सुखबीर बादल के संसद में जाने के बाद मजीठिया व ढींडसा के बीच लगेगी दौड़
सुखबीर बादल अब विधायक से सांसद हो गए हैं सवाल यह है कि सुखबीर के बाद सदन में पार्टी की कमान कौन संभालेगा? फिलहाल सुखबीर ही लीडर हैं।
चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष सुखबीर बादल के संसद में जाने के बाद पंजाब विधानसभा का माहौल बदला-बदला नजर आएगा। सुखबीर बादल अब विधायक से सांसद हो गए हैं, लेकिन असल सवाल यह नहीं है कि विधानसभा का माहौल कैसा होगा? सवाल यह है कि सुखबीर के बाद सदन में पार्टी की कमान कौन संभालेगा? फिलहाल सुखबीर बादल ही लीडर हैं।
सुखबीर की गैर हाजिरी में यह कमान क्या डिप्टी लीडर परमिंदर सिंह ढींडसा संभालेंगे या फिर तेजतर्रार नेता बिक्रम मजीठिया, इसे लेकर सत्ता के गलियारों में खासी चर्चा है। परमिंदर सिंह ढींडसा वैसे तो बिक्रम मजीठिया से सीनियर हैं, लेकिन सदन में उपस्थिति दर्ज करवाने के मामले में वह उनसे पीछे रह जाते हैं।
विधानसभा में डिप्टी लीडर होने के बावजूद परमिंदर सिंह ढींडसा के बजाय बिक्रम मजीठिया ही प्रभावी रहते हैं। किसी अनुभवी राजनीतिज्ञ की तरह वह न केवल सत्ता पक्ष के मंत्रियों और विधायकों को उकसाते रहते हैं, बल्कि नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नेताओं को अकसर उकसाने में कामयाब रहते हैं। अगर, नौबत वाद-विवाद की आ जाए, तो वह आक्रामक होकर सत्ता पक्ष को घेरते रहते हैं, जबकि दूसरी ओर परमिंदर सिंह ढींडसा ऐसा नहीं करते। वह बेहद सौम्य तरीके से अपनी बात रखते हैं या फिर पिछली अकाली-भाजपा कार्यकाल में वित्त मामलों पर सफाई देते रहते हैं।
15 से 13 रह गई विधायकों की संख्या
चूंकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल विधानसभा में कम ही आते हैं और अगर आते भी हैं, तो बोलते नहीं हैं, ऐसे में पार्टी एक तेजतर्रार नेता की तलाश में है, जो विधानसभा में सत्ता पक्ष का सामना कर सके। अभी तक सुखबीर अकेले दम पर भी सत्ता पक्ष की घेराबंदी करते रहे हैं, लेकिन अब उनके सांसद बनने से शिअद विधानसभा में थोड़ी कमजोर हो जाएगी।
अकाली दल की दिक्कत यह है कि पार्टी के पास अब मात्र 13 विधायक ही रह जाएंगे। 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे, तो पार्टी ने 15 सीटें जीतीं थीं। शाहकोट से पार्टी के नेता अजीत सिंह कोहाड़ के निधन के बाद हुए उपचुनाव में हार से यह गिनती 14 रह गई। अब सुखबीर बादल के सांसद बनने से यह 13 रह जाएगी। सत्ता पक्ष गिनती के लिहाज से बहुत मजबूत है। सहयोगी पार्टी भाजपा के भी तीन ही विधायक हैं। ऐसे में पार्टी को यदि सत्ता पक्ष से टक्कर लेनी है, तो उन्हें तेज तर्रार नेता की जरूरत रहेगी।
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