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मंडियां में धान की खरीद राम भरोसे

जिले की दूर-दराज की मंडियों को कौन कहे जिला मुख्यालय पर स्थित फरीदकोट अनाज मंडी में अब तक जिले का कोई आला अधिकारी यह देखने की जहमत नहीं उठा पाया कि मंडियों में धान की खरीद प्राक्रिया कैसे चल रही है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 Oct 2019 05:26 PM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2019 05:26 PM (IST)
मंडियां में धान की खरीद राम भरोसे

जागरण संवाददाता, फरीदकोट

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जिले की दूर-दराज की मंडियों को कौन कहे, जिला मुख्यालय पर स्थित फरीदकोट अनाज मंडी में अब तक जिले का कोई आला अधिकारी यह देखने की जहमत नहीं उठा पाया कि, मंडियों में धान की खरीद प्राक्रिया कैसे चल रही है। किसानों की फसल को जिन कंडों पर तौला जा रहा है, उसकी भी जांच नहीं करवाई जा रही है कि वह तौल सही हो रही है या फिर कम व ज्यादा तो नहीं।

फरीदकोट निवासी किसान बलजीत सिंह, मलविदर सिंह व सुक्खा सिंह ने बताया कि अब तक मंडियों में धान खरीद का निरीक्षण करने के लिए न तो जिला प्रशासन की ओर से कोई बड़ा अधिकारी आया और न ही स्थानीय विधायक, यहीं नहीं जिला खादय आपूर्ति अधिकारी तक मंडियों का हाल जानने के लिए नहीं आए। उक्त लोगों के मंडियों के चक्कर लगाने से मंडी में खरीद प्राक्रिया दुरूस्त रहती है। इससे भी बड़ी बात खरीद एजेंसियों के इंस्पेक्टर तक धान की ढेरियों को देखने के लिए नहीं पहुंच रहे है। आढ़ती अपनी मर्जी से धान तौल कर भर रहे हैं, जिससे संबंधित शेलरों द्वारा लिफ्ट किया जा रहा है। उक्त लोगों का कहना है शायद ही कोई साल गुजरता होगा, जिस साल चावल व गेहूं का घोटाला न होता हो, फिर यह खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारी सचेत होने का नाम नहीं ले रहे है, अब आढ़तियों द्वारा क्या कुछ बोरियों में और कितना भरा जा रहा है, यह वहीं जाने। वह लोग शासन-प्रशासन के लोगों से मांग करते है कि वह मंडियों का निरीक्षण जरूर करे, ताकि खरीद प्राक्रिया सही रूप में चल सके।

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धान खरीद कहीं, लिफ्टिग कहीं कर सरकार को लगा रहे है चूना

मंडियों में शासन-प्रशासन के लोगों की अनुपस्थित का फायदा कुछ लोग गुपचुप रूप से उठा रहे हैं। ऐसे लोग धान की खरीद दूर-दराज की मंडियों में दिखा रहे हैं जबकि लिफ्टिग स्थानीय मंडी से करवा रहे है। बताया जा रहा है कि दूर-दराज की मंडियों से धान की लिफ्टिग के एवज में प्रति क्विटल ज्यादा किराया मिलता है, जबकि हकीकत में लिफ्टिग लोकल मंडी से ही जाती है। ऐसे कर व्यक्तिगत रूप से न तो आढ़ती और न ही किसान कोई नुकसान होता है, परंतु सरकार को करोड़ों रूपए का चूना जरूर लग रहा है।


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