भी गलत साबित हुए थे। इन सर्वेक्षण का दायरा सीमित होता है, 90 करोड़ के करीब वोटरों का अनुमान सिर्फ हजारों लोगों की राय के आधार पर करने से इसकी विश्वसनीयता पर संदेह जरूर पैदा करता है। असल में किसी बूथ का भी अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है, ये तो पूरे देश का मामला है। माना कि ज्यादातर सर्वे एनडीए का पक्ष ले रहे है पर परिणाम 10 प्रतिशत कम या ज्यादा भी हो सकता है।
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स्थानीय निवासी भूषण आर्य का मानना है कि एग्जिट पोल वो एकमात्र बिजनेस है, जिसमें बार-बार फेल होने के बावजूद अगली बार फिर जोरशोर से काम मिलता है। जैसा पहले भी कई बाद देखने को मिला है। इस बार भी देखिएगा कि नतीजे एग्जिट पोल से हटकर होंगे।
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डॉ. अविनाश नीलकंठ का कहना है अगर मीडिया चुनाव से एक महीना पहले निष्पक्ष हो जाए तो देश को लोगों की सही पसंद की सरकार मिल सकती है और देश सुधर सकता है। उन्होंने कहा कि 2012 पंजाब विस चुनाव में एग्जिट पोल सही साबित नहीं हुआ था। उससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल खरा नहीं उतरा था। कोई एक भी आम आदमी बता दे कि एग्जिट पोल वाले उनसे पूछने आएं हो कि वोट किसे डाला है।
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अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत प्रदेश सचिव अशोक गर्ग ने कहा कि एग्जिट पोल के सहारे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। यह केवल संभावित होते हैं 130 करोड़ की जनता में अगर 5-7 लाख लोगों से पूछ कर एग्जिट पोल तैयार किया जाता है तो वह कभी सही साबित नहीं होगा। कम से कम 20-25 प्रतिशत लोगों से ही एग्जिट पोल सही साबित होते हैं। यह केवल अनुमानित होते हैं।
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