पराली जलाने से बढ़ रही ग्लोबल वार्मिग, इंसान व पशुओं के लिए घातक
जासं, फिरोजपुर : पराली जलाने का दुष्प्रभाव पिछले दो दशकों से ज्यादा महसूस होने लगा है। इससे ग्लोबल व
जासं, फिरोजपुर : पराली जलाने का दुष्प्रभाव पिछले दो दशकों से ज्यादा महसूस होने लगा है। इससे ग्लोबल वार्मिग बढ़ने लगी है। जो इंसानों के साथ पशुओं सहित अन्य जीवों के लिए खतरनाक है। दैनिक जागरण व पंजाबी जागरण के महा अभियान 'पराली नहीं जलाएंगे-पर्यावरण बचाएंगे' के तहत रविवार को गांव कुतबेवाला में कार्यशाला में कृषि विज्ञान केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. मनीष कुमार ने किसानों को जागरूक किया। डॉ. मनीष कुमार ने बताया कि वाहनों की वजह स गैसों का उत्सर्जन होने और लगातार पराली जलाने की वजह से तापमान बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे समुद्र तल का स्तर बढ़ रहा है। 2050 तक दुनिया के कई छोटे छोटे टापू पानी में समाने की आशंका है। डॉ. मनीष कुमार ने कहा कि पराली जाने से धुएं की परत धरती से थोड़ी ऊपर तक ही रह जाती है। इससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रो ऑक्साइड गैसों की ज्यादा मौजूदगी होने की वजह से मानव स्वास्थ्य बुरा प्रभाव पड़ता है।
डॉ. मनीष कुमार के अनुसार पराली का धुंआ पर्यावरणीय असंतुलन बिगाड़ रहा है। इससे सामान्य की अपेक्षा तापमान में इजाफा होने और वातावरण में ज्यादा नमी होने से पशुओं में चींचड़ सहित अन्य परजीवी लगने की समस्या भी बढ़ रही है। जानवर तनाव महसूस करने लगा है। दवाओं का असर भी कम हो रहा है।
किसान अपने स्तर पर करें पहल
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मनीष कुमार के अनुसार पराली जाने से वातावरण के नुकसान के साथ साथ खेत में मित्र कीट भी मर जाते हैं। जमीन की उपरी सतह पर मौजूद आवश्यक पोषक तत्व भी खत्म हो जाते हैं। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती है। हर किसान को इस नुकसान से बचने के लिए अपने स्तर पर पराली न जलाने और उसे खेत में ही मिलाकर खाद बनाने की पहल करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि रोटावेटर, प्लो, वेलर मशीन आदि से पराली का बगैर जलाए हुए पर्यावरण मित्र विधियों पर आधारित निस्तारण किया जा सकता है। इससे जमीन की उपज बढ़ती है। जो किसान के लिए फायदे का सौदा है।
हर गांव में उपलब्ध हो मशीनें : चीमा
सीमावर्ती क्षेत्र में लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक कर रहे पूर्व सरपंच गुरजीत ¨सह चीमा ने कहा कि पराली जलाने से आसपास के वातावरण में प्रदूषण फैलता है। इससे इसके आसपास रहने वाले किसानों और वहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पूर्व सरपंच चीमा के अनुसार किसान पराली न जलाए, इसके लिए सरकार सरकार को हर गांव में रोटावेटर, प्लो हल, वेलर मशीन, रीपर, हैप्पी सीडर आदि उपलब्ध करवाने चाहिए। ताकि किसान आसानी से पराली का निस्तारण कर सके। पूर्व सरपंच कीकर ¨सह कुतबेवाला ने कहा कि दैनिक जागरण व पंजाबी जागरण का किसानों को पराली न जलाने के प्रति जागरूक करन का प्रयास सराहनीय है। हर किसान को अपने स्तर पर पराली न जलाने की पहल करनी चाहिए। पराली का पंचायतों की खाली जमीन पर भंडारण करने की सुविधा सरकारी स्तर पर होनी चाहिए। डा. मलकीत ¨सह ने बताया कि पराली जलाने से उठने वाला धुआं सांस, चमंडी, आंखों के रोगों के अलावा एलर्जी भी करता है। कार्यशाला में किलचे के पूर्व सरपंच, बलराज ¨सह, बल¨जद्र ¨सह, कुल¨वद्र ¨सह, मौड़ा ¨सह, सुरेंद्र ¨सह, निरंजन ¨सह, मुलतान ¨सह, मनजीत ¨सह, बल¨जद्र ¨सह आदि उपस्थित थे। कार्यशाला में किसानों ने पराली न जलाने और अन्य किसानों को भी जागरण अभियान को अनुसरण कर ऐसा करने के लिए प्रेरित करने का संकल्प भी लिया।