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देह नहीं, मन-चित्त के विकारों का त्याग करो : साध्वी

अबोहर : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने स्थानीय गंगानगर रोड स्थित अबोहर आश्रम में सत्संग करवाया। इसमें संस्थान की ओर से साध्वी तेजस्विनी भारती ने प्रवचन करते हुए कहा कि दुर्लभ मानव तन का स्वेच्छा से स्वयं अंत करना आत्महत्या कहलाता है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 11:12 PM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 11:12 PM (IST)
देह नहीं, मन-चित्त के विकारों का त्याग करो : साध्वी
देह नहीं, मन-चित्त के विकारों का त्याग करो : साध्वी

जासं, अबोहर : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने स्थानीय गंगानगर रोड स्थित अबोहर आश्रम में सत्संग करवाया। इसमें संस्थान की ओर से साध्वी तेजस्विनी भारती ने प्रवचन करते हुए कहा कि दुर्लभ मानव तन का स्वेच्छा से स्वयं अंत करना आत्महत्या कहलाता है। हमारे शास्त्र ग्रंथ इसे महा पाप की संज्ञा देते हैं। तत्वद्रष्टाओं ने जब भी किसी घोर पाप-कर्म की बात या ¨नदा की है, तो उसमें आत्महत्या का कर्म भी शामिल है। उनका कहना है कि आत्महत्या समस्याओं से छुटकारा पाना या दुखों का अंत करना नहीं है, बल्कि अपने लिए एक नए और भीषण यात्राओं के दौर को जन्म देना है। साध्वी ने कहा कि आत्महत्या करने वाले का न तो इस लोक में और न परलोक में कल्याण होता है। इसलिए समझदार मनुष्य को कभी भूल कर भी आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। हमारी समस्याओं का मूल हमारा शरीर नहीं है। मूल तो मन है, मन के विकार हैं। मूल तो चित है, चित के पूर्व संस्कार है। आत्महत्या करने से इन दोनों का ही विनाश नहीं होता। मृत्यु के बाद हमारी सूक्षम देह के साथ यह मन और चित्त दोनों ही साथ जाते हैं। अपने विकारों और संस्कारों के बोझ के साथ। जहां भी जाते हैं, वहीं हमारे लिए समस्याओं की नई श्रंखला खड़ी कर देते हैं, जो हमें भोगनी ही पड़ती है। यदि त्याग करना है, तो देह का नहीं, मन-चित के विकारों संस्कारों का करो । इस अवसर पर साध्वी हरप्रीत भारती जी ने सुमधुर भजनों का गायन किया ।

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