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13 जवानों ने खट्टे किए थे पाक सेना के दांत

भले ही फाजिल्का के लोगों और आज की युवा पीढ़ी को यह पता है कि 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में भारतीय वीर सैनिकों ने दुश्मनों को खदेड़ते हुए फाजिल्का को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनने दिया। लेकिन कई लोगों को यह मालूम नहीं कि तीन दिसंबर से 16 दिसंबर तक चले इस युद्ध में हर दिन क्या कुछ होता रहा।

By JagranEdited By: Published: Sat, 12 Dec 2020 06:59 AM (IST)Updated: Sat, 12 Dec 2020 06:59 AM (IST)
13 जवानों ने खट्टे किए थे पाक सेना के दांत
13 जवानों ने खट्टे किए थे पाक सेना के दांत

मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का : भले ही फाजिल्का के लोगों और आज की युवा पीढ़ी को यह पता है कि 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में भारतीय वीर सैनिकों ने दुश्मनों को खदेड़ते हुए फाजिल्का को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनने दिया। लेकिन कई लोगों को यह मालूम नहीं कि तीन दिसंबर से 16 दिसंबर तक चले इस युद्ध में हर दिन क्या कुछ होता रहा। ऐसा ही दिन था 11 दिसंबर 1971 का, जब पाकिस्तान ने कई गांवों को अपने कब्जे में ले लिया। लेकिन इस दौरान 11 गोरखा राइफल्स के जवानों की ड्यूटी इन गांवों से कब्जा वापस लेने के लिए लगाई गई। इन जवानों ने अपनी वीरता और साहस से दुशमन को बुरी तरह से खदेड़ दिया।

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भले ही देशभर में कई जगहों पर यह हमला हुआ, लेकिन फाजिल्का सेक्टर में 1971 का युद्ध सबसे बड़ा युद्ध था। तीन दिसंबर 1971 को जब शाम की भारी गोलाबारी में दुश्मन ने आम नागरिकों की वेश-भूषा में धोखे से गांव बेरीवाला पुल के रास्ते फाजिल्का में प्रवेश किया और फाजिल्का की तरफ बढ़ा तो 4 जाट बटालियन के जवानों ने दुश्मन पर हमला करके कई इलाके छीन लिए, लेकिन बेरीवाला पुल काबू में नहीं आ सका, जिसके बाद दुश्मन ने बेरीवाला पुल पर साबूना डिच पर कब्जा कर लिया। इस दौरान तीन दिसंबर से लेकर 10 दिसंबर तक दिन रात युद्ध चलता रहा, जिसके बाद 11 गोरखा राइफल्स की तीसरी बटालियन के जवान फाजिल्का सैक्टर में पहुंचे, जिन्हें टास्क के तहत प्रथम चरण में मौजम पोस्ट, अगले चरण में गाजी पोस्ट पर कब्जा करने के लिए कहा गया। 11 दिसंबर 1971 को गोरखा राइफल्स के जवानों ने दुश्मन पर हमला करना शुरू कर दिया। जवानों में देश के लिए जोश इतना था कि जल्द ही उन्होंने इस आपरेशन के पहले चरण यानि मौजम पोस्ट से दुश्मन को पूर्णत निष्क्रिय कर दिया। इसके बाद जवानों ने गाजी पोस्ट पर कब्जा जमाने में अपनी अहम भूमिका निभाई। भले ही इस युद्ध में अलग-अलग बटालियनों ने 14 दिन तक लड़ाई लड़ी, लेकिन 11 गोरखा राइफल्स के वीरों का जोश हमेशा उन्हें चमकता सितारा बना गया। इस लड़ाई में बटालियन के एक सरदार साहिब व 12 बहादुर जवानों ने पूर्ण साहस व पराक्रम के साथ लड़ते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। 206 हुए जवान शहीद, 364 घायल

भारत-पाक के बीच हुए दो युद्धों में भारी तबाही हुई। इस युद्ध में भारत के 206 जवानों ने अपने प्राणों की कुर्बानी दी, जिनमें 15 राजपूत बटालियन के 6 अधिकारी, 2 जेसीओ, 62 जवान थे। 4-जाट बटालियन का एक अधिकारी, 4 जेसीओ व 64 जवान, 3-असम के 4 अधिकारी, 3 जेसीओ व 32 जवान शामिल थे। इनके अलावा भी अन्य बटालियनों के 2 जेसीओ तथा 27 जवानों ने अपनी मातृ भूमि की रक्षा में प्राणों को न्योछावर किया। युद्ध में 364 जवान घायल हुए, जिनमें 15 राजपूत बटालियन के 5 अधिकारी, 2 जेसीओ व 101 जवान, 4-जाट बटालियन के 7 अधिकारी, 6 जेसीओ व 104 जवान, 3-असम के 2 अधिकारी, 2 जेसीओ व 52 जवान शामिल थे। युद्ध में 13 जवानों को विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया। इनमें एक महावीर चक्र, 6 वीर चक्र, 2 सेना मैडल व 4 मैनशन इन डिस्पैच से नवाये गये। इनकी याद में फाजिल्का के गांव आसफवाला में शहीदों की समाधि का निर्माण किया गया है।


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