प्रभु शरण में जाने से पवित्र होता है जीव का मन
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की तरफ से स्थानीय किला मुबारक चौक में स्थित प्राचीन देवीद्वारा मंदिर में करवाई जा रही तीन दिवसीय श्री शिव कथा के दूसरे दिन के कार्यक्रम में असंख्य श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। इस मौके पर प्रवचन करते हुए सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री रीतू भारती जी ने कहा कि प्रभु की कथा हमारे लिए उतनी ही लाभकारी है जितना जीवन के लिए प्रकाश।
जागरण संवाददाता, फरीदकोट : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की तरफ से स्थानीय किला मुबारक चौक में स्थित प्राचीन देवीद्वारा मंदिर में करवाई जा रही तीन दिवसीय श्री शिव कथा के दूसरे दिन के कार्यक्रम में असंख्य श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया।
इस मौके पर प्रवचन करते हुए सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री रीतू भारती जी ने कहा कि प्रभु की कथा हमारे लिए उतनी ही लाभकारी है जितना जीवन के लिए प्रकाश। महापुरुष कहते हैं नव चेतना, नव गति, नव सृष्टि को स्वंय में समाहित कर जागृति का संदेश वाहक बनकर हमें ओजस्वी बनाता है, उसे प्रकाश कहते हैं और ये प्रकाश हमारे विकास के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। इसलिए इस परमात्मा ने इस ब्रह्मा जगत को प्रकाशित करने के लिए हमें दो अलोक पुंज प्रदान किए हैं सुधाकर व प्रभाकर। इन दोनों के अभाव में सृष्टि का जन जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। इन दोनों के ना होने से जीव निष्क्रिय हो जाते हैं। हम देखें ब्रह्मा विकास के लिए तो प्रकाश आवश्यक है तो क्या हमारे भीतरी जगत में इस प्रकाश की कोई जरूरत नहीं। निसंदेह आवश्यकता है। इसलिए हमारे शास्त्र बताते है कि हमारे भीतरी जगत को प्रकाशित करने का कार्य जिस अलोक पुंज के हाथों सौंपा गया है, उसे अध्यात्मक कहते हैं। यह अध्यात्म ऐसी निधि है जो मानस गहन के तमस को हर सकती है। साध्वी जी ने कहा कि इंसान अध्यात्म से तब परिचित होता है जब वह प्रभु की कथा को ध्यान से श्रवण करता है। जैसे कि हमारे इतिहास में आता है कि भगवान की शरण में आने से मानव का मन भी पवित्र होता जाता है और उसकी बुराइयां खत्म हो जाती है। उन्होंने कहा कि केवल मात्र हम कथा को श्रवण करके ही भगवान भोले नाथ को प्राप्त नहीं कर सकते, बल्कि कथा को श्रवण करने के लिए ब्रहम ज्ञान की भी जरूरत होती है। तभी हम भीतर का तमस खत्म कर सकते हैं। कथा के दौरान साध्वी बहनों द्वारा सुमधुर भजनों का गायन किया गया और भगवान भोले नाथ की पावन आरती के साथ कथा का समापन हुआ।