कोरोना की मार किन्नू पर बरकरार, नहीं मिल रहे खरीददार
कोरोना की भारी मार किन्नू बागवानों पर पड़ रही है। कोरोना के कारण बाहर से व्यापारी न आने से इस बार किन्नू के बागों के ठेके ही नहीं हो पाए।
राज नरूला, अबोहर : कोरोना की भारी मार किन्नू बागवानों पर पड़ रही है। कोरोना के कारण बाहर से व्यापारी न आने से इस बार किन्नू के बागों के ठेके ही नहीं हो पाए। पिछले वर्ष के मुकाबले केवल 25 फीसदी व्यापारी ही किन्नू का कारोबार करने के लिए अबोहर पहुंचे हैं व किन्नू की बाहरी मंडियों में डिमांड न होने के कारण दाम नहीं मिल रहा।
किन्नू व्यापारी सोनू शर्मा ने बताया कि इन दिनों पूरी तरह से तैयार व कलर वाला किन्नू अधिकतम 9 से 10 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि केर नीचे गिरा हुआ हरे रंग का किन्नू मात्र एक से दो रुपये किलो तक ही बिक रहा है। पहले अबोहर में करीब 20 से 25 व्यापारी किन्नू की खरीददारी करने के लिए अलग अलग राज्यों से आते थे। लेकिन इस बार कोरोना के कारण मात्र तीन से चार व्यापारी हीं आए है। किसान आंदोलन के कारण दिल्ली के रास्ते बंद होने के कारण दिल्ली तो किन्नू नहीं जा रहा जबकि सूरत, अहमदाबाद, कानपूर व सहारनपुर इत्यादि क्षेत्रों में किन्नू जा रहा है, लेकिन पहले से डिमांड काफी कम है। व्यापारी बीच में ही छोड़ रहे किन्नू के बागों के ठेके
गांव अमरपुरा के बागवानों ने बताया कि जहां इस बार किन्नू के बागों के ठेके लेने ही व्यापारी नहीं पहुंचे। वहीं मंडी में जिस भाव में किन्नू अब बिक रहा है, पहले उससे अधिक भाव में ठेके हो जाते थे। उन्होंने बताया कि उनके बाग का ठेका नौ रुपये किलो के हिसाब से हुआ था, लेकिन ठेकेदार ने एक गाड़ी माल 25 क्विटल के करीब तोड़ा जो आगे उचित भाव में नहीं बिका। लिहाजा उसने ठेका बीच में छोड़ दिया। सेम वाले क्षेत्र में 40 फीसदी तक हो रही ड्रापिग
बागवान गुलाब राम व ओम प्रकाश ने बताया कि इन दिनों किन्नू तैयार होने के कारण 10 से 15 फीसदी ड्रापिग हो रही है, जबकि सेम के इलाके में 40 फीसदी तक ड्रापिग हो रही है, जिसका नुकसान भी उन्हें उठाना पड़ रहा है। अब धीरे धीरे जहां ड्रापिग ज्यादा होने लगेगी वहीं इसमें जूस भी सूखने लगा है, जिससे किन्नू भाव कम होता चला जाएगा।
मंडी में 10 रुपये बाजार में बिकता है 20 रुपये किलो
बेशक मंडी में किन्नू बागवानों को पूरा दाम नहीं मिल रहा व मंडी में क्वालिटी का किन्नू 9 से 10 रुपये किलो बिक रहा है लेकिन बाजार में आते ही इसकी कीमत दोगुना हो जाती है। मंडी में किन्नू परचून में 20 रुपये किलो बिक रहा है। बागवानों को उतनी आय नहीं होती जितनी एक दिन में रेहड़ी व दुकान वाले कर लेते हैं। रेहड़ी व दुकानदारों का तर्क है कि इसमें सारा किन्नू बिकता नहीं व लिफाफे व अन्य खर्च भी करना पड़ता है अर्थात 10 रुपये खरीद वाला किन्नू 12 से 13 रुपये पड़ता है व 5 से 7 रुपये किलो वह कमाते है व कुछ किन्नू खराब भी हो जाता है।