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World Cancer Day: चंडीगढ़ की रिटायर्ड लेक्चरर अनुराधा शर्मा ने जीती कैंसर से जंग, जानिए इनकी कहानी

कैंसर जानलेवा बीमारी है। लेकिन इस बीमारी को हराकर स्वस्थ जीवन जीया जा सकता है। एक ऐसा ही उदाहरण पेश किया है चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज सेक्टर-11 से सेवानिवृत लेक्चरर अनुराधा शर्मा ने। ये कैंसर को हराकर अब स्वस्थ जिंदगी जी रही हैं।

By Ankesh KumarEdited By: Published: Thu, 04 Feb 2021 01:32 PM (IST)Updated: Thu, 04 Feb 2021 01:32 PM (IST)
World Cancer Day: चंडीगढ़ की रिटायर्ड लेक्चरर अनुराधा शर्मा ने जीती कैंसर से जंग, जानिए इनकी कहानी
कैंसर से जंग जीतने वाली चंडीगढ़ की रिटायर्ड लेक्चरर अनुराधा शर्मा।

चंडीगढ़ [सुमेश ठाकुर]। World Cancer Day कैंसर एक जानलेवा बीमारी है, लेकिन इसका समय पर इलाज हो तो इस बीमारी से जीतना कोई मुश्किल बात नहीं है। ऐसे सैकड़ों नहीं हजारों उदाहरण हैं, जिससे कैंसर पीड़ितों का आत्मविश्वास बढ़ता है। कई लोग कैंसर को हराकर स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। कैंसर से हर इंसान डरता है। मुझे दो सालों तक परेशानी रही जिसके बाद क्लीयर हुआ कि मुझे थर्ड स्टेज का कैंसर है। उस समय मैं भी परेशान थी लेकिन बच्चों के प्यार ने मुझे हारने नहीं दिया। यह कहना है कैंसर से जंग जीत चुकी पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज सेक्टर-11 से सेवानिवृत लेक्चरर अनुराधा शर्मा का।

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कैंसर डे पर दैनिक जागरण अनुराधा से खास बातचीत की। उन्होंने बताया कि वर्ष 2006-2007 के दौरान मैंने अपने घर के आसपास ऐसे बच्चों को देखा था, जो कि नाम के लिए स्कूल जाते थे लेकिन वह पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे। उस समय मैंने हमारी कक्षा स्वयंसेवी संस्था की शुरुआत की थी। मैं जगह- जगह घूम- घूमकर उन बच्चों को इकट्ठा करके लाई थी और उन्हें पढ़ा रही थी। मुझे संतुष्टि थी कि मैं जरूरतमंद बच्चों के लिए कुछ कर रही थी।

संस्था को शुरू किए हुए करीब दो साल का समय हुआ था कि मुझे पेट में कैंसर होने का पता चला। कैंसर तीसरे स्टेज का था जिसके चलते लगातार ब्लडिंग हो रही थी। डाक्टर के अनुसार आपरेशन के अलावा उस स्थिति का कोई इलाज नहीं था। मुझे जैसे ही आपरेशन के लिए बोला गया तो मैं एकदम से तैयार हो गई क्योंकि मुझे जरूरतमंद बच्चों के लिए शुरू की गई हमारी कक्षा स्वयंसेवी संस्था के कामों को पूरा करना था। उस कक्षा में पहुंच रहे बच्चों को एक मुकाम तक पहुंचाना था।

मैं उन बच्चों के लिए जिंदा रहना चाहती थी, जिसके चलते मैं बिल्कुल बिना डरे आपरेशन थिएटर तक गई और आपरेशन कराने के 15 दिनों बाद दोबारा से बच्चों के बीच आ गई। मेरे लिए मेरे दर्द या परेशानी से ज्यादा जरूरतमंद बच्चों की फिक्र थी। आज आठ सालों के बाद उसी कक्षा में पांच सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं और वह कालेज तक पहुंच गए हैं।


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