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संघर्ष और गरीबी की अजीब दास्तां... जीते जी पहले डाला अपना भोग, इस साल बरसी भी कर डाली

गरीबी से मजबूर पांच बेटियों के पिता ने जीते जी अपनी मौत का भोग इसलिए डाल दिया ताकि परिवार पर बोझ न पड़े और बेटियों की तरफ से अंतिम किरया करने को लेकर कोई विवाद न हो।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Wed, 29 Jan 2020 07:10 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 11:58 AM (IST)
संघर्ष और गरीबी की अजीब दास्तां... जीते जी पहले डाला अपना भोग, इस साल बरसी भी कर डाली

फतेहगढ़ साहिब [धरमिंदर सिंह]। सरहिंद के गांव माजरी सोढिय़ा में समाज को झकझोरने देने वाला मामला सामने आया है। यहां गरीबी से मजबूर पांच बेटियों के पिता ने जीते जी अपनी मौत का भोग इसलिए डाल दिया ताकि परिवार पर बोझ न पड़े और बेटियों की तरफ से अंतिम किरया करने को लेकर कोई विवाद न हो। पिछले साल अपनी मौत का भोग यानि सारे कार-विहार करने वाले हरभजन सिंह ने इस साल बरसी समारोह भी कर दिया। समाज को संदेश भी दिया दुखों से लडऩा सीखें। हारकर खुदकुशी न करें बल्कि मिसाल बनकर समाज को नई दिशा दें।

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वर्ष 1947 में जन्मे हरभजन सिंह बताते हैं कि 72 वर्षों में एक भी दिन सुख का नहीं आया। गरीबी के कारण पढ़ भी नहीं पाए और बचपन से ही मजदूरी करने लगे। 1968 में कलावंती से शादी हुई। पत्नी भी बीमार रहने लगी। एक के बाद पांच बेटियों ने जन्म लिया। पत्नी की बीमारी भी बढ़ती गई। कमाई का सारा पैसा दवा पर खर्च होता रहा। किसी तरह बेटियों की शादी की तो उन्हें भी सुख नसीब नहीं हुआ। ससुराल वाले तंग करते रहे। किसी बेटी को अलग होना पड़ा तो किसी का तलाक हो गया। एक दामाद की मौत भी हो गई।

बीस वर्ष से एक बेटी रणजीत कौर उसके पास रही है। 2017 में पत्नी भी चल बसी। किसी तरह पत्नी की अंतिम किरया की। फिर तय किया कि वह बेटियों पर बोझ नहीं बनेगा। उसकी मौत बेटियों की मजबूरी नहीं बनेगी। 24 फरवरी 2019 को उसने जीते जी अपनी मौत की रस्में पूरी की कर डाली। 11 महीने बाद 27 जनवरी को बरसी का समारोह भी गांव में कराया। मौत के बाद कोई विवाद न रहे। इसी कारण मकान बेटी के नाम करवा दिया और डेढ़ बीघा जमीन भी बेटियों में बांट दी है।

1979 में आंखें गई तो पहली बार लगा-कोई किसी का नहीं

हरभजन सिंह ने बताया कि 1979 में उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। तब जाकर पहली बार लगा कि समाज में कोई अपना नहीं होता। तीन महीने तक घर पर रहा। परिवार के किसी सदस्य या रिश्तेदार ने साथ नहीं दिया। फैक्ट्री मालिकों ने लुधियाना से इलाज कराया और फिर आंखों की रोशनी लौटी।

....ताकि कोई मां-बाप खुद को बदनसीब न समझे

हरभजन सिंह रस्में पूरी करने के बाद समाज में पहले की तरह ही रह रहे हैं। अपनी जिम्मेवारियां भी निभा रहे हैं। उन्होंने संदेश दिया है कि दुखों से तंग होकर कोई खुदकुशी न करे। नशे की दलदल में फंसे युवा अपने माता-पिता की तरफ देखें ताकि कोई माता-पिता उनके जैसे बदनसीब न हों और खुद को बेसहारा न समझे।

बेटी ने कहा-हमें नहीं कोई दुख

हरभजन सिंह की इस सामाजिक रस्म पर बेटियों को कोई दुख नहीं। बेटी रणजीत कौर ने कहा कि उनके पिता ने बेटों से ज्यादा ही प्यार दिया होगा। पिता के हौसले की बदौलत ही वे दुखों से उभर सकी है।

गांववासी बोले-सामाजिक हालातों ने किया बदलने को मजबूर

गांव के मनदीप सिंह रिंकू ने कहा कि सामाजिक हालात ही ऐसे बन गए हैं कि रिश्ते बेमानी साबित हो रहे हैं। हालांकि समाज अभी इतना नहीं गिरा कि किसी का अंतिम संस्कार भी न हो सके लेकिन फिर भी हरभजन सिंह की इच्छा थी, जो उन्होंने पूरी की है। यह सही है कि वह खुद के मन पर बोझ लेकर नहीं जी रके।

समाज के लिए ऐसी सोच खतरनाक

ऐसी रस्मों का होना बदलते समाज के लिए खतरे की घंटी है। इसका सबसे बड़ा कारण यह आपसी नजदीकियां खत्म होना है। लोग असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। इसका एक ही हल है कि पारिवारिक संबंध न टूटें। सभी एक दूसरे का साथ दें। जो कुछ हम करते हैं, वही प्रेरणा बच्चे लेते हैं। उनमें ऐसी सोच नहीं पनपने देनी चाहिए। -कुलजिंदर सिंह, समाजशास्त्री प्रोफेसर।

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