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फिर सुनाई देने लगी घंटाघर से टन-टन

फरीदकोट रियासत के स्वर्णिम काल और आजाद भारत का गवाह है यहैं का घंटाघर

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 Oct 2021 03:37 PM (IST)Updated: Tue, 26 Oct 2021 03:37 PM (IST)
फिर सुनाई देने लगी घंटाघर से टन-टन
फिर सुनाई देने लगी घंटाघर से टन-टन

जागरण संवाददाता, फरीदकोट

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फरीदकोट रियासत के स्वर्णिम काल और आजाद भारत का गवाह है विक्टोरिया टावर। 120 साल पुराना यह टावर आज भी शान से खड़ा है। रियासत की समृद्धि की प्रतीक इस मेमोरियल विक्टोरिया क्लाक टावर को घंटाघर के नाम से ज्यादा पहचाना जाता है। वर्षो से बंद पड़ी घंटाघर की घड़ी तीन दिन पहले रिपेयर के बाद चल पड़ी है। घड़ी की मरम्मत हेतु लंबे समय से डीसी विमल कुमार सेतिया सक्रिय थे, अब घड़ी के चलने से टन-टन की आवाज दूर तक सुनाई देने लगी है।

रियासत की समृद्धि के साथ ही आजादी आंदोलन और देश को आजादी मिलने के बाद फरीदकोट जिला व शहर में समय-समय पर घटने वाले घटनाक्रम का यह गवाह रहा है। यूं तो फरीदकोट शहर में शायद ही कोई सप्ताह गुजरता हो जबकि रोष-मार्च न निकलता हो, और विरोध स्वरूप घंटाघर के समक्ष कन्हैया चौक पर लोग पुतला न दहन करते हों। चुनावी साल में राजनीतिक दलों व संगठनों के साथ शहरवासियों का रोष-प्रदर्शन बढ़ जाता है। शहर के बीचों बीच स्थित इस घंटाघर की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। सार्वजनिक रूप से होने वाला कार्यक्रम इसी के इर्दगिर्द होता है, कांग्रेस पार्टी ने भी यहीं पर ही अपना जिला मुख्यालय का दफ्तर बनाया है।

इस टावर का निर्माण फरीदकोट रियासत के तत्कालीन राजा बलबीर सिंह (1869 से 1906) द्वारा किया गया था। इस टावर का निर्माण उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्ञी महारानी विक्टोरिया (1819-1901) की याद में बनवाया था। यह इमारत 115 फुट ऊंची है। यह फ्रेंच डिजाइन में बना है। इसके मध्य जो घड़ी लगी हुई है वह स्विस कंपनी की है। टावर की मरम्मत व रंग-रोगन का अधिकार फरीदकोट रियासत की देखरेख करने वाली महावाल खीवा जी ट्रस्ट के पास है।

प्रजामंडल आंदोलन के दौरान देश भर में सबसे ज्यादा और तीखा विरोध अंग्रेजी समर्थक फरीदकोट रियासत के विरूद्ध हुआ था। 28 दिनों तक पूरी रियायत के वाशिदों द्वारा मुकम्मल हड़ताल की गई थी। इनसेट

पंडित नेहरू ने फहराया था यहां तिरंगा

इसके बाद 27 मई 1946 को यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल आए थे, और उन्होंने फरीदकोट रियासत का विरोध कर यहां पर तिरंगा लहराया था। उक्त आंदोलन की गवाह यह इमारत है। घंटाघर को कई फिल्मों में भी फिल्माया गया है।


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